भारतीय संविदा अधिनियम की धारा 73 | Indian Contract Act Section 73

भारतीय संविदा अधिनियम Indian Contract Act (ICA Section-73) in Hindi के विषय में पूर्ण जानकारी देंगे। भारतीय संविदा अधिनियम की धारा 73 के अनुसार जब कि कोई संविदा भंग कर दी गई है तब वह पक्षकार, जो ऐसे भंग से क्षति उठाता है, उस पक्षकार से, जिसने संविदा भंग की है, अपने को तद्द्वारा कारित किसी ऐसी हानि या नुकसान के लिए प्रतिकर पाने का हकदार है जो ऐसी घटनाओं के प्रायिक अनुक्रम में प्रकृत्या ऐसे भंग से उद्भूत हुआ हो, जिसका संविदा-भंग का संभाव्य परिणाम होना पक्षकार उस समय जानते थे जब उन्होंने संविदा की थी, जिसे IC Act Section-73 के अन्तर्गत परिभाषित किया गया है।

भारतीय संविदा अधिनियम की धारा 73 (Indian Contract Act Section-73) का विवरण

भारतीय संविदा अधिनियम की धारा 73 IC Act Section-73 के अनुसार जब कि कोई संविदा भंग कर दी गई है तब वह पक्षकार, जो ऐसे भंग से क्षति उठाता है, उस पक्षकार से, जिसने संविदा भंग की है, अपने को तद्द्वारा कारित किसी ऐसी हानि या नुकसान के लिए प्रतिकर पाने का हकदार है जो ऐसी घटनाओं के प्रायिक अनुक्रम में प्रकृत्या ऐसे भंग से उद्भूत हुआ हो, जिसका संविदा-भंग का संभाव्य परिणाम होना पक्षकार उस समय जानते थे जब उन्होंने संविदा की थी।

भारतीय संविदा अधिनियम की धारा 73 (IC Act Section-73 in Hindi)

संविदा-भंग से कारित हानि या नुकसान के लिए प्रतिकर-

जब कि कोई संविदा भंग कर दी गई है तब वह पक्षकार, जो ऐसे भंग से क्षति उठाता है, उस पक्षकार से, जिसने संविदा भंग की है, अपने को तद्द्वारा कारित किसी ऐसी हानि या नुकसान के लिए प्रतिकर पाने का हकदार है जो ऐसी घटनाओं के प्रायिक अनुक्रम में प्रकृत्या ऐसे भंग से उद्भूत हुआ हो, जिसका संविदा-भंग का संभाव्य परिणाम होना पक्षकार उस समय जानते थे जब उन्होंने संविदा की थी।
ऐसा प्रतिकर उस भंग के कारण उठाई गई किसी दूरस्थ और परोक्ष हानि या नुकसान के लिए नहीं दिया जाना है।
संविदा द्वारा सृजित बाध्यताओं के सदृशय बाध्यता का निर्वहन करने में असफल रहने पर प्रतिकर-जब कि कोई बाध्यता, जो संविदा द्वारा सुर्जित बाध्यताओं के सदृश्य हो, उपगत कर ली गई है और उसका निर्वहन नहीं किया गया है तब कोई भी व्यक्ति, जिसे उसके निर्वह्न में असफलता से क्षति हुई हो, व्यतिक्रम करने वाले पक्षकार से वही प्रतिकर पाने का हकदार है मानो ऐसे व्यक्ति ने उस बाध्यता का निर्वहन करने की संविदा की हो, और उसने अपनी उस संविदा का भंग किया हो।
स्पष्टीकरण—किसी संविदा-भंग से उद्भूत हानि या नुकसान का प्राक्कलन करने में उन साधनों को दृष्टि में रखना होगा जो संविदा के अपालन से हुई असुविधा का उपचार करने के लिए वर्तमान थे।
दृष्टांत
(क) क, संविदा करता है कि वह अमुक कीमत पर ख को 50 मन शोरा बेचेगा और परिदत्त करेगा, और कीमत उसके परिदान पर संदत्त की जाएगी। क अपने वचन को भंग कर देता है। ख प्रतिकर के रूप में क से उतनी राशि, यदि कोई हो, पाने का हकदार है, जितनी से संविदा वाली कीमत उस कीमत से कम है जितनी पर ख वैसी क्वालिटी का 50 मन शोरा उस समय अभिप्राप्त कर सकता था जिस समय वह शोरा परिदत्त किया जाना चाहिए था।
(ख) ख के पोत को मुम्बई जाने और वहां पहली जनवरी को क द्वारा उपबन्धित किया जाने वाला स्थोरा भरने और कलकत्ता लाने के लिए क भाड़े पर लेता है। ढुलाई उपार्जित होने पर दी जानी है। ख का, पोत मुम्बई नहीं जाता, किन्तु वैसे ही फायदाप्रद निर्बन्धनों पर, जिन पर क ने वह पोत भाड़े पर लिया था, उस स्थोरा के लिए उपयुक्त प्रवण यान उपाप्त करने के अवसर क को प्राप्त हैं। क उन अवसरों का उपयोग करता है किन्तु उसे वैसा करने में कष्ट और व्यय उठाना पड़ता है। क ऐसे कष्ट और व्यय के लिए ख से प्रतिकर पाने का हकदार है।
(ग) ख से कथित कीमत पर 50 मन चावल खरीदने की संविदा क करता है। चावल के परिदान के लिए कोई समय नियत नहीं है। तत्पश्चात् ख को क यह जतला देता है कि यदि चावल निविदत्त किया गया तो वह उसे प्रतिगृहीत नहीं करेगा। क से ख प्रतिकर के रूप में उतनी रकम यदि कोई हो, पाने का हकदार है जितनी से संविदा कीमत उस कीमत से अधिक है जोख उस समय चावल के लिए अभिप्राप्त कर सकता हो जिस समय ख को क जतलाता है कि वह चावल प्रतिगृहीत नहीं करेगा।
(घ ) ख को पोत को 60,000 रुपए पर खरीदने की संविदा क करता है, किन्तु अपना वचन भंग कर देता है। क प्रतिकर के रूप में ख को वह अधिकाई, यदि कोई हो, देगा जितनी से संविदा-कीमत उस कीमत से अधिक हो, जो ख वचन-भंग के समय पोत के लिए अभिप्राप्त कर सकता था।
(ङ) क, जो एक नौका का स्वामी है, विनिर्दिष्ट दिन प्रस्थान करके मिर्जापुर को वहां विक्रय के लिए पटसन के स्थोरा को ले जाने की ख से संविदा करता है। किसी परिहार्य हेतुक से नौका नियत समय पर प्रस्थान नहीं करती जिससे वह स्थोरा मिर्जापुर में उस समय के पश्चात् पहुंचता है जिस समय वह पहुंचता यदि उस नौका ने संविदा के अनुसार प्रस्थान किया होता। उस तारीख के पश्चात् और स्थोरा के पहुंचने से पूर्व पटसन की कीमत गिर जाती है। क द्वारा ख को देय प्रतिकर का परिणाम वह अन्तर है जो उस कीमत का, जो स्थोरा के लिए ख मिर्जापुर में उस समय अभिप्राप्त कर सकता था जब कि वह पहुंचता यदि वह सम्यक् अनुक्रम में भेजा गया होता उस कीमत से है, जो उस समय, उस स्थोरा की बाजार में हो, जब वह वास्तव में पहुंचा।
(च) ख के गृह की मरम्मत अमुक प्रकार से करने के लिए संविदा क करता है और उसके लिए संदाय अग्रिम पाता है। क गृह की मरम्मत कर करता है किन्तु संविदा के अनुसार नहीं । ख वह् खर्चा क से वसूल करने का हकदार है जो इसलिए करना हो कि मरम्मत संविदा के अनुरूप हो जाए।
(छ) क अपना पोत अमुक भाड़े पर ख को पहली जनवरी से एक वर्ष के लिए देने की संविदा करता है । ढुलाई की दरें चढ़ जाती हैं और पहली जनवरी को पोत के लिए अभिप्राय: भाड़ा संविदा भोड़े से ऊंचा है। क अपना वचन भंग करता है। उसे संविदा-भाड़े और उस भाड़े के बीच के अन्तर के बराबर की राशि ख को प्रतिकर के रूप में देनी होगी जिस पर ख पहली जनवरी को और एक वर्ष के लिए वैसे ही पोत को भाड़े पर ले सकता हो।
(ज) ख को लोहे की अमुक मात्रा ऐसी नियत कीमत पर प्रदाय करने की संविदा क करता है जो उस कीमत से ऊंची है जिस पर क उस लोहे का उपापन और परिदान कर सकता है। ख उस लोहे को लेने से सदोष इन्कार कर देता है। लोहे की संविदा-कीमत और उस राशि के बीच का अन्तर, जिस पर क उस लोहे को अभिप्राप्त और परिदत्त कर सकता है, क के प्रति प्रतिकर के रूप में ख को देना होगा।
(झ) ख को, जो सामान्य वाहक है, क एक मशीन क की मिल तक अबिलम्ब प्रवहित किए जाने के लिए यह जानकारी देकर परिदत्त करता है कि उस मशीन के अभाव में क की मिल रुकी पड़ी है । ख मशीन के परिदान में अयुक्तियुक्त विलम्ब करता है और सरकार के साथ होने वाली लाभदायक संविदा क के हाथ से उसके परिणामस्वरूप निकल जाती है। क, प्रतिकर के रूप में ख से उस औसत लाभ की रकम पाने का हकदार है जो उस समय के दौरान में, जिसमें उसका परिदान विलम्बित हुआ, मिल के चालू रहने से हुआ होता, किन्तु सरकार के साथ होने वाली संविदा के हाथ से निकल जाने से हुई हानि के लिए प्रतिकर पाने का हकदार नहीं है।
(ञ) ख से क यह संविदा करता है कि वह 100 रुपए प्रति टन की दर से 1,000 टन लोहा, जो कथित समय पर परिदत्त किया जाएगा, उसे प्रदाय करेगा। वह ग को यह बतलाकर कि मैं ख के साथ हुई अपनी संविदा का पालन करने के प्रयोजन से तुम से संविदा कर रहा हूं उससे 80 रुपए प्रति टन दर से 1,000 टन लोहा लेने की संविदा करता है । क के साथ अपनी संविदा का पालन करने में ग असफल होता है । क दूसरा लोहा उपाप्त नहीं कर सकता और उसके परिणामस्वरूप ख संविदा का विखंडन कर देता है । क के प्रति ग को, 20,000 रुपए देने होंगे जो उस लाभ की रकम है जो ख से अपनी संविदा का पालन करने पर क प्राप्त करता।
(ट) क अमुक मशीनरी को विनिर्दिष्ट कीमत पर नियत दिन तक बनाने और परिदत्त करने कीख से संविदा करता है। क उस मशीनरी को विनिर्दिष्ट समय पर परिदत्त नहीं करता और इसके परिणामस्वरूप ख उस कीमत से, जो वह क को देने वाला था, ऊंची कीमत पर कोई दूसरी मशीनरी उपाप्त करने के लिए विवश हो जाता है, और उस संविदा का पालन नहीं कर सकता जो क के साथ की गई अपनी संविदा के समय ख ने एक पर-व्यक्ति से की थी (किंतु जिसकी सूचना उसने तब तक क को नहीं दी थी) और उस संविदा के भंग के लिए प्रतिकर देने को विवश किया जाता है । संविदा द्वारा नियत मशीनरी की कीमत और ख द्वारा किसी दूसरी मशीनरी के लिए दी गई राशि के बीच का अंतर प्रतिकर के रूप में ख के प्रति क को देना होगा किन्तु वह राशि नहीं, जो ख द्वारा पर-व्यक्ति को प्रतिकर के रूप में दी गई थी।
(ठ) एक निर्माता क पहली जनवरी तक एक गृह निर्मित और पूरा करने की संविदा करता है जिससे ग को, जिसे उस गृह को भाटक पर देने की ख ने संविदा की है, ख उसका कब्जा उस समय दे सके । ख और ग के बीच की संविदा की जानकारी क को दे दी जाती है । क गृह को इतनी बुरी तरह से निर्मित करता है कि पहली जनवरी से पूर्व वह गिर जाता है और ख को उसका पुनर्निर्माण करना पड़ता है, जिसके परिणामस्वरूप वह उस भाटक की, जो उसे ग से मिलता हानि उठाता है और ग को अपनी संविदा के भंग के लिए प्रतिकर देने को बाध्य हो जाता है। गृह के पुनर्निर्माण के खर्च के लिए, भाटक की हानि के लिए और ग को दिए गए प्रतिकर के लिए ख के प्रति क को प्रतिकर देना होगा।
(ड) ख को क कुछ वाणिज्या यह वारण्टी देते हुए बेचता है कि वह एक विशिष्ट क्वालिटी की है और इस वारंटी के भरोसे ख वैसी ही वारंटी पर उसे ग को बेच देता है। वह माल वारंटी के अनुसार साबित नहीं होता और ग को ख एक धनराशि प्रतिकर के रूप में देने का दायी हो जाता है । ख इस राशि की क द्वारा प्रतिपूर्ति का हकदार है।
(ढ) क विनिर्दिष्ट दिन ख को एक धनराशि देने की संविदा करता है। क वह धन उस दिन नहीं देता। उस दिन धन न पाने के परिणामस्वरूप ख अपने ऋण के संदाय में असमर्थ रहता है और पूर्णतया बरबाद हो जाता है । ख को संदाय करने के दिन तक के ब्याज सहित उस मूल राशि के सिवाय, जिसके संदाय की उसने संविदा की थी, ख की अन्य कोई प्रतिपूर्ति करने के लिए क दायी नहीं है।
(ण) क अमुक कीमत पर 50 पर मन शोरा पहली जनवरी को ख को परिदत्त करने की संविदा करता है। तत्पश्चात् ख पहली जनवरी से पूर्व उस शोरे को पहली जनवरी की बाजार-कीमत से ऊंची कीमत पर ग को बेचने की संविदा करता है। क अपना वचनभंग करता है । क द्वारा ख को देय प्रतिकर का प्राक्कलन करने में पहली जनवरी की बाजार-कीमत, न कि वह लाभ, जो ख को क के हाथ बेचने से मिलता, गणना में लिया जाना है।
(त) क रुई की 500 गांठे ख को बेचने और एक नियत दिन पर परिदत्त करने की संविदा करता है। ख के अपने कारवार के संचालन के ढंग के बारे में क कुछ नहीं जानता। क अपना वचन-भंग करता है और ख रुई न होने के कारण अपनी मिल बंद करने के लिए विवश हो जाता है। मिल बंद होने से ख को कारित हानि के लिए ख के प्रति क उत्तरदायी नहीं है।
(थ) अमुक कपड़ा जिससे ख ऐसी विशिष्ट किस्म की टोपियां बनाने का आशय रखता है जिसके लिए उन दिनों के सिवाय और कभी कोई मांग नहीं होती, ख को बेचने और पहली जनवरी को परिदत्त करने की संविदा क करता है। वह कपड़ा नियत के पश्चात् तक परिदत्त नहीं किया जाता और टोपियां बनाने में उस वर्ष उसे उपयोग में नहीं लाया जा सकता। कपड़े की संविदा-कीमत और परिदान के समय उसके बाजार-दाम के अंतर को प्रतिकर के रूप में क से ख पाने का हकदार है किंतु वह न तो उन लाभों को पाने का हकदार है जिनको वह टोपियां बनाने से अभिप्राप्त करने की आशा करता था, और न उन व्ययों को, जो टोपियां बनाने के लिए की गई तैयारी में उसे करने पड़े हों।
(द) क, जो एक पोत का स्वामी है. ख से संविदा करता है कि वह उसे पहली जनवरी को यात्रारंभ करने वाले पोत में कलकत्ते से सिडनी ले जाएगा और ख यात्रा भाड़े का आधा भाग निक्षेप के रूप में क को दे देता है । वह पोत पहली जनवरी को यात्रारंभ नहीं करता है उसके परिणामस्वरूप कुछ समय के कलकत्ते में रुके रहने और उस कारण कुछ व्यय उठाने के पश्चात् ख एक अन्य जलयान में सिडनी के लिए प्रस्थान करता है और परिणास्वरूप सिडनी में देरी से पहुंचने के कारण कुछ धनराशि की हानि उठाता है । ख को ब्याज सहित उसका निक्षेप, और वे व्यय जो उसे कलकत्ते में रुके रहने के कारण उठाने पड़े और पहले पोत के लिए करार पाए गए भाड़े से दूसरे पोत के लिए दिए गए यात्रा भाड़े की अधिकाई, यदि कुछ हो, प्रतिदत्त करने का क दायी है किंतु वह उस धन के लिए दायी नहीं है जिसकी हानि ख ने सिडनी में देर से पहुचने के कारण उठाई है।

Indian Contract Act Section-73 (IC Act Section-73 in English)

Compensation for loss or damage caused by breach of contract

When a contract has been broken, the party who suffers by such breach is entitled to receive, from the party who has broken the contract, compensation for any loss or damage caused to him thereby, which naturally arose in the usual course of things from such breach, or which the parties knew, when they made the contract, to be likely to result from the breach of it.
Such compensation is not to be given for any remote and indirect loss or damage sustained by reason of the breach.
Compensation for failure to discharge obligation resembling those created by contract.—When an obligation resembling those created by contract has been incurred and has not been discharged, any person injured by the failure to discharge it is entitled to receive the same compensation from the party in default, as if such person had contracted to discharge it and had broken his contract.
Explanation.—In estimating the loss or damage arising from a breach of contract, the means which existed of remedying the inconvenience caused by the non-performance of the contract must be taken into account.
Illustrations
(a) A contracts to sell and deliver 50 maunds of saltpetre to B, at a certain price to be paid on delivery. A breaks his promise. B is entitled to receive from A, by way of compensation, the sum, if any, by which the contract price falls short of the price for which B might have obtained 50 maunds of saltpetre of like quality at the time when the saltpetre ought to have been delivered.
(b) A hires B‟s ship to go to Bombay, and there take on board, on the first of January, a cargo, which A is to provide, and to bring it to Calcutta, the freight to be paid when earned. B‟s ship does not go to Bombay, but A has opportunities of procuring suitable conveyance for the cargo upon terms as advantageous as those on which he had chartered the ship. A avails himself of those opportunities, but is put to trouble and expense in doing so. A is entitled to receive compensation from B in respect of such trouble and expense.
(c) A contracts to buy of B, at a stated price, 50 maunds of rice, no time being fixed for delivery. A afterwards informs B that he will not accept the rice if tendered to him. B is entitled to receive from A, by way of compensation, the amount, if any, by which the contract price exceeds that which B can obtain for the rice at the time when A informs B that he will not accept it.
(d) A contracts to buy B‟s ship for 60,000 rupees, but breaks his promise. A must pay to B, by way of compensation, the excess, if any, of the contract price over the price which B can obtain for the ship at the time of the breach of promise.
(e) A, the owner of a boat, contracts with B to take a cargo of jute to Mirzapur, for sale at that place, starting on a specified day. The boat, owing to some avoidable cause, does not start at the time appointed, whereby the arrival of the cargo at Mirzapur is delayed beyond the time when it would have arrived if the boat had sailed according to the contract. After that date, and before the arrival of the cargo, the price of jute falls. The measure of the compensation payable to B by A is the difference between the price which B could have obtained for the cargo at Mirzapur at the time when it would have arrived if forwarded in due course, and its market price at the time when it actually arrived.
(f) A contracts to repair B‟s house in a certain manner, and receives payment in advance. A repairs the house, but not according to contract. B is entitled to recover from A the cost of making the repairs conform to the contract.
(g) A contracts to let his ship to B for a year, from the first of January, for a certain price. Freights rise, and, on the first of January, the hire obtainable for the ship is higher than the contract price. A breaks his promise. He must pay to B, by way of compensation, a sum equal to the difference between the contract price and the price for which B could hire a similar ship for a year on and from the first of January.
(h) A contracts to supply B with a certain quantity of iron at a fixed price, being a higher price than that for which A could procure and deliver the iron. B wrongfully refuses to receive the iron. B must pay to A, by way of compensation, the difference between the contract price of the iron and the sum for which A could have obtained and delivered it.
(i) A delivers to B, a common carrier, a machine, to be conveyed, without delay, to A‟s mill, informing B that his mill is stopped for want of the machine. B unreasonably delays the delivery of the machine, and A, in consequence, loses a profitable contract with the Government. A is entitled to receive from B, by way of compensation, the average amount of profit which would have been made by the working of the mill during the time that delivery of it was delayed, but not the loss sustained through the loss of the Government contract.
(j) A, having contracted with B to supply B with 1,000 tons of iron at 100 rupees a ton, to be delivered at a stated time, contracts with C for the purchase of 1,000 tons of iron at 80 rupees a ton, telling C that he does so for the purpose of performing his contract with B. C fails to perform his contract with A, who cannot procure other iron, and B, in consequence, rescinds the contract. C must pay to A 20,000 rupees, being the profit which A would have made by the performance of his contract with B.
(k) A contracts with B to make and deliver to B, by a fixed day, for a specified price, a certain piece of machinery. A does not deliver the piece of machinery at the time specified, and in consequence of this, B is obliged to procure another at a higher price than that which he was to have paid to A, and is prevented from performing a contract which B had made with a third person at the time of his contract with A (but which had not been then communicated to A), and is compelled to make compensation for breach of that contract. A must pay to B, by way of compensation, the difference between the contract price of the price of machinery and the sum paid by B for another, but not the sum paid by B to the third person by way of compensation.
(l) A, a builder, contracts to erect and finish a house by the first of January, in order that B may give possession of it at that time to C, to whom B has contracted to let it. A is informed of the contract between B and C. A builds the house so badly that, before the first of January, it falls down and has to be re-built by B, who, in consequence, loses the rent which he was to have received from C, and is obliged to make compensation to C for the breach of his contract. A must make compensation to B for the cost of rebuilding the house, for the rent lost, and for the compensation made to C.
(m) A sells certain merchandise to B, warranting it to be of a particular quality, and B, in reliance upon this warranty, sells it to C with a similar warranty. The goods prove to be not according to the warranty, and B becomes liable to pay C a sum of money by way of compensation. B is entitled to be reimbursed this sum by A.
(n) A contracts to pay a sum of money to B on a day specified. A does not pay the money on that day, B, in consequence of not receiving the money on that day, is unable to pay his debts, and is totally ruined. A is not liable to make good to B anything except the principal sum he contracted to pay, together with interest up to the day of payment.
(o) A contracts to deliver 50 maunds of saltpetre to B on the first of January, at a certain price. B afterwards, before the first of January, contracts to sell the saltpetre to C at a price higher than the market price of the first of January. A breaks his promise.
In estimating the compensation payable by A to B, the market price of the first of January, and not the profit which would have arisen to B from the sale to C, is to be taken into account.
(p) A contracts to sell and deliver 500 bales of cotton to B on a fixed day. A knows nothing of B‟s mode of conducting his business. A breaks his promise, and B, having no cotton, is obliged to close his mill. A is not responsible to B for the loss caused to B by the closing of the mill.
 (q) A contracts to sell and deliver to B, on the first of January, certain cloth which B intends to manufacture into caps of a particular kind, for which there is no demand, except at that season. The cloth is not delivered till after the appointed time, and too late to be used that year in making caps. B is entitled to receive from A, by way of compensation, the difference between the contract price of the cloth and its market price at the time of delivery, but not the profits which he expected to obtain by making caps, nor the expenses which he has been put to in making preparation for the manufacture.
 (r) A, a ship-owner, contracts with B to convey him from Calcutta to Sydney in A‟s ship, sailing on the first of January, and B pays to A, by way of deposit, one-half of his passage-money. The ship does not sail on the first of January, and B, after being in consequence detained in Calcutta for some time and thereby put to some expense, proceeds to Sydney in another vessel, and, in consequence, arriving too late in Sydney, loses a sum of money. A is liable to repay to B his deposit, with interest, and the expense to which he is put by his detention in Calcutta, and the excess, if any, of the passage-money paid for the second ship over that agreed upon for the first, but not the sum of money which B lost by arriving in Sydney too late.

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