नमस्कार दोस्तों, आज हम आपके लिए भारतीय दंड संहिता की धारा 93 के बारे में पूर्ण जानकारी देंगे। क्या कहती है भारतीय दंड संहिता की धारा 93 साथ ही हम आपको IPC की धारा 93 सम्पूर्ण जानकारी एवम् परिभाषा इस लेख के माध्यम से आप तक पहुंचाने का प्रयास करेंगे।
धारा 93 का विवरण
भारतीय दण्ड संहिता (IPC) में धारा 93 के विषय में पूर्ण जानकारी देंगे। यह धारा कोई व्यक्ति सद्भावपूर्वक दी गई संसूचना, अर्थात् जब कोई किसी व्यक्ति की सूचना, उसके परिजनों को उचित इरादे से देता है। जैसे किसी डॉक्टर ने उसके परिजनों और मरीज को सूचित करता है, जबकि उसे ज्ञात है कि यह सूचना देने से किसी की मृत्यु होने की संभावना भी है फिर भी यदि वह यह सूचना देता है कि आपको या आपके मरीज की इलाज से कोई सुधार नहीं हो रहा है, ऐसा प्रतीत होता है, कि अब वह जीवित नहीं रह सकता, इस आघात के परिणाम स्वरूप, यदि उस मरीज की मृत्यु अथवा उसके परिजन किसी की मृत्यु हो जाती है, तो भी डॉक्टर द्वारा किया कार्य, अपराध की श्रेणी में नही आयेगा। यह धारा ऐसे मामलो को परिभाषित करती है, भारतीय दण्ड संहिता की धारा 93 इसी विषय के बारे में बतलाती है।
आईपीसी की धारा 93 के अनुसार-
सद्भावपूर्वक दी गई संसूचना –
सद्भावपूर्वक दी गई संसूचना उस अपहानि के कारण अपराध नहीं है, जो उस व्यक्ति को हो जिसे वह दी गई है, यदि वह उस व्यक्ति के फायदे के लिए दी गयी हो।
Communication made in good faith-
No communication made in good faith is an offence by reason of any harm to the person to whom it is made, if it is made for the benefit of that person.
दृष्टान्त
क एक शल्य चिकित्सक, एक रोगी को सद्भावपूर्वक यह संसूचित करता है कि उसकी राय में वह जीवित नहीं रह सकता। इस आघात के परिणामस्वरूप उस रोगी की मृत्यु हो जाती है। क ने कोई अपराध नहीं किया है, यद्यपि वह जानता था कि उस संसूचना से उस रोगी की मृत्यु कारित होना सम्भाव्य है।
हमारा प्रयास आईपीसी की धारा 93 की पूर्ण जानकारी, आप तक प्रदान करने का है, उम्मीद है कि उपरोक्त लेख से आपको संतुष्ट जानकारी प्राप्त हुई होगी, फिर भी अगर आपके पास कोई सवाल हो, तो आप कॉमेंट बॉक्स में कॉमेंट करके पूछ सकते है।