नमस्कार दोस्तों, आज हम आपके लिए भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 165 के बारे में पूर्ण जानकारी देंगे। क्या कहती है भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 165, साथ ही क्या बतलाती है, यह भी इस लेख के माध्यम से आप तक पहुंचाने का प्रयास करेंगे।
धारा 165 का विवरण
भारतीय साक्ष्य अधिनियम (Indian Evidence Act) की धारा 165 के अन्तर्गत न्यायाधीश सुसंगत तथ्यों का पता चलाने के लिए या उनका उचित सबूत अभिप्राप्त करने के लिए, किसी भी रूप में, किसी भी समय, किसी भी साक्षी या पक्षकारों से, किसी भी सुसंगत या विसंगत तथ्य के बारे में कोई भी प्रश्न, जो वह चाहे, पूछ सकेगा, तथा किसी भी दस्तावेज या चीज को पेश करने का आदेश दे सकेगा, और न तो पक्षकार और न उनके अभिकर्ता हकदार होंगे कि वह किसी भी ऐसे प्रश्न या आदेश के प्रति कोई भी आक्षेप करे।
भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 165 के अनुसार
प्रश्न करने या पेश करने का आदेश देने की न्यायाधीश की शक्ति–
न्यायाधीश सुसंगत तथ्यों का पता चलाने के लिए या उनका उचित सबूत अभिप्राप्त करने के लिए, किसी भी रूप में, किसी भी समय, किसी भी साक्षी या पक्षकारों से, किसी भी सुसंगत या विसंगत तथ्य के बारे में कोई भी प्रश्न, जो वह चाहे, पूछ सकेगा, तथा किसी भी दस्तावेज या चीज को पेश करने का आदेश दे सकेगा, और न तो पक्षकार और न उनके अभिकर्ता हकदार होंगे कि वह किसी भी ऐसे प्रश्न या आदेश के प्रति कोई भी आक्षेप करे, न ऐसे किसी भी प्रश्न के प्रत्युत्तर में दिए गए किसी भी उत्तर पर किसी भी साक्षी की न्यायालय की इजाजत के बिना प्रतिपरीक्षा करने के हकदार होंगे:
परन्तु निर्णय को उन तथ्यों पर, जो इस अधिनियम द्वारा सुसंगत घोषित किए गए हैं और जो सम्यक् रूप से साबित किए गए हों, आधारित होना होगा:
परन्तु यह भी कि न तो यह धारा न्यायाधीश को किसी साक्षी को किसी ऐसे प्रश्न का उत्तर देने के लिए। या किसी ऐसी दस्तावेज को पेश करने को विवश करने के लिए प्राधिकृत करेगी, जिसका उत्तर देने से या जिसे पेश करने से, यदि प्रतिपक्षी द्वारा वह प्रश्न पूछा गया होता या वह दस्तावेज मंगायी गई होती, तो ऐसा साक्षी दोनों धाराओं को सम्मिलित करते हुए धारा 121 से धारा 131 पर्यन्त धाराओं के अधीन इन्कार करने का हकदार होता; और न न्यायाधीश कोई ऐसा प्रश्न पूछेगा जिसका पूछना किसी अन्य व्यक्ति के लिए धारा 148 या धारा 149 के अधीन अनुचित होता; और न वह एतस्मिन्पूर्व अपवादित दशाओं के सिवाय किसी भी दस्तावेज के प्राथमिक साक्ष्य का दिया जाना अभिमुक्त करेगा।
Judge’s power to put questions or order production-
The Judge may, in order to discover or to obtain proper proof of relevant facts, ask any question he pleases, in any form, at any time, of any witness, or of the parties, about any fact relevant or irrelevant; and may order the production of any document or thing; and neither the parties nor their agents shall be entitled to make any objection to any such question or order, nor, without the leave of the Court, to cross-examine any witness upon any answer given in reply to any such question :
Provided that the judgment must be based upon facts declared by this Act to be relevant, and duly proved:
Provided also that this section shall not authorize any Judge to compel any witness to answer any question, or to produce any document which such witness would be entitled to refuse to answer or produce under Sections 121 to 131, both inclusive, if the questions were asked or the document were called for by the adverse party; nor shall the Judge ask any question which it would be improper for any other person to ask under Section 148 or 149, nor shall he dispense with primary evidence of any document, except in the cases hereinbefore excepted.
हमारा प्रयास भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 165 की पूर्ण जानकारी, आप तक प्रदान करने का है, उम्मीद है कि उपरोक्त लेख से आपको संतुष्ट जानकारी प्राप्त हुई होगी, फिर भी अगर आपके मन में कोई सवाल हो, तो आप कॉमेंट बॉक्स में कॉमेंट करके पूछ सकते है।