कंपनी अधिनियम Companies Act (Companies Act Section-143 in Hindi) के विषय में पूर्ण जानकारी देंगे। कंपनी अधिनियम की धारा 143 के अनुसार कंपनी के प्रत्येक संपरीक्षक को कंपनी की लेखाबहियों और वाउचरों तक, चाहे ये कंपनी के रजिस्ट्रीकृत कार्यालय में या किसी अन्य स्थान पर रखे गए हों, सभी समय पर पहुंच का अधिकार होगा और वह कंपनी अधिकारियों से ऐसी जानकारी और स्पष्टीकरण की अपेक्षा करने का हकदार होगा, जो वह संपरीक्षक के रूप में अपने कर्तव्यों के पालन के लिए आवश्यक समझे, तथा वह अन्य विषयों के साथ निम्नलिखित विषयों की जांच करेगा, जिसे Companies Act Section-143 के अन्तर्गत परिभाषित किया गया है।
IMPORTANT HIGHLIGHT
कंपनी अधिनियम की धारा 143 (Companies Act Section-143) का विवरण
कंपनी अधिनियम की धारा 143 Companies Act Section-143 के अनुसार कंपनी के प्रत्येक संपरीक्षक को कंपनी की लेखाबहियों और वाउचरों तक, चाहे ये कंपनी के रजिस्ट्रीकृत कार्यालय में या किसी अन्य स्थान पर रखे गए हों, सभी समय पर पहुंच का अधिकार होगा और वह कंपनी अधिकारियों से ऐसी जानकारी और स्पष्टीकरण की अपेक्षा करने का हकदार होगा, जो वह संपरीक्षक के रूप में अपने कर्तव्यों के पालन के लिए आवश्यक समझे, तथा वह अन्य विषयों के साथ निम्नलिखित विषयों की जांच करेगा।
कंपनी अधिनियम की धारा 143 (Companies Act Section-143 in Hindi)
संपरीक्षकों की शक्तियां और कर्तव्य तथा संपरीक्षा मानक-
(1) कंपनी के प्रत्येक संपरीक्षक को कंपनी की लेखाबहियों और वाउचरों तक, चाहे ये कंपनी के रजिस्ट्रीकृत कार्यालय में या किसी अन्य स्थान पर रखे गए हों, सभी समय पर पहुंच का अधिकार होगा और वह कंपनी अधिकारियों से ऐसी जानकारी और स्पष्टीकरण की अपेक्षा करने का हकदार होगा, जो वह संपरीक्षक के रूप में अपने कर्तव्यों के पालन के लिए आवश्यक समझे, तथा वह अन्य विषयों के साथ निम्नलिखित विषयों की जांच करेगा, अर्थात् :-
(क) क्या प्रतिभूति के आधार पर कंपनी द्वारा दिए गए ऋण और अग्रिम उचित रूप से प्रतिभूत किए गए हैं और क्या ऐसे निबंधन जिनके आधार पर उन्हें दिया गया है कंपनी या उसके सदस्यों के हितों पर प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं; (ख) क्या कंपनी ऐसे संव्यवहार जो केवल वही की प्रविष्टियों द्वारा प्रतिनिधित्व करते हैं, कंपनी के हितों पर प्रतिकूल प्रभाव तो नहीं डालते हैं;
(ग) जहां कोई कंपनी विनिधान कंपनी या बैंककारी कंपनी नहीं है तो क्या वहां कंपनी की उतनी आस्तियों का, जो शेयरों, डिबेंचरों और अन्य प्रतिभूतियों के रूप में हैं. ऐसे मूल्य पर विक्रय किया गया है जो उससे कम है जिस पर कंपनी द्वारा उन्हें क्रय किया गया था;
(घ) क्या कंपनी द्वारा दिए गए ऋण और अग्रिमों को निक्षेप के रूप में दर्शाया गया है;
(ङ) क्या व्यक्तिगत व्ययों को राजस्व खाते में प्रभारित किया गया है;
(च) जहां कंपनी की बहियों और कागज पत्रों में यह कथन किया गया है कि नकद के स्थान पर कोई शेयर आबंटित किया गया है, क्या नकद वास्तविक रूप से ऐसे आबंटन की बाबत प्राप्त किया गया है और यदि इस प्रकार कोई नकद प्राप्त नहीं किया गया है तो क्या लेखा बहियों और तुलनपत्र में यथाकथित स्थिति सही है, नियमित है और भ्रामक नहीं है:
परंतु किसी ऐसी कंपनी के, जो नियंत्री कंपनी है, संपरीक्षक को, उसकी सभी समनुषंगियों के अभिलेखों तक जहां तक उसका संबंध उसकी समनुषंगियों के वित्तीय विवरणों के साथ उसके वित्तीय विवरण के समेकन से है पहुंच का भी अधिकार होगा।
(2) संपरीक्षक, अपने द्वारा परीक्षित लेखाओं पर और प्रत्येक वित्तीय विवरण या ऐसे अन्य दस्तावेज के संबंध में, जो इस अधिनियम द्वारा या उसके अधीन साधारण अधिवेशन में कंपनी के समक्ष रखे जाने के लिए अपेक्षित हैं, कंपनी के सदस्यों को एक रिपोर्ट देगा और रिपोर्ट में इस अधिनियम के उपबंधों को ध्यान में रखने के पश्चात् उन लेखाओं और संपरीक्षा मानकों और विषयों, जिनका इस अधिनियम या उनके अधीन बनाए गए किन्हीं नियमों के उपबंधों के अधीन या उपधारा (11) के अधीन किए गए किसी आदेश के अधीन सम्मिलित किया जाना अपेक्षित है और उसकी सर्वोत्तम जानकारी तथा ज्ञान के अनुसार उक्त लेखे, वित्तीय विवरण या अन्य दस्तावेज, कंपनी के वित्तीय वर्ष के अंत में उसके कार्यों की स्थिति और वर्ष के लिए लाभ या हानि और नकद प्रवाह का और ऐसे अन्य विषयों का, जो विहित किए जाएं, सही और ऋजु चित्रण देते हैं।
(3) संपरीक्षक की रिपोर्ट में यह भी कचित होगा कि-
(क) क्या उसने ऐसी सभी जानकारी और स्पष्टीकरणों की ईप्सा की है और उन्हें अभिप्राप्त कर लिया है, जो उसकी सर्वोत्तम जानकारी और विश्वास के अनुसार उसकी संपरीक्षा के प्रयोजनों के लिए आवश्यक थे और यदि नहीं तो उनके ब्यौरे और वित्तीय विवरणों पर ऐसी जानकारी का प्रभाव बताएं-
(ख) क्या उसकी राय में जहां तक उन पुस्तकों की जांच से प्रतीत होता है, कंपनी द्वारा वे सब समुचित लेखा-बहियां, जो विधि द्वारा अपेक्षित हैं, रखी गई है तथा संपरीक्षा के प्रयोजनों के लिए यथेष्ट समुचित विवरणियां उन शाखाओं से प्राप्त हो गई हैं जिन पर वह गया नहीं है;
(ग) क्या उपधारा (8) के अधीन कंपनी के संपरीक्षक से भिन्न किसी व्यक्ति द्वारा संपरीक्षित, कंपनी के किसी शाखा कार्यालय के लेखाओं से संबंधित रिपोर्ट, उस उपधारा के परंतुक के अधीन उसे भेजी गई है और वह रीति, जिसमें उसने अपनी रिपोर्ट तैयार करने में कार्यवाही की है;
(घ) क्या कंपनी का तुलनपत्र और लाभ-हानि लेखा, जो रिपोर्ट में वर्णित है, लेखाबहियों और विवरणियों के अनुसार हैं;
(ङ) क्या उसकी राय में, वित्तीय विवरण लेखा मानकों और संपरीक्षा मानकों के अनुरूप है;
(च) वित्तीय संव्यवहारों या विषयों पर संपरीक्षकों के संप्रेक्षण या टीका- टिप्पणियां, जो कपंनी के कार्यकरण पर प्रतिकूल प्रभाव रखती हैं:
(छ) क्या कोई निदेशक धारा 164 की उपधारा (2) के अधीन निदेशक के रूप में नियुक्त होने से निरर्हित है;
(ज) लेखे रखे जाने और उनसे संबद्ध अन्य विषयों से संबंधित कोई अर्हता. आरक्षण या प्रतिकूल टिप्पण;
(झ) क्या कंपनी के पास पर्याप्त आंतरिक वित्तीय नियंत्रण प्रणाली है और ऐसे नियंत्रणों का प्रभावशाली प्रचालन है; (ञ) ऐसे अन्य विषय, जो विहित किए जाएं।
(4) जहां इस धारा के अधीन संपरीक्षा रिपोर्ट में सम्मिलित किए जाने के लिए अपेक्षित किन्हीं विषयों का नकारात्मक या अर्हता के साथ उत्तर दिया गया है, वहां रिपोर्ट में उसके कारणों का कथन किया जाएगा ।
(5) किसी सरकारी कंपनी की दशा में, भारत का नियंत्रक – महालेखापरीक्षक धारा 139 की उपधारा (5) या उपधारा (7) के अधीन संपरीक्षक की नियुक्ति करेगा और संपरीक्षक को उस रीति के प्रति निदेश देगा जिसमें सरकारी कंपनी के लेखाओं को संपरीक्षित किया जाना अपेक्षित होगा और तत्पश्चात् इस प्रकार नियुक्त संपरीक्षक संपरीक्षा रिपोर्ट, जिसमें अन्य बातों के साथ-साथ भारत के नियंत्रक – महालेखापरीक्षक द्वारा जारी किए गए निदेशों, यदि कोई हों, उस पर की गई कार्रवाई तथा कंपनी के लेखाओं और वित्तीय विवरण पर उसके प्रभाव का उल्लेख होगा, की एक प्रति भारत के नियंत्रक – महालेखापरीक्षक को प्रस्तुत करेगा।
(6) भारत के नियंत्रक – महालेखापरीक्षक को उपधारा (5) के अधीन संपरीक्षा रिपोर्ट की प्राप्ति की तारीख से साठ दिन के भीतर, –
(क) कंपनी के वित्तीय विवरण की ऐसे व्यक्ति या व्यक्तियों द्वारा जो वह इस निमित्त प्राधिकृत करे, अनुपूरक संपरीक्षा कराने और ऐसे संपरीक्षा के प्रयोजनों के लिए इस प्रकार प्राधिकृत किसी व्यक्ति या व्यक्तियों को उन मामलों पर ऐसे व्यक्ति या व्यक्तियों द्वारा प्रस्तुत की जाने वाली जानकारी या अतिरिक्त जानकारी की ऐसे प्ररूप में जैसा भारत का नियंत्रक – महालेखापरीक्षक निदेश दें, अपेक्षा करने का अधिकार होगा; और
(ख) ऐसी संपरीक्षा रिपोर्ट पर टीका-टिप्पणी करने या उसमें अनुपूरक लगाने का अधिकार होगा;
परंतु भारत के नियंत्रक – महालेखापरीक्षक द्वारा संपरीक्षा रिमोर्ट पर की गई कोई टीका-टिप्पणियां या उसके साथ लगाए गए अनुपूरक को कंपनी द्वारा ऐसे प्रत्येक व्यक्ति को जो धारा 136 की उपधारा (1) के अधीन संपरीक्षित वित्तीय विवरणों की प्रतियां पाने का हकदार है. भेजा जाएगा और कंपनी के वार्षिक साधारण अधिवेशन के समक्ष भी उसे उसी समय और उसी रीति में रखा जाएगा जैसे संपरीक्षा रिपोर्ट रखी जाती है।
(7) इस अध्याय के उपबंधों पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, भारत का नियंत्रक- महालेखापरीक्षक धारा 139 की उपवास (5) या उपधारा (7) के अंतर्गत आने वाली किसी कंपनी की दशा में, यदि वह ऐसा करना आवश्यक समझे, तो आदेश द्वारा ऐसी कंपनी के लेखाओं की संपरीक्षा परीक्षण संचालित कराएगा और नियंत्रक – महालेखापरीक्षक (कर्तव्य, शक्तियां तथा सेवा की शर्तें) अधिनियम, 1971 की धारा 19क के उपबंध ऐसी संपरीक्षा परीक्षण की रिपोर्ट को लागू होंगे ।
(8) जहाँ किसी कंपनी का कोई शाखा कार्यालय है, वहां उस कार्यालय के लेखे, या तो इस अधिनियम के अधीन कंपनी के लिए नियुक्त किए गए संपरीक्षक द्वारा (जिसे इसमें इसके पश्चात् कंपनी का संपरीक्षक कहा गया है) या इस अधिनियम के अधीन कंपनी के किसी संपरीक्षक के रूम में नियुक्ति के लिए अर्हित और धारा 139 के अधीन उस रूप में नियुक्त किए गए किसी अन्य व्यक्ति द्वारा संपरीक्षित किए जाएंगे या जहां कोई शाखा कार्यालय, भारत के बाहर किसी देश में स्थित है, वहां शाखा कार्यालय के लेखे उस देश की विधि के अनुसार या तो कंपनी के संपरीक्षक द्वारा या शाखा कार्यालय के लेखे के संपरीक्षक के रूप में कार्य करने के लिए सम्यक् रूप से अर्हित किसी लेखापाल या किसी अन्य व्यक्ति द्वारा संपरीक्षित किए जाएंगे और शाखा की संपरीक्षा यदि कोई है के संबंध में कंपनी के संपरीक्षक तथा शाखा संपरीक्षक के कर्तव्य और शक्तियां वे होंगी, जो विहित की जाएं :
परंतु शाखा संपरीक्षक, उसके द्वारा परीक्षित शाखा के लेखाओं के संबंध में रिपोर्ट तैयार करेगा और उसे कंपनी के संपरीक्षक को भेजेगा, जो अपनी रिपोर्ट में उस पर ऐसी रीति से कार्रवाई करेगा, जो दह आवश्यक समझे ।
(9) प्रत्येक संपरीक्षक, संपरीक्षा मानकों का पालन करेगा ।
(10) केंद्रीय सरकार राष्ट्रीय वित्तीय रिपोर्टिंग प्राधिकरण के परामर्श से और उसके द्वारा की गई सिफारिशों की परीक्षा करने के पश्चात्, चार्टर्ड अकांउटेंट अधिनियम, 1949 की 1 धारा 3 के अधीन गठित भारतीय चार्टर्ड अकांउटेंट संस्थान द्वारा सिफारिश के अनुसार लेखा मानक विहित कर सकेगी।
परंतु संपरीक्षा मानकों के अधिसूचित किए जाने तक, भारतीय चार्टर्ड अकाउंटेंट संस्थान द्वारा विनिर्दिष्ट किए गए किसी लेखा मानक या मानकों को संपरीक्षा लेखा मानक समझा जाएगा।
(11) केंद्रीय सरकार राष्ट्रीय वित्तीय रिपोर्टिंग प्राधिकरण के परामर्श से कंपनियों के ऐसे वर्ग या वर्णन, जो आदेश में विनिर्दिष्ट किए जाएं, के संबंध साधारण या विशेष आदेश द्वारा यह निदेश कर सकेगी कि संपरीक्षक की रिपोर्ट में ऐसे विषयों पर जो उसमें विनिर्दिष्ट किए जाएं, एक कथन भी सम्मिलित किया जाएगा ।
(12) इस धारा में अन्तर्विष्ट किसी बात के होते हुए भी, यदि किसी कंपनी के संपरीक्षक के पास, संपरीक्षक के रूप में अपने कर्तव्यों के पालन के अनुक्रम में, यह विश्वास करने का कारण है कि कपट वाला कोई अपराध कंपनी के अधिकारियों या कर्मचारियों द्वारा कंपनी के विरुद्ध किया गया है तो वह ऐसे समय के भीतर और ऐसी रीति में, जो विहित की जाए, मामले की रिपोर्ट तुरंत केन्द्रीय सरकार को करेगा।
(13) ऐसे किसी कर्तव्य के बारे में, जिसके अध्यधीन कंपनी का संपरीक्षक हो, यह नहीं समझा जाएगा कि उसने उपधारा (12) में निर्दिष्ट मामले का अपनी रिपोर्टिंग के कारण उल्लंघन किया है, यदि वह सद्भाव में की गई है।
(14) इस धारा के उपबंध यथावश्यक परिवर्तन सहित निम्नलिखित को लागू होंगे,-
(क) धारा 148 के अधीन लागत संपरीक्षा करने वाला व्यवसायरत लागत लेखापाल;
या
(ख) धारा 204 के अधीन अनुसचिवीय संपरीक्षा करने वाला व्यवसायरत कंपनी सचिव।
(15) यदि कोई व्यवसायरत संपरीक्षक, लागत लेखापाल या कंपनी सचिव, उपधारा (12) के उपबंधों का पालन नहीं करता है तो वह ऐसे जुर्माने से, जो एक लाख रुपए से कम का नहीं होगा, किंतु जो पच्चीस लाख रुपए तक का हो सकेगा, दण्डनीय होगा।
Companies Act Section-143 (Company Act Section-143 in English)
Powers and duties of auditors and auditing standards-
(1) Every auditor of a company shall have a right of access at all times to the books of account and vouchers of the company, whether kept at the registered office of the company or at any other place and shall be entitled to require from the officers of the company such information and explanation as he may consider necessary for the performance of his duties as auditor and amongst other matters inquire into the following matters, namely:—
(a) whether loans and advances made by the company on the basis of security have been properly secured and whether the terms on which they have been made are prejudicial to the interests of the company or its members;
(b) whether transactions of the company which are represented merely by book entries are prejudicial to the interests of the company;
(c) where the company not being an investment company or a banking company, whether so much of the assets of the company as consist of shares, debentures and other securities have been sold at a price less than that at which they were purchased by the company;
(d) whether loans and advances made by the company have been shown as deposits;
(e) whether personal expenses have been charged to revenue account;
(f) where it is stated in the books and documents of the company that any shares have been allotted for cash, whether cash has actually been received in respect of such allotment, and if no cash has actually been so received, whether the position as stated in the account books and the balance sheet is correct, regular and not misleading:
Provided that the auditor of a company which is a holding company shall also have the right of access to the records of all its subsidiaries in so far as it relates to the consolidation of its financial statements with that of its subsidiaries.
(2) The auditor shall make a report to the members of the company on the accounts examined by him and on every financial statements which are required by or under this Act to be laid before the company in general meeting and the report shall after taking into account the provisions of this Act, the accounting and auditing standards and matters which are required to be included in the audit report under the provisions of this Act or any rules made thereunder or under any order made under sub-section (11) and to the best of his information and knowledge, the said accounts, financial statements give a true and fair view of the state of the company‘s affairs as at the end of its financial year and profit or loss and cash flow for the year and such other matters as may be prescribed.
(3) The auditor‘s report shall also state—
(a) whether he has sought and obtained all the information and explanations which to the best of his knowledge and belief were necessary for the purpose of his audit and if not, the details thereof and the effect of such information on the financial statements;
(b) whether, in his opinion, proper books of account as required by law have been kept by the company so far as appears from his examination of those books and proper returns adequate for the purposes of his audit have been received from branches not visited by him;
(c) whether the report on the accounts of any branch office of the company audited under sub-section (8) by a person other than the company‘s auditor has been sent to him under the proviso to that sub-section and the manner in which he has dealt with it in preparing his report;
(d) whether the company‘s balance sheet and profit and loss account dealt with in the report are in agreement with the books of account and returns;
(e) whether, in his opinion, the financial statements comply with the accounting standards;
(f) the observations or comments of the auditors on financial transactions or matters which have any adverse effect on the functioning of the company;
(g) whether any director is disqualified from being appointed as a director under sub-section (2) of section 164;
(h) any qualification, reservation or adverse remark relating to the maintenance of accounts and other matters connected therewith;
(i) whether the company has adequate internal financial controls system in place and the operating effectiveness of such controls;
(j) such other matters as may be prescribed.
(4) Where any of the matters required to be included in the audit report under this section is answered in the negative or with a qualification, the report shall state the reasons therefor.
(5) In the case of a Government company, the Comptroller and Auditor-General of India shall appoint the auditor under sub-section (5) or sub-section (7) of section 139 and direct such auditor the manner in which the accounts of the Government company are required to be audited and thereupon the auditor so appointed shall submit a copy of the audit report to the Comptroller and Auditor-General of India which, among other things, include the directions, if any, issued by the Comptroller and Auditor-General of India, the action taken thereon and its impact on the accounts and financial statement of the company.
(6) The Comptroller and Auditor-General of India shall within sixty days from the date of receipt of the audit report under sub-section (5) have a right to,—
(a) conduct a supplementary audit of the financial statement of the company by such person or persons as he may authorise in this behalf; and for the purposes of such audit, require information or additional information to be furnished to any person or persons, so authorised, on such matters, by such person or persons, and in such form, as the Comptroller and Auditor-General of India may direct; and
(b) comment upon or supplement such audit report:
Provided that any comments given by the Comptroller and Auditor-General of India upon, or supplement to, the audit report shall be sent by the company to every person entitled to copies of audited financial statements under sub-section (1) of section 136 and also be placed before the annual general meeting of the company at the same time and in the same manner as the audit report.
(7) Without prejudice to the provisions of this Chapter, the Comptroller and Auditor-General of India may, in case of any company covered under sub-section (5) or sub-section (7) of section 139, if he considers necessary, by an order, cause test audit to be conducted of the accounts of such company and the provisions of section 19A of the Comptroller and Auditor-General‘s (Duties, Powers and Conditions of Service) Act, 1971 (56 of 1971), shall apply to the report of such test audit.
(8) Where a company has a branch office, the accounts of that office shall be audited either by the auditor appointed for the company (herein referred to as the company‘s auditor) under this Act or by any other person qualified for appointment as an auditor of the company under this Act and appointed as such under section 139, or where the branch office is situated in a country outside India, the accounts of the branch office shall be audited either by the company‘s auditor or by an accountant or by any other person duly qualified to act as an auditor of the accounts of the branch office in accordance with the laws of that country and the duties and powers of the company‘s auditor with reference to the audit of the branch and the branch auditor, if any, shall be such as may be prescribed:
Provided that the branch auditor shall prepare a report on the accounts of the branch examined by him and send it to the auditor of the company who shall deal with it in his report in such manner as he considers necessary.
(9) Every auditor shall comply with the auditing standards.
(10) The Central Government may prescribe the standards of auditing or any addendum thereto, as recommended by the Institute of Chartered Accountants of India, constituted under section 3 of the Chartered Accountants Act, 1949 (38 of 1949), in consultation with and after examination of the recommendations made by the National Financial Reporting Authority:
Provided that until any auditing standards are notified, any standard or standards of auditing specified by the Institute of Chartered Accountants of India shall be deemed to be the auditing standards.
(11) The Central Government may, in consultation with the National Financial Reporting Authority, by general or special order, direct, in respect of such class or description of companies, as may be specified in the order, that the auditor‘s report shall also include a statement on such matters as may be specified therein.
(12) Notwithstanding anything contained in this section, if an auditor of a company, in the course of the performance of his duties as auditor, has reason to believe that an offence involving fraud is being or has been committed against the company by officers or employees of the company, he shall immediately report the matter to the Central Government within such time and in such manner as may be prescribed.]
(13) No duty to which an auditor of a company may be subject to shall be regarded as having been contravened by reason of his reporting the matter referred to in subsection (12) if it is done in good faith.
(14) The provisions of this section shall mutatis mutandis apply to-
(a) the cost accountant in practice conducting cost audit under section 148; or
(b) the company secretary in practice conducting secretarial audit under section 204.
(15) If any auditor, cost accountant or company secretary in practice do not comply with the provisions of sub-section (12), he shall be punishable with fine which shall not be less than one lakh rupees but which may extend to twenty-five lakh rupees.
हमारा प्रयास कंपनी अधिनियम (Companies Act Section) की धारा 143 की पूर्ण जानकारी, आप तक प्रदान करने का है, उम्मीद है कि उपरोक्त लेख से आपको संतुष्ट जानकारी प्राप्त हुई होगी, फिर भी अगर आपके मन में कोई सवाल हो, तो आप कॉमेंट बॉक्स मे कमेंट करके पूछ सकते है।