भारतीय संविदा अधिनियम Indian Contract Act (ICA Section-137) in Hindi के विषय में पूर्ण जानकारी देंगे। भारतीय संविदा अधिनियम की धारा 137 के अनुसार मूलऋणी पर वाद लाने से या उसके विरुद्ध किसी अन्य उपचार को प्रवर्तित करने से लेनदार का प्रविरत रहना मात्र, प्रत्याभूति में तत्प्रतिकूल उपबन्ध के अभाव में, प्रतिभू को उन्मोचित नहीं करता, जिसे IC Act Section-137 के अन्तर्गत परिभाषित किया गया है।
HIGHLIGHTS
भारतीय संविदा अधिनियम की धारा 137 (Indian Contract Act Section-137) का विवरण
भारतीय संविदा अधिनियम की धारा 137 IC Act Section-137 के अनुसार मूलऋणी पर वाद लाने से या उसके विरुद्ध किसी अन्य उपचार को प्रवर्तित करने से लेनदार का प्रविरत रहना मात्र, प्रत्याभूति में तत्प्रतिकूल उपबन्ध के अभाव में, प्रतिभू को उन्मोचित नहीं करता।
भारतीय संविदा अधिनियम की धारा 137 (IC Act Section-137 in Hindi)
लेनदार का वाद लाने से प्रविरत रहना प्रतिभू को उन्मोचित नहीं करता-
मूलऋणी पर वाद लाने से या उसके विरुद्ध किसी अन्य उपचार को प्रवर्तित करने से लेनदार का प्रविरत रहना मात्र, प्रत्याभूति में तत्प्रतिकूल उपबन्ध के अभाव में, प्रतिभू को उन्मोचित नहीं करता।
दृष्टांत ख एक ऋण का, जिसकी प्रत्याभूति क ने दी है, ग को देनदार है । ऋण देय हो जाता है । ऋण के देय हो जाने के पश्चात् एक वर्ष तक ख पर ग वाद नहीं लाता । क अपने प्रतिभूत्व से उन्मोचित नहीं होता।
Indian Contract Act Section-137 (IC Act Section-137 in English)
Creditor’s forbearance to sue does not discharge surety-
Mere forbearance on the part of the creditor to sue the principal debtor or to enforce any other remedy against him does not, in the absence of any provision in the guarantee to the contrary, discharge the surety.
Illustration
B owes to C a debt guaranteed by A. The debt becomes payable. C does not sue B for a year after the debt has become payable. A is not discharged from his suretyship.
हमारा प्रयास भारतीय संविदा अधिनियम (Indian Contract Act Section) की धारा 137 की पूर्ण जानकारी, आप तक प्रदान करने का है, उम्मीद है कि उपरोक्त लेख से आपको संतुष्ट जानकारी प्राप्त हुई होगी, फिर भी अगर आपके मन में कोई सवाल हो, तो आप कॉमेंट बॉक्स में कॉमेंट करके पूछ सकते है।