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लोन एग्रीमेंट क्या होता है | What is Loan Agreement?

लोन एग्रीमेेंट (Loan Agreement) एक प्रकार से समझौता/करार है, जिसमे लोन देने वाला व्यक्ति एवंम् लेने वाले व्यक्ति के मध्य नियमों एवंंम् शर्तो को मामने के लिये एक करार या एग्रीमेंट बनाया जाता है, जिसमे लोन देने वाली कम्पनी अथवा संस्था, लोन लेने वाले या प्राप्तकर्ता को उन सभी बिन्दुओ और करारों को स्वीकार कराती है, जैसे लोन पर ब्याज कितना देय होगा, देरी होने पर शुल्क एवंम् दंड का क्या प्रावधान होगा और कितने समय तक चुकाना पडेंगा, अगर समय से नही दे पाते हो, तो क्या एक्शन लिया जायेगा इत्यादि सभी शर्तो एवंम् नियमों का पालन करने के उपरान्त ही यदि लोन लेने वाला व्यक्ति या प्राप्तकर्ता लोन एग्रीमेंट पर हस्ताक्षर करता है, उसके पश्चात् ही लोन दिया जाता है, इसी करार को लोन एग्रीमेंट कहते है।

लोन एग्रीमेंट (Loan Agreement) कराने का मुख्य आशय यह होता है कि यदि किसी लोन प्राप्तकर्ता व्दारा लोन लिया गया है और वह व्यक्ति अपने लोन को समय से नही चुका रहा है या लोन चुकाने मे कोई आना कानी करता है अथवा एग्रीमेंट के अनुसार किन्ही शर्तो का दुरूपयोग कर रहा है, तो लोन देने वाले व्यक्ति, कम्पनी अथवा सास्था को कानूनी रूप से बल मिलता है, और वह सास्था ऐसे व्यक्तियों पर नियमित रूप से न्यायिक कार्यवाही करने मे सक्षम रहता है।

लोन एग्रीमेंट के प्रकार क्या है? (What are the types of loan agreement?)

लोन एग्रीमेंट कितने प्रकार के होते है, यह जानने से पहले हमे यह समझना जरूरी होगा कि लोन कितने प्रकार से दिया जाता है और लोन देने एवंम् लोन लेने वाले व्यक्ति के मध्य उन्ही प्रकार से बाध्य होंगे, जिस प्रकार से उस व्यक्ति ने उन कारणों पर लोन लिया है, तो आइयेे पहले समझते है, लोन दो प्रकार से मिलता है, पहला सुरक्षित लोन और दूसरा असुरक्षित लोन लोन वाले वाले व्यक्ति व्दारा जिस भी प्रकार से बैंक अथवा किसी सास्थां से किस प्रकार से लोन लिया है, यह निर्भर करता है, दोनो प्रकार से लोन की अपनी शर्ते एवंम् अपने नियम होते है, जिनके आधार पर ही किसी व्यक्ति को बैंक या कोई सांस्था लोन देती है।

सुरक्षित लोन (Secured Loan): यह सुरक्षित लोन किसी बैंक या सांस्था व्दारा आसानी के लोन लेने वाले व्यक्ति को दे दिया जाता है, यदि कोई व्यक्ति अपनी किसी वस्तु जिसका वह स्वंय मालिक हो जैसे जमीन, घर, दुकान, फैक्ट्री, गाड़ी या कोई मूल्यवान वस्तु को गारन्टी के तौर पर रखकर लोन लेता है, तो बैंक या सांस्था आसानी से लोन दे देती है, क्यो गारंटी रखी होने के कारण कम जोखिम भरा माना जाता है। यदि कोई व्यक्ति लोन लेने के पश्चात् समय से भुगतान नही कर रहा होता है या लोन अदा नही कर पाता है, तो उस वस्तु को जिसे लोन प्राप्तकर्ता व्दारा गिरवी रखी है, उसे अपने कब्जे मे कर लेती है और वह उनका अधिकार भी होता है।

सुरक्षित लोन देने वाली संस्था अथवा बैंक अपनी सुरक्षा पहले ही किसी मूल्यवान वस्तु को रखकर कर लेती है। इनकी शर्ते एवंम् एग्रीमेंट भी उन्ही आधारो के अनुरूप तैयार किया जाता है। जिसे सुरक्षित लोन एग्रीमेंट (Secured Loan Agreement) कहते है।

असुरक्षित लोन (Unsecured Loan): यह असुरक्षित लोन किसी बैंक या सांस्था व्दारा आसानी से नही दिया जाता है, यह लोन व्यक्ति यदि किसी सांस्था या बैंक से काफी समय से जुड़ा और बैंक या सांस्था को ऐसा लगता है कि यह व्यक्ति समय से चुका देगा, तो वह सांस्था अगर चाहे, तो दे सकती है और मना भी करने का पूरा हकदार होती है, क्योकि ऐसे लोन पूर्ण जोखिम भरे माने जाते है। यह लोन क्रेडिट कार्ड, पर्सनल लोन के रूप मे दिये जाते है, जिसमे काफी ज्यादा ब्याज दर पर लोन दिया जाता है। यदि कोई लोन नही चुकाता है, तो वह न्यायिक कार्यवाही करने का हकदार होता है।

असुरक्षित लोन देने वाली संस्था अथवा बैंक अपनी सुरक्षा एवंम् लोन देने वाले व्यक्ति के दस्तावेजों के आधार पर अत्यधिक ब्याज दर लेने के उद्देश्य से लोन देती है। यह एग्रीमेंट वह अपनी शर्तो एवंम् नियमो के आधार पर तैयार कराती है। जिसे असुरक्षित एग्रीमेंट (Unsecured Loan Agreement) कहते है।

इस तरह से लोन एग्रीमेंट भी दो प्रकार से बैक एवंम् लोन प्राप्तकर्ता के मध्य बनाया जाता है, जिसका उद्देश्य लोन चुकाने की अवधि, लोन ब्याज दर, देरी होने पर शुल्क या दंड का क्या प्रावधान है इत्यादि सभी बिन्दुओं पर एग्रीमेंट तैयार किया जाता है। दोनों प्रकार के लोन के लिये बैंक या सांस्था की अलग – अलग शर्ते होती है, जिनके आधार पर लोन दिया जाता है और इन सभी शर्तो के लोन देने वाली सांस्था या बैंक एवंम् लोन लेने वाले या लोन प्राप्तकर्ता को मानना पड़ता है, यदि दोनों मे कोई भी किन्ही शर्तो का उलंघन कर्ता है, तो दूसरा पक्ष एग्रीमेंट के आधार पर न्यायिक कार्यवाही करने अधिकारी होता है।

क्या लोन लेने के लिये लोन एग्रीमेंट पढ़ना जरुरी है? (Is it necessary to read the loan agreement for taking a loan?)

हम मे से बहुत से लोन लेते है, क्या कभी लोन एग्रीमेंट पढ़ा है अथवा एक कॉपी लोन एग्रीमेंट की बैंक से मांगी है? लोन लेते समय यह ध्यान रखने वाली बात है कि कभी कभी हम इन सभी चीजों को इग्नोर कर देते है, और कभी-कभी आगे जाकर काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ जाता है, क्योकि अक्सर हम इन महत्वपूर्ण बातों को भूल ही जाते है, कि बैंक ने हमसे जिन कागजों मे हस्ताक्षर कराया है पढ़ा है या नही और तो और अधिंकाशतः बैंक भी अपनी शर्तो को पूरी तरह से किसी नही बताती है, जिसका खामियाजा आगे चलकर भुगतना पड़ता है। इसलिये लोन लेते समय सभी दस्तावेजो को ध्यान पूर्वक पढ़े और एक कॉपी पहले ही ले ले। अन्यथा कभी कभी किसी बिन्दु को लेकर बैंक आपसे कई प्रकार से चार्ज के रूप से भी चार्ज करती है और आपको पता भी नही चल पाता है।

इस तरह से लोन लेने वाले व्यक्ति यह सांवधानी रखनी चाहिये कि लोन एग्रीमेंट मे क्या शर्ते है और एग्रीमेन्ट की एक कॉपी अपने पास भी रखना जरूरी है।

लोन लेन के लिये लोन एग्रीमेंट की महत्वपूर्ण बाते (Important points of loan agreement for loan)

लोन राशि: लोन एग्रीमेंट में लोन ली जाने वाली राशि का उल्लेख होना चाहिए।
ब्याज दर: लोन एग्रीमेंट में लोन ली जाने वाली राशि पर ब्याज दर के साथ-साथ लोन से जुड़े किसी भी अन्य कौन-कौन से शुल्क देय होंगे, उल्लेख होना चाहिए।
चुकौती की शर्तें: लोन एग्रीमेंट में चुकौती अनुसूची की रूपरेखा होनी चाहिए, जिसमें भुगतान की आवृत्ति और प्रत्येक भुगतान की देय तिथि लिखित होनी चाहिये।
भुगतान दंड: लोन एग्रीमेंट में यह निर्दिष्ट होना चाहिए कि क्या लोन को जल्दी चुकाने या देरी हो जाने पर कोई दंड है या नहीं।
डिफ़ॉल्ट प्रावधान: लोन एग्रीमेंट में स्पष्ट होना चाहिए कि क्या होता है यदि उधारकर्ता ऋण पर चूक करता है, जिसमें कोई विलंब शुल्क या दंड शामिल है, और क्या ऋणदाता को कानूनी कार्रवाई करने का अधिकार है।
कानून: लोन एग्रीमेंट को निर्दिष्ट करना चाहिए कि कौन से राज्य या देश के कानून समझौते को नियंत्रित करेंगे।
हस्ताक्षर: ऋणदाता और उधारकर्ता दोनों को इसे कानूनी रूप से बाध्यकारी बनाने के लिए ऋण समझौते पर हस्ताक्षर करना चाहिए।

यह लोन एग्रीमेंट बैंक एवंम् लोन लेने वाले व्यक्ति या प्राप्तकर्ता के मध्य कानूनी बाण्ड है, जिसका उपयोग यदि दोनो मे से किसी ने भी शर्तो का उलंघन किया तो दूसरा पक्ष न्यायिक कार्यवाही करने के लिये बाध्य होगा।

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