भारतीय न्याय संहिता की धारा 258 हिन्दी मे (BNS Act Section-258 in Hindi) –
अध्याय XIV
258. जो कोई लोक सेवक होते हुए, किसी अपराध के लिए न्यायालय द्वारा दण्डादेशित या विधिपूर्वक अभिरक्षा में सौंपे गए किसी व्यक्ति को पकड़ने या कारावास में रखने के लिए ऐसे लोक सेवक के रूप में वैध रूप से आबद्ध है, ऐसे व्यक्ति को पकड़ने में जानबूझकर चूक करता है, या ऐसे व्यक्ति को जानबूझकर भागने देता है या ऐसे कारावास से भागने या भागने का प्रयास करने में जानबूझकर ऐसे व्यक्ति की सहायता करता है, वह दण्डित किया जाएगा,-
झूठे साक्ष्य और लोक न्याय के विरुद्ध अपराध
258. दण्डादेश के अन्तर्गत या विधिपूर्वक प्रतिबद्ध व्यक्ति को पकड़ने
के लिए आबद्ध लोक सेवक की ओर से जानबूझकर की गई चूक।
(क) आजीवन कारावास से, या किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि चौदह वर्ष तक की हो सकेगी, जुर्माने सहित या रहित, यदि कारावास में रखा गया व्यक्ति, या जिसे पकड़ा जाना चाहिए था, मृत्यु दण्डादेश के अधीन है; या
(ख) किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, जुर्माने सहित या रहित, यदि कारावास में रखा गया व्यक्ति, या जिसे पकड़ा जाना चाहिए था, न्यायालय द्वारा दण्डादेश द्वारा या ऐसे दण्डादेश के लघुकरण के आधार पर आजीवन कारावास या दस वर्ष या उससे अधिक अवधि के कारावास से दण्डित किया जाएगा; या
(ग) किसी भी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, यदि परिरुद्ध व्यक्ति या जिसे पकड़ा जाना चाहिए था, न्यायालय के दण्डादेश के अधीन है, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की नहीं होगी, या यदि व्यक्ति विधिपूर्वक अभिरक्षा में सौंपा गया था।
Bharatiya Nyaya Sanhita Section 258 in English (BNS Act Section-258 in English) –
Chapter XIV
258. Whoever, being a public servant, legally bound as such public servant to apprehend or to keep in confinement any person under sentence of a Court for any offence or lawfully committed to custody, intentionally omits to apprehend such person, or intentionally suffers such person to escape or intentionally aids such person in escaping or attempting to escape from such confinement, shall be punished,-
Of False Evidence and Offences Against Public Justice.
258. Intentional omission to apprehend on the part of public servant
bound to apprehend person under sentence or lawfully committed.
(a) with imprisonment for life or with imprisonment of either description for a term which may extend to fourteen years, with or without fine, if the person in confinement, or who ought to have been apprehended, is under sentence of death; or
(b) with imprisonment of either description for a term which may extend to seven years, with or without fine, if the person in confinement or who ought to have been apprehended, is subject, by a sentence of a Court or by virtue of a commutation of such sentence, to imprisonment for life or imprisonment for a term of ten years, or upwards; or
(c) with imprisonment of either description for a term which may extend to three years, or with fine, or with both, if the person in confinement or who ought to have been apprehended is subject by a sentence of a Court to imprisonment for a term not extending to ten years or if the person was lawfully committed to custody.