कंपनी अधिनियम Companies Act (Companies Act Section-59 in Hindi) के विषय में पूर्ण जानकारी देंगे। कंपनी अधिनियम की धारा 59 के अनुसार यदि किसी व्यक्ति का नाम, पर्याप्त कारण के बिना, किसी कंपनी के सदस्यों के रजिस्टर में प्रविष्ट किया जाता है या रजिस्टर में प्रविष्ट किए जाने के पश्चात् पर्याप्त कारण के बिना, उसमें से हटा दिया जाता है, या किसी व्यक्ति के सदस्य बनने या सदस्य न रहने के तथ्य की रजिस्टर में प्रविष्टि करने में व्यतिक्रम किया जाता है या उसमें अनावश्यक विलंब होता है तो व्यथित व्यक्ति या कंपनी का कोई सदस्य या कंपनी, ऐसे प्ररूप में, जो विहित किया जाए, अधिकरण को या भारत के बाहर निवास कर रहे विदेशी सदस्यों या डिबेंचर धारकों की बाबत केन्द्रीय सरकार द्वारा अधिसूचना द्वारा विनिर्दिष्ट किसी सक्षम न्यायालय को रजिस्टर के परिशोधन के लिए अपील कर सकेगा, जिसे Companies Act Section-59 के अन्तर्गत परिभाषित किया गया है।
IMPORTANT HIGHLIGHT
कंपनी अधिनियम की धारा 59 (Companies Act Section-59) का विवरण
कंपनी अधिनियम की धारा 59 Companies Act Section-59 के अनुसार यदि किसी व्यक्ति का नाम, पर्याप्त कारण के बिना, किसी कंपनी के सदस्यों के रजिस्टर में प्रविष्ट किया जाता है या रजिस्टर में प्रविष्ट किए जाने के पश्चात् पर्याप्त कारण के बिना, उसमें से हटा दिया जाता है, या किसी व्यक्ति के सदस्य बनने या सदस्य न रहने के तथ्य की रजिस्टर में प्रविष्टि करने में व्यतिक्रम किया जाता है या उसमें अनावश्यक विलंब होता है तो व्यथित व्यक्ति या कंपनी का कोई सदस्य या कंपनी, ऐसे प्ररूप में, जो विहित किया जाए, अधिकरण को या भारत के बाहर निवास कर रहे विदेशी सदस्यों या डिबेंचर धारकों की बाबत केन्द्रीय सरकार द्वारा अधिसूचना द्वारा विनिर्दिष्ट किसी सक्षम न्यायालय को रजिस्टर के परिशोधन के लिए अपील कर सकेगा।
कंपनी अधिनियम की धारा 59 (Companies Act Section-59 in Hindi)
सदस्यों के रजिस्टर का सही करना-
(1) यदि किसी व्यक्ति का नाम, पर्याप्त कारण के बिना, किसी कंपनी के सदस्यों के रजिस्टर में प्रविष्ट किया जाता है या रजिस्टर में प्रविष्ट किए जाने के पश्चात् पर्याप्त कारण के बिना, उसमें से हटा दिया जाता है, या किसी व्यक्ति के सदस्य बनने या सदस्य न रहने के तथ्य की रजिस्टर में प्रविष्टि करने में व्यतिक्रम किया जाता है या उसमें अनावश्यक विलंब होता है तो व्यथित व्यक्ति या कंपनी का कोई सदस्य या कंपनी, ऐसे प्ररूप में, जो विहित किया जाए, अधिकरण को या भारत के बाहर निवास कर रहे विदेशी सदस्यों या डिबेंचर धारकों की बाबत केन्द्रीय सरकार द्वारा अधिसूचना द्वारा विनिर्दिष्ट किसी सक्षम न्यायालय को रजिस्टर के परिशोधन के लिए अपील कर सकेगा।
(2) अधिकरण, उपधारा (1) के अधीन अपील के पक्षकारों को सने जाने के पश्चात, आदेश द्वारा, अपील को या तो खारिज कर सकेगा या यह निदेश दे सकेगा कि अंतरण या पारेषण कंपनी द्वारा आदेश की प्राप्ति के दस दिन के भीतर रजिस्ट्रीकृत किया जाएगा या निक्षेपागार के अभिलेखों या रजिस्टर के सीधे परिशोधन का निदेश दे सकेगा और पश्चात्वर्ती मामले में कंपनी को व्यथित पक्षकार को हुई नुकसानी, यदि कोई हो, का संदाय करने के लिए निदेश दे सकेगा ।
(3) इस धारा के उपबंध प्रतिभूतियों के किसी धारक के, ऐसी प्रतिभूतियों को अंतरित करने के अधिकार को निर्बधित नहीं करेंगे और ऐसी प्रतिभूतियां अर्जित करने वाला कोई व्यक्ति तब तक मताधिकार के लिए हकदार होगा, जब तक मताधिकार को किसी आदेश द्वारा निलंबित न किया गया हो।
(4) जहां प्रतिभूतियों का अंतरण प्रतिभूति संविदा (विनियमन) अधिनियम, 1956, भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड अधिनियम, 1992 या इस अधिनियम या तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि के किन्हीं उपबंधों के उल्लंघन में किया गया है, वहां अधिकरण, निक्षेपागार कंपनी, निक्षेपागार भागीदार प्रतिभूतियों के धारक या प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड द्वारा किए जाने वाले किसी आवेदन पर किसी कंपनी या निक्षेपागार को उल्लंघन को दूर करने और उससे संबंधित उसके रजिस्टर या अभिलेखों में परिशोधन का निदेश दे सकेगा ।
(5) यदि इस धारा के अधीन अधिकरण के किसी आदेश का अनुपालन करने में कोई व्यतिक्रम किया जाता है तो कंपनी ऐसे जुर्माने से, जो एक लाख रुपये से कम नहीं होगा किन्तु जो पांच लाख रुपये तक हो सकेगा, दण्डनीय होगी और कंपनी का ऐसा प्रत्येक अधिकारी, जो व्यतिक्रमी है, ऐसी अवधि के कारावास से, जो एक वर्ष तक की हो सकेगी या जुर्माने से, जो एक लाख रुपए से कम का नहीं होगा किंतु जो तीन लाख रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से, दंडनीय होगा।
Companies Act Section-59 (Company Act Section-59 in English)
Rectification of register of members–
(1) If the name of any person is, without sufficient cause, entered in the register of members of a company, or after having been entered in the register, is, without sufficient cause, omitted therefrom, or if a default is made, or unnecessary delay takes place in entering in the register, the fact of any person having become or ceased to be a member, the person
aggrieved, or any member of the company, or the company may appeal in such form as may be prescribed, to the Tribunal, or to a competent court outside India, specified by the Central Government by notification, in respect of foreign members or debenture holders residing outside India, for rectification of the register.
(2) The Tribunal may, after hearing the parties to the appeal under sub-section (1) by order, either dismiss the appeal or direct that the transfer or transmission shall be registered by the company within a period of ten days of the receipt of the order or direct rectification of the records of the depository or the register and in the latter case, direct the company to pay damages, if any, sustained by the party aggrieved.
(3) The provisions of this section shall not restrict the right of a holder of securities, to transfer such securities and any person acquiring such securities shall be entitled to voting rights unless the voting rights have been suspended by an order of the Tribunal.
(4) Where the transfer of securities is in contravention of any of the provisions of the Securities Contracts (Regulation) Act, 1956 (42 of 1956), the Securities and Exchange Board of India Act, 1992 (15 of 1992) or this Act or any other law for the time being in force, the Tribunal may, on an application made by the depository, company, depository participant, the holder of the securities or the Securities and Exchange Board, direct any company or a depository to set right the contravention and rectify its register or records concerned.
(5) If any default is made in complying with the order of the Tribunal under this section, the company shall be punishable with a fine which shall not be less than one lakh rupees but which may extend to five lakh rupees and every officer of the company who is in default shall be punishable with imprisonment for a term which may extend to one year or with fine which shall not be less than one lakh rupees but which may extend to three lakh rupees, or with both.
हमारा प्रयास कंपनी अधिनियम (Companies Act Section) की धारा 59 की पूर्ण जानकारी, आप तक प्रदान करने का है, उम्मीद है कि उपरोक्त लेख से आपको संतुष्ट जानकारी प्राप्त हुई होगी, फिर भी अगर आपके मन में कोई सवाल हो, तो आप कॉमेंट बॉक्स में कॉमेंट करके पूछ सकते है।