कंपनी अधिनियम की धारा 2| Companies Act Section 2

कंपनी अधिनियम Companies Act (Companies Act Section-2 in Hindi) के विषय में पूर्ण जानकारी देंगे। कंपनी अधिनियम की धारा 2 के अनुसार कंपनी अधिनियम 2013 के तहत अलग-अलग तरीके से परिभाषित किया गया है, Companies Act Section-2 के अन्तर्गत परिभाषित किया गया है।

कंपनी अधिनियम की धारा 2 (Companies Act Section-2) का विवरण

कंपनी अधिनियम की धारा 2 Companies Act Section-2 के अनुसार कंपनी अधिनियम 2013 के तहत अलग-अलग तरीके से परिभाषित किया गया है।

कंपनी अधिनियम की धारा 2 (Companies Act Section-2 in Hindi)

परिभाषाएं

इस अधिनियम में, जब तक कि संदर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो,

(1) “संक्षिप्त प्रास्पेक्टस” से ऐसा ज्ञापन अभिप्रेत है, जिसमें किसी प्रास्पेक्टस की ऐसी मुख्य विशेषताएं अन्तर्विष्ट हैं, जो प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड द्वारा इस निमित्त विनियम बनाकर विहित की जाएं:

(2) “लेखा मानक” से धारा 133 में निर्दिष्ट कंपनियों या कंपनियों के वर्ग के लिए लेखा मानक या उनकी कोई अन्य युक्तिका अभिप्रेत है;

(3) “परिवर्तन करना” या “परिवर्तन” के अंतर्गत परिवर्धन, लोप और प्रतिस्थापित करना भी है;

(4) “अपील अधिकरण” से धारा 410 के अधीन गठित किया गया राष्ट्रीय कंपनी विधि अपील अधिकरण अभिप्रेत है;

(5) “अनुच्छेद” से किसी कंपनी के मूल रूप से विरचित-या समय-समय पर यथापरिवर्तित या किसी पूर्व कंपनी विधि या इस अधिनियम के अनुसरण में लागू किए गए संगम-अनुच्छेद अभिप्रेत हैं;

(6) किसी अन्य कंपनी के संबंध में, “सहयोजित कंपनी” से ऐसी कंपनी अभिप्रेत है, जिसमें उस अन्य कंपनी का महत्वपूर्ण प्रभाव है, किन्तु जो ऐसा प्रभाव रखने वाली कंपनी की समनुषंगी कंपनी नहीं है और जिसके अंतर्गत सह-उद्यम कंपनी भी है।

स्पष्टीकरण -इस खंड के प्रयोजनों के लिए, “महत्वपूर्ण प्रभाव” से कुल शेयर पूंजी का कम से कम बीस प्रतिशत या किसी करार के अधीन कारबार संबंधी विनिश्चयों का नियंत्रण अभिप्रेत है;

(7) “संपरीक्षा मानक” से धारा 143 की उपधारा (10) में निर्दिष्ट कंपनियों या कंपनियों के वर्ग के लिए संपरीक्षा मानक या उसका कोई परिशिष्ट अभिप्रेत है;

(8) “प्राधिकृत पूंजी” या “अभिहित पूंजी” से ऐसी पूंजी अभिप्रेत है, जिसको कंपनी के ज्ञापन द्वारा कंपनी की शेयर पूंजी की अधिकतम रकम के रूप में प्राधिकृत किया गया है:

(9) “बैंककारी कंपनी” से बैंककारी विनियमन अधिनियम, 1949 की धारा 5 के खंड (ग) में यथापरिभाषित कोई बैंककारी कंपनी अभिप्रेत है;

(10) किसी कंपनी के संबंध में, “निदेशक बोर्ड’ या “बोर्ड’ से कंपनी के निदेशकों का सामूहिक निकाय अभिप्रेत है;

(11) “निगमित निकाय” या “निगम” के अंतर्गत भारत के बाहर निगमित कोई कंपनी भी है, किन्तु इसके अन्तर्गत निम्नलिखित नहीं हैं

(i) सहकारी सोसाइटियों से संबंधित किसी विधि के अधीन रजिस्ट्रीकृत कोई सहकारी सोसाइटी; और

(ii) ऐसा कोई अन्य निगमित निकाय (जो इस अधिनियम में यथापरिभाषित कंपनी नहीं है), जिसको केन्द्रीय सरकार अधिसूचना द्वारा, इस निमित्त विनिर्दिष्ट करे

 (12) “बही और कागज-पत्र” और “बही या कागज-पत्र” के अंतर्गत कागजपत्र पर या इलैक्ट्रानिक रूप में रखी गई लेखाबहियां, विलेख, वाउचर, लेख, दस्तावेज, कार्यवृत्त और रजिस्टर भी हैं;

(13) “लेखाबही” के अंतर्गत निम्नलिखित के संबंध में रखे गए अभिलेख भी

(i) किसी कंपनी द्वारा प्राप्त और व्यय की गई सभी धनराशियां तथा ऐसे विषय, जिनके संबंध में प्राप्तियां और व्यय होते हैं:

(ii) कंपनी द्वारा माल के सभी विक्रय और क्रय तथा सेवाएं: (iii) कंपनी की आस्तियां और दायित्व; तथा

(iv) ऐसी किसी कंपनी की दशा में, जो धारा 148 के अधीन विनिर्दिष्ट कंपनियों के किसी वर्ग से संबंधित है, लागत की ऐसी मदें, जो उस धारा के अधीन विहित की जाएं:

(14) किसी कंपनी के संबंध में “शाखा कार्यालय” से कंपनी द्वारा उस रूप में वर्णित कोई स्थापन अभिप्रेत है;

(15) “आहूत पूंजी” से पूंजी का ऐसा भाग अभिप्रेत है, जिसको संदाय के लिए मांगा गया है;

(16) “प्रभार” से किसी कंपनी या उसके किसी उपक्रम या दोनों की संपत्ति या आस्तियों के संबंध में प्रतिभूति के रूप में सृजित हित या धारणाधिकार अभिप्रेत है और इसके अंतर्गत बंधक भी है।

(17) “चार्टर्ड अकाउंटेंट” से ऐसा चार्टर्ड अकाउंटेंट अभिप्रेत है, जो चार्टर्ड अकाउंटेंट अधिनियम, 1949 की धारा 2 की उपधारा (1) के खंड (ख) में परिभाषित किया गया है, जो उस अधिनियम की धारा 6 की उपधारा (1) के अधीन व्यवसाय का विधिमान्य प्रमाणपत्र धारित करता है;

(18) “मुख्य कार्यपालक अधिकारी” से किसी कंपनी का ऐसा कोई अधिकारी अभिप्रेत है, जिसे उसके द्वारा उस रूप में पदाभिहित किया गया है;

(19) “मुख्य वित्तीय अधिकारी” से किसी कंपनी के मुख्य वित्तीय अधिकारी के रूप में नियुक्त कोई व्यक्ति अभिप्रेत है;

(20) “कंपनी” से इस अधिनियम के अधीन या किसी पूर्व कंपनी विधि के अधीन निगमित कोई कंपनी अभिप्रेत है;

(21) “प्रत्याभूति द्वारा परिसीमित कंपनी” से ऐसी कंपनी अभिप्रेत है, जिसके सदस्यों का दायित्व, ज्ञापन द्वारा ऐसी रकम तक परिसीमित है, जैसा, सदस्य क्रमशः उसके समापन की दशा में कंपनी की आस्तियों में अभिदाय करने का वचन दें;

(22) “शेयरों द्वारा परिसीमित कंपनी” से ऐसी कंपनी अभिप्रेत है, जिसके सदस्यों का दायित्व, ज्ञापन द्वारा ऐसी रकम तक, यदि कोई हो, परिसीमित है, जो क्रमशः उनके द्वारा धारित शेयरों पर असंदत्त है।

(23) “कंपनी समापक” से, जहां तक उसका संबंध किसी कंपनी के परिसमापन से है,

(क) अधिकरण द्वारा परिसमापन की दशा में, अधिकरण द्वारा, या

(ख) स्वेच्छया परिसमापन की दशा में, कंपनी या लेनदारों द्वारा, धारा 275 की उपधारा (2) के अधीन केन्द्रीय सरकार द्वारा रखे गए वृत्तिकों के पैनल से कंपनी समापक के रूप में नियुक्त किया गया व्यक्ति अभिप्रेत है;

(24) “कंपनी सचिव” या “सचिव” से ऐसा कंपनी सचिव अभिप्रेत है, जिसको कंपनी सचिव अधिनियम, 1980 की धारा 2 की उपधारा (1) के खंड (ग) में परिभाषित किया गया है, जिसको किसी कंपनी द्वारा इस अधिनियम के अधीन कंपनी सचिव के कृत्यों का पालन करने के लिए नियुक्त किया गया है;

(25) “व्यवसायरत कंपनी सचिव” से ऐसा कपंनी सचिव अभिप्रेत है, जिसको कंपनी सचिव अधिनियम, 1980 की धारा 2 की उपधारा (2) के अधीन व्यवसायरत समझा जाता है।

(26) “अभिदायी” से किसी कंपनी के परिसमापन की दशा में, उसकी आस्तियों के प्रति अभिदाय करने के लिए दायी व्यक्ति अभिप्रेत है ।

स्पष्टीकरण-इस खंड के प्रयोजनों के लिए, यह स्पष्ट किया जाता है कि किसी कंपनी में पूर्णतः समादत्त शेयर धारण करने वाले व्यक्ति को अभिदायी समझा जाएगा, किंतु ऐसे अभिदायी के अधिकारों को प्रतिधारित करते समय अधिनियम के अधीन अभिदायी के दायित्व नहीं होंगे;

(27) “नियंत्रण” के अन्तर्गत बहुसंख्यक निदेशकों को नियुक्त करने या प्रबंधन या ऐसे नीति विनिश्चयों का नियंत्रण करने का ऐसा अधिकार भी होगा, जो वैयक्तिक या सम्मिलित रूप से कार्य कर रहे किसी व्यक्ति या व्यक्तियों द्वारा उनके शेयर धारण या प्रबंधन अधिकारों या शेयर धारक करारों या मतदान करारों के आधार पर या किसी अन्य रीति से प्रत्यक्षतः या अप्रत्यक्षतः, प्रयोक्तव्य है।

(28) “लागत लेखापाल” से लागत और संकर्म लेखापाल अधिनियम, 1959 की धारा 2 की उपधारा (1) के खंड (ख) में यथापरिभाषित लागत लेखापाल अभिप्रेत है;

(29) “न्यायालय” से निम्नलिखित अभिप्रेत हैं,

(i) ऐसे स्थान के संबंध में, जहां संबंधित कंपनी का रजिस्ट्रीकृत कार्यालय स्थित है, अधिकारिता रखने वाला उच्च न्यायालय, उस विस्तार के सिवाय जहां अधिकारिता किसी जिला न्यायालय या उपखंड (ii) के अधीन उस उच्च न्यायालय के अधीनस्थ जिला न्यायालयों को प्रदत्त की गई है;

(iii) जिला न्यायालय, उन मामलों में, जहां केन्द्रीय सरकार ने, अधिसूचना द्वारा, किसी जिला न्यायालय को, ऐसी किसी कंपनी के संबंध में, जिसका रजिस्ट्रीकृत कार्यालय उस जिले में स्थित है, उसकी अधिकारिता की परिधि के भीतर उच्च न्यायालय को प्रदत्त सभी या किसी अधिकारिता का प्रयोग करने के लिए सशक्त किया है;

(iii) इस अधिनियम या किसी पूर्व कंपनी विधि के अधीन किसी अपराध का विचारण करने की अधिकारिता रखने वाला सेशन न्यायालय;

(iv) धारा 435 के अधीन स्थापित विशेष न्यायालय;

(v) इस अधिनियम या किसी पूर्व कंपनी विधि के अधीन किसी अपराध का विचारण करने की अधिकारिता रखने वाला कोई महानगर मजिस्ट्रेट या कोई प्रथम वर्ग न्यायिक मजिस्ट्रेट: .

(30) “डिबेंचर” के अंतर्गत डिबेंचर स्टाक, बंधपत्र या किसी ऋण के साक्ष्य के रूप में किसी कंपनी की कोई अन्य लिखत भी है, चाहे वह कंपनी की आस्तियों पर भार का गठन करती हो या नहीं;

(31) “निक्षेप” के अंतर्गत किसी कंपनी द्वारा निक्षेप या ऋण के रूप में या किसी अन्य रूप में धन की कोई रसीद अभिप्रेत है, किंतु रकम के ऐसे प्रवर्ग, जो भारतीय रिजर्व बैंक के परामर्श से विहित किए जाएं, इसके अन्तर्गत नहीं हैं;

(32) “निक्षेपागार” से, निक्षेपागार अधिनियम, 1996 की धारा 2 की उपधारा (1) के खंड (ङ) में यथापरिभाषित कोई निक्षेपागार अभिप्रेत है;

(33) “व्युत्पन्न” से, प्रतिभूति संविदा (विनियमन) अधिनियम, 1956 की धारा 2 के खंड (कग) में यथापरिभाषित व्युत्पन्न अभिप्रेत है;

(34) “निदेशक” से किसी कंपनी के बोर्ड में नियुक्त कोई निदेशक ‘ अभिप्रेत है;

(35) “लाभांश” के अंतर्गत कोई अंतरिम लाभांश भी है;

(36) “दस्तावेज” के अंतर्गत कागज-पत्रों में या इलैक्ट्रानिक रूप में रखे गए समन, सूचना, अध्यपेक्षा, आदेश, घोषणा, प्ररूप और रजिस्टर भी हैं, चाहे वे इस अधिनियम के अनुसरण में या तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि के अधीन या अन्यथा जारी किए गए हों, भेजे गए हों या रखे गए हों;

(37) “कर्मचारी-स्टाक विकल्प” से किसी कंपनी या उसकी नियंत्री कंपनी या समनुषंगी कंपनी या कंपनियों के, यदि कोई हों, निदेशकों, अधिकारियों या कर्मचारियों को दिया गया विकल्प अभिप्रेत है, जो ऐसे निदेशकों, अधिकारियों या कर्मचारियों को किसी भावी तारीख को किसी पूर्व अवधारित कीमत पर कंपनी के शेयरों का क्रय करने या उनमें अभिदाय करने का फायदा या अधिकार देता है;

(38) “विशेषज्ञ” के अंतर्गत कोई इंजीनियर मूल्यांकक, चार्टर्ड अकाउंटेंट, कंपनी सचिव, लागत लेखापाल और ऐसा कोई अन्य व्यक्ति भी है, जिसको तत्समय प्रवृत्त किसी विधि के अनुसरण में कोई प्रमाणपत्र जारी करने की शक्ति या प्राधिकार है:

(39) “वित्तीय संस्था” के अंतर्गत कोई अनुसूचित बैंक और भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम, 1934 के अधीन परिभाषित या अधिसूचित कोई अन्य वित्तीय संस्था भी है;

 (40) किसी कंपनी के संबंध में “वित्तीय विवरण” के अंतर्गत निम्नलिखित भी हैं

(i) वित्तीय वर्ष के अंत में तुलन-पत्र;

(ii) लाभ और हानि लेखा या लाभ के लिए कोई क्रियाकलाप न करने वाली किसी कंपनी की दशा में, वित्तीय वर्ष का आय-व्यय लेखा;

(iii) वित्तीय वर्ष का नकद प्रवाह विवरण; (iv) साम्या में, यदि लाग हो, परिवर्तनों का विवरण; और

(v) उपखंड (i) से उपखंड (iv) में निर्दिष्ट किसी दस्तावेज से उपाबद्ध या उसका भाग बनने वाला कोई स्पष्टीकारक टिप्पणी:

परन्तु एक व्यक्ति कंपनी, लघु कंपनी और निष्क्रिय कंपनी के संबंध में वित्तीय विवरण में नकद प्रवाह विवरण सम्मिलित नहीं हो सकेगा;

(41) किसी कंपनी या निगमित निकाय के संबंध में, “वित्तीय वर्ष” से प्रत्येक वर्ष की 31 मार्च को समाप्त होने वाली अवधि और जहां उसको किसी वर्ष की 1 जनवरी को या उसके पश्चात् निगमित किया गया है वहां उस आगामी वर्ष की 31 मार्च को समाप्त होने वाली अवधि अभिप्रेत है, जिसके संबंध में ऐसी कंपनी या निगमित निकाय का वित्तीय विवरण तैयार किया जाता है:

परंतु ऐसी किसी कंपनी या निगमित निकाय द्वारा किए गए आवेदन पर, जो कोई नियंत्री कंपनी या भारत के बाहर निगमित किसी कंपनी की समनुषंगी है और भारत के बाहर अपने लेखाओं के समेकन के लिए किसी भिन्न वित्तीय वर्ष का पालन करने के लिए अपेक्षित है, अधिकरण, यदि उसका समाधान हो जाता है तो उसके वित्तीय वर्ष के रूप में कोई अवधि अनुज्ञात कर सकेगा, चाहे वह अवधि कोई वर्ष हो या नहीं:

परंतु यह और कि इस अधिनियम के प्रारंभ पर विद्यमान कोई कंपनी या निगमित निकाय, ऐसे प्रारंभ से दो वर्ष की अवधि के भीतर, इस खंड के उपबंधों के अनुसार अपने वित्तीय वर्ष को सम्मिलित करेगा;

(42) “विदेशी कंपनी” से भारत के बाहर निगमित कोई कंपनी या निगमित निकाय अभिप्रेत है,

(क) जिसका भारत में, चाहे स्वयं द्वारा या किसी अभिकर्ता द्वारा, भौतिक रूप से या इलैक्ट्रानिक पद्धति द्वारा, कारबार का कोई स्थान है; और

(ख) जो किसी अन्य रीति से. भारत में किसी कारबारी क्रियाकलाप का संचालन करता है;

(43) “खली आरक्षिति” से ऐसी आरक्षितियां अभिप्रेत हैं, जो किसी कंपनी के अंतिम संपरीक्षित तुलन-पत्र के अनुसार लाभांश के रूप में वितरण के लिए उपलब्ध 

परन्तु

(i) अप्राप्त अभिलाभों, काल्पनिक अभिलाभों या आस्तियों के पुनर्मूल्यांकन को, चाहे आरक्षिति के रूप में या अन्यथा दर्शित किया गया हो, व्यक्त करने वाली किसी रकम को, या

(ii) किसी आस्ति या साम्या में मान्य ठहराए गए किसी दायित्व की वहन रकम में किसी परिवर्तन को, जिसके अन्तर्गत लाभ-हानि लेखे में अधिशेष भी है, उचित मूल्य पर आस्ति या दायित्व के मूल्यांकन पर, खुली आरक्षिति नहीं माना जाएगा;

(44) “वैश्विक निक्षेपागार रसीद” से किसी निक्षेपागार रसीद के रूप में कोई लिखत, चाहे किसी भी नाम से ज्ञात हो, अभिप्रेत है, जिसको, भारत के बाहर किसी विदेशी निक्षेपागार द्वारा सृजित और ऐसी निक्षेपागार रसीदों को पुरोधृत करने वाली कंपनी द्वारा प्राधिकृत किया गया है;

(45) “सरकारी कंपनी” से ऐसी कोई कंपनी अभिप्रेत है, जिसमें समादत्त शेयर पूंजी के इक्यावन प्रतिशत से अन्यून केन्द्रीय सरकार द्वारा या किसी राज्य सरकार या सरकारों द्वारा या भागतः केन्द्रीय सरकार द्वारा और भागतः एक या अधिक राज्य सरकारों द्वारा धारित किया जाता है और इसके अन्तर्गत ऐसी कंपनी भी है, जो ऐसी सरकारी कंपनी की समनुषंगी कंपनी है;

(46) एक या अधिक अन्य कंपनियों के संबंध में, “नियंत्री कंपनी” से ऐसी कंपनी अभिप्रेत है, जिसकी ऐसी कंपनियां, समनुषंगी कंपनियां हैं;

(47) “स्वतंत्र निदेशक” से धारा 149 की उपधारा (5) में निर्दिष्ट स्वतंत्र निदेशक अभिप्रेत है;

‘ (48) “भारतीय निक्षेपागार रसीद” से भारत में किसी घरेलू निक्षेपागार द्वारा सृजित और भारत के बाहर ऐसी निक्षेपागार रसीदों को पुरोधृत करने के लिए निगमित किसी कंपनी द्वारा प्राधिकृत किसी निक्षेपागार रसीद के रूप में कोई लिखत अभिप्रेत है;

(49) “हितबद्ध निदेशक” से ऐसा निदेशक अभिप्रेत है, जो किसी भी रूप में, चाहे स्वयं या अपने किसी नातेदार या ऐसी फर्म, निगमित निकाय या अन्य व्यष्टि संगम के माध्यम से, जिसमें वह या उसका कोई नातेदार, भागीदार निदेशक या सदस्य है, किसी कंपनी द्वारा या उसकी ओर से की गई या की जाने वाली किसी संविदा या ठहराव या प्रस्तावित संविदा या ठहराव में हितबद्ध है;

(50) “पुरोधृत पूंजी” से ऐसी पूंजी अभिप्रेत है, जिसको कंपनी समय-समय पर अभिदाय के लिए जारी करती है;

(51) किसी कंपनी के संबंध में, “मुख्य प्रबंधकीय कार्मिक” से निम्नलिखित अभिप्रेत हैं

(i) मुख्य कार्यपालक अधिकारी या प्रबंध निदेशक या प्रबंधक: (ii) कंपनी सचिव (iii) पूर्णकालिक निदेशक: (iv) मुख्य वित्तीय अधिकारी; और

(v) ऐसा अन्य अधिकारी, जो विहित किया जाए;

(52) “सूचीबद्ध कंपनी” से ऐसी कंपनी अभिप्रेत है, जिसकी कोई प्रतिभूति, किसी मान्यताप्राप्त स्टाक एक्सचेंज में सूचीबद्ध है;

(53) “प्रबंधक” से ऐसा व्यष्टि अभिप्रेत है, जिसके पास, निदेशक बोर्ड के अधीक्षण, नियंत्रण और निदेशन के अधीन रहते हुए, किसी कंपनी के कामकाज का संपूर्ण या सारवान् रूप से संपूर्ण प्रबंध है और इसके अन्तर्गत ऐसा निदेशक या प्रबंधक की हैसियत का अधिभोग करने वाला, उसका नाम चाहे जो भी हो, कोई अन्य व्यक्ति भी है, चाहे वह सेवा संविदा के अधीन हो या न हो;

(54) “प्रबंध निदेशक” से ऐसा निदेशक अभिप्रेत है, जिसमें, कंपनी के अनुच्छेदों के आधार पर या कंपनी के साथ किसी करार या उसके साधारण अधिवेशन में या उसके निदेशक बोर्ड द्वारा पारित किसी संकल्प के आधार पर कंपनी के कामकाज के प्रबंधन की सारवान् शक्तियां न्यस्त हैं और इसके अन्तर्गत प्रबंध निदेशक की हैसियत प्राप्त करने वाला कोई निदेशक भी है, उसका नाम चाहे जो भी हो।

स्पष्टीकरण-इस खंड के प्रयोजनों के लिए, जब बोर्ड द्वारा इस प्रकार प्राधिकृत किया गया हो, नैत्यिक स्वरूपी प्रशासनिक कार्यों को करने, जैसे कि किसी दस्तावेज पर कंपनी की सामान्य मुद्रा लगाने या किसी बैंक में कंपनी के खाते पर कोई चेक लिखने और पृष्ठांकित करने या कोई परक्राम्य लिखत तैयार करने और पृष्ठांकित करने या किसी शेयर प्रमाणपत्र पर हस्ताक्षर करने या किसी शेयर के अंतरण के रजिस्ट्रीकरण का निदेश देने की शक्ति का, प्रबंधन की सारवान् शक्तियों के भीतर सम्मिलित होना नहीं समझा जाएगा;

(55) किसी कंपनी के संबंध में, “सदस्य” से निम्नलिखित अभिप्रेत हैं.–

(i) कंपनी के ज्ञापन का ऐसा अभिदाता, जिसके द्वारा कंपनी का सदस्य बनना स्वीकार किया गया समझा जाएगा और उसके रजिस्ट्रीकरण पर उसके सदस्यों के रजिस्टर में सदस्य के रूप में प्रविष्ट किया जाएगा;

(ii) ऐसा प्रत्येक अन्य व्यक्ति, जो कंपनी का सदस्य बनने के लिए लिखित में करार करता है और जिसका नाम कंपनी के सदस्यों के रजिस्टर में प्रविष्ट है;

(iii) कंपनी के शेयर धारण करने वाला प्रत्येक व्यक्ति और जिसका नाम किसी निक्षेपागार के अभिलेखों में किसी फायदाग्राही स्वामी के रूप में प्रविष्ट है;

(56) “ज्ञापन” से, किसी पूर्व कंपनी विधि या इस अधिनियम के अनुसरण में किसी कंपनी का मूल रूप से विरचित या समय-समय पर यथापरिवर्तित, संगमज्ञापन अभिप्रेत है;

(57) “शुद्ध मूल्य” से संपरीक्षित तुलनपत्र के अनुसार, संचित हानियों, आस्थगित व्यय और अपलिखित न किए गए प्रकीर्ण व्यय के संकलित मूल्य की कटौती करने के पश्चात्, समादत्त शेयर पूंजी और लाभों में से सृजित सभी आरक्षितियों और प्रतिभूति प्रीमियम लेखे का संकलित मूल्य अभिप्रेत है, किन्तु इसके अंतर्गत आस्तियों के पुनर्मूल्यांकन, अवक्षयण के प्रतिलेखन और समामेलन में से सृजित आरक्षितियां नहीं हैं,

(58) “अधिसूचना” से राजपत्र में प्रकाशित अधिसूचना अभिप्रेत है और “अधिसूचित” पद का तद्नुसार अर्थ लगाया जाएगा;

(59) “अधिकारी” के अंतर्गत ऐसा कोई निदेशक, प्रबंधक या मुख्य प्रबंधकीय कार्मिक या ऐसा कोई व्यक्ति भी है, जिसके निदेशों या अनुदेशों के अनुसार, निदेशक बोर्ड या एक या अधिक निदेशक, कार्य करने का अभ्यस्त है या कार्य करने के अभ्यस्त हैं।

(60) “अधिकारी, जो व्यतिक्रमी है” से इस अधिनियम के ऐसे किसी उपबंध के प्रयोजन के लिए, जो यह अधिनियमित करता है कि कंपनी का ऐसा अधिकारी, जो व्यतिक्रमी है, कारावास, जुर्माने के रूप में या अन्यथा किसी शास्ति या दंड का दायी होगा, किसी कंपनी का निम्नलिखित कोई अधिकारी अभिप्रेत है, अर्थात् :

(i) पूर्णकालिक निदेशक; (ii) मुख्य प्रबंधकीय कार्मिक;

(iii) जहां कोई मुख्य प्रबंधकीय कार्मिक नहीं है, वहां ऐसा या ऐसे निदेशक, जिसको या जिनको इस निमित्त बोर्ड द्वारा विनिर्दिष्ट किया गया हो,

और जिसने या जिन्होंने ऐसे विनिर्देश के लिए बोर्ड को लिखित में अपनी सहमति दे दी है, या यदि किसी निदेशक को इस प्रकार विनिर्दिष्ट नहीं किया गया है तो सभी निदेशक;

(iv) ऐसा कोई व्यक्ति, जिस पर बोर्ड या किसी मुख्य प्रबंधकीय कार्मिक के प्रत्यक्ष प्राधिकार के अधीन किसी उत्तरदायित्व का, जिसके अंतर्गत लेखाओं या अभिलेखों को बनाए रखना, फाइल करना या वितरण करना भी है, भार है, किसी व्यतिक्रम को प्राधिकृत करता है, उसमें सक्रिय रूप से भाग लेता है, जानबूझकर अनुज्ञात करता है या जानबूझकर उसका निवारण करने के लिए सक्रिय उपाय करने में असफल रहता है;

(v) ऐसे व्यक्ति से भिन्न कोई व्यक्ति, जो वृत्तिक हैसियत में बोर्ड को सलाह देता है, जिसकी सलाह, निदेशों या अनुदेशों के अनुसार कंपनी का निदेशक बोर्ड कार्य करने का अभ्यस्त है;

(v) ऐसे व्यक्ति से भिन्न कोई व्यक्ति, जो वृत्तिक हैसियत में बोर्ड को सलाह देता है, जिसकी सलाह, निदेशों या अनुदेशों के अनुसार कंपनी का निदेशक बोर्ड कार्य करने का अभ्यस्त है;

(vi) इस अधिनियम के किसी उपबंध के उल्लंघन के संबंध में, ऐसा प्रत्येक निदेशक, जो बोर्ड की किन्हीं कार्यवाहियों की उसके द्वारा प्राप्ति के आधार पर या ऐसी कार्यवाहियों में उस पर आक्षेप किए बिना भागीदारी के आधार पर ऐसे उल्लंघन के बारे में जानता है या जहां ऐसा उल्लंघन उसकी सहमति या मौनानुकूलता से हुआ था;

(vii) कंपनी के किन्हीं शेयरों के पुरोधरण या अंतरण के संबंध में पुरोधरण या अंतरण करने वाले शेयर अंतरण अभिकर्ता, रजिस्ट्रार और वाणिज्यिक बैंककार;

(61) “शासकीय समापक” से धारा 359 की उपधारा (1) के अधीन नियुक्त शासकीय समापक अभिप्रेत है;

(62) “एक व्यक्ति कंपनी” से ऐसी कंपनी अभिप्रेत है, जिसमें सदस्य के रूप में केवल एक व्यक्ति है;

(63) “साधारण या विशेष संकल्प” से धारा 114 में निर्दिष्ट, यथास्थिति, कोई साधारण संकल्प या विशेष संकल्प अभिप्रेत है;

(64) “समादत्त शेयर पूंजी” या “शेयर पूंजी समादत्त” से समादत्त रूप में जमा की गई ऐसी कुल धनराशि अभिप्रेत है, जो पुरोधृत शेयरों के संबंध में समादत्त रूप में प्राप्त रकम के समतुल्य है और इसमें कंपनी के शेयरों के संबंध में समादत्त रूप में जमा की गई कोई रकम भी सम्मिलित है, किंतु इसमें ऐसे शेयरों के संबंध में उसका नाम चाहे जो भी हो, प्राप्त कोई अन्य रकम सम्मिलित नहीं है;

(65) “डाक मतदान” से डाक द्वारा या किसी इलैक्ट्रानिक पद्धति से मतदान करना अभिप्रेत है;

(66) “विहित” से इस अधिनियम के अधीन बनाए गए नियमों द्वारा विहित अभिप्रेत है; .

(67) “पूर्व कंपनी विधि” से नीचे विनिर्दिष्ट विधियों में से कोई विधि अभिप्रेत अभिप्रेत है.

(i) इंडियन कंपनीज ऐक्ट, 1866 से पूर्व प्रवृत्त कंपनियों से संबंधित अधिनियम;

(ii) इंडियन कंपनीज ऐक्ट, 1866;

(iii) इंडियन कंपनीज ऐक्ट, 1882;

(iv) इंडियन कंपनीज ऐक्ट, 1913

(v) अंतरित कंपनियों का रजिस्ट्रीकरण अध्यादेश, 1942;

(vi) कंपनी अधिनियम, 1956; और

(vii) पूर्वोक्त किसी अधिनियम या अध्यादेश की तत्स्थानी और

(अ) इंडियन कंपनीज ऐक्ट, 1913 के विस्तारण से पूर्व समामेलित राज्यक्षेत्रों में या किसी भाग ख राज्य (जम्मू-कश्मीर राज्य से भिन्न) या उसके किसी भाग में; या

(आ) जहां तक बैंककारी, बीमा और वित्तीय निगमों का संबंध है, जम्मू-कश्मीर (विधि विस्तारण) अधिनियम, 1956 के प्रारंभ से पूर्व और जहां तक अन्य निगमों का संबंध है, केन्द्रीय विधि (जम्मू-कश्मीर पर विस्तारण) अधिनियम, 1968 के प्रारंभ से पूर्व जम्मू-कश्मीर राज्य या उसके किसी भाग में.

प्रवृत्त किसी विधि में; –

(viii) जहां तक इसका संबंध “सोशीडाडेस ऐनोनिमास” से है, पुर्तगाली वाणिज्यिक संहिता; और

(ix) कंपनियों का रजिस्ट्रीकरण (सिक्किम) अधिनियम, 1961;

(68) “प्राइवेट कंपनी” से ऐसी कंपनी अभिप्रेत है, जिसकी एक लाख रुपए की न्यूनतम समादत्त शेयर पूंजी या ऐसी उच्चतर समादत्त शेयर पूंजी है, जो विहित की जाए और जो अपने अनुच्छेदों द्वारा

(i) अपने शेयरों के अंतरण के अधिकार को निर्बधित करती है

(ii) एक व्यक्ति कंपनी की दशा के सिवाय, अपने सदस्यों की संख्या को दो सौ तक सीमित करती है :

परंतु जहां दो या अधिक व्यक्ति किसी कंपनी के एक या अधिक शेयरों को संयुक्त रूप से धारण करते हैं, वहां इस खंड के प्रयोजनों के लिए उनको एकल सदस्य समझा जाएगा :

परंतु यह और कि

(अ) ऐसे व्यक्ति, जो कंपनी के नियोजन में हैं; और

(आ) ऐसे व्यक्ति, जो औपचारिक रूप से कंपनी के नियोजन में रहते हुए, उस नियोजन के समय, कंपनी के सदस्य थे और नियोजन में न रहने के पश्चात् सदस्य बने हुए हैं, सदस्यों की संख्या में सम्मिलित नहीं किए जाएंगे; और

(iii) कंपनी की किन्हीं प्रतिभूतियों के लिए अभिदाय करने के लिए जनता को आमंत्रित करने से प्रतिषिद्ध करती है।

(69) “संप्रवर्तक” से ऐसा व्यक्ति अभिप्रेत है,

(क) जिसको प्रास्पेक्टस में उस रूप में नामित किया गया है या धारा 92 में निर्दिष्ट वार्षिक विवरणी में कंपनी द्वारा परिचित कराया जाता है; या

(ख) जिसका कंपनी के काम-काज पर, प्रत्यक्षतः या अप्रत्यक्षतः, चाहे किसी शेयर धारक, निदेशक के रूप में या अन्यथा, नियंत्रण है;

(ग) जिसकी सलाह, निदेशों या अनुदेशों के अनुसार कंपनी का निदेशक, बोर्ड कार्य करने का अभ्यस्त है :

परंतु उपखंड (ग) की कोई बात ऐसे व्यक्ति को लागू नहीं होगी, जो केवल किसी वृत्तिक हैसियत से ही कार्य कर रहा है;

(70) “प्रास्पेक्टस” से प्रास्पेक्टस के रूप में वर्णित या जारी किया गया कोई दस्तावेज अभिप्रेत है और इसके अंतर्गत धारा 32 में निर्दिष्ट कोई लाल हेरिंग प्रास्पेक्टस या धारा 31 में निर्दिष्ट शेल्फ प्रास्पेक्टस या ऐसी कोई सूचना, परिपत्र, विज्ञापन या अन्य दस्तावेज भी है, जो किसी निगमित निकाय की किन्हीं प्रतिभूतियों के अभिदाय या क्रय के लिए जनता से प्रस्थापनाएं आमंत्रित करता है;

(71) “पब्लिक कंपनी” से ऐसी कंपनी अभिप्रेत है,

(क) जो प्राइवेट कंपनी नहीं है;

(ख) जिसकी पांच लाख रुपए की न्यूनतम समादत्त शेयर पूंजी या ऐसी उच्चतर समादत्त पूंजी है, जो विहित की जाए :

परंतु ऐसी कंपनी, जो ऐसी किसी कंपनी की समनुषंगी है, जो प्राइवेट कंपनी नहीं है, इस बात के होते हुए भी कि ऐसी समनुषंगी कंपनी अपने अनुच्छेदों में प्राइवेट कंपनी बनी रहती है, इस अधिनियम के प्रयोजनों के लिए पब्लिक कंपनी समझी जाएगी;

(72) “लोक वित्तीय संस्था” से निम्नलिखित अभिप्रेत है,

(i) भारतीय जीवन बीमा निगम अधिनियम, 1956 की धारा 3 के अधीन स्थापित भारतीय जीवन बीमा निगम;

(ii) इस अधिनियम की धारा 465 के अधीन इस प्रकार निरसित कंपनी अधिनियम, 1956 की धारा 4क की उपधारा (1) के खंड (vi) में निर्दिष्ट अवसंरचना विकास वित्त कंपनी लिमिटेड; ।

(iii) भारतीय यूनिट ट्रस्ट (उपक्रम का अंतरण और निरसन) अधिनियम, 2002 में निर्दिष्ट विनिर्दिष्ट कंपनी;

(iv) इस अधिनियम की धारा 465 के अधीन इस प्रकार निरसित कंपनी अधिनियम, 1956 की धारा 4क की उपधारा (2) के अधीन केन्द्रीय सरकार द्वारा अधिसूचित संस्थाएं:

(v) ऐसी अन्य संस्थाएं, जो केन्द्रीय सरकार द्वारा भारतीय रिजर्व बैंक के परामर्श से अधिसूचित की जाएं :

परंतु किसी संस्था को इस प्रकार तब अधिसूचित किया जाएगा,

(अ) जब वह किसी केन्द्रीय या राज्य अधिनियम द्वारा या उसके अधीन स्थापित या गठित की गई है; या

(आ) जिसमें समादत्त शेयर पूंजी के इक्यावन प्रतिशत से अन्यून केन्द्रीय सरकार द्वारा या किसी राज्य सरकार अथवा सरकारों द्वारा या भागतः केन्द्रीय सरकार और भागतः एक या अधिक राज्य सरकारों द्वारा धारित है या उनके नियंत्रणाधीन है;

(73) “मान्यताप्राप्त स्टाक एक्सचेंज” से प्रतिभूति संविदा (विनियमन) अधिनियम, 1956 की धारा 2 के खंड (च) में यथापरिभाषित कोई मान्यताप्राप्त स्टाक एक्सचेंज अभिप्रेत है;

(74) “कंपनियों का रजिस्टर” से रजिस्ट्रार द्वारा इस अधिनियम के अधीन कागजपत्रों पर या किसी इलैक्ट्रानिक पद्धति से रखा गया कंपनियों का रजिस्टर अभिप्रेत है;

(75) “रजिस्ट्रार” से इस अधिनियम के अधीन कंपनियों का रजिस्ट्रीकरण और विभिन्न कृत्यों का निर्वहन करने के कर्तव्य वाला कोई रजिस्ट्रार, अपर रजिस्ट्रार, संयुक्त रजिस्ट्रार, उप रजिस्ट्रार या सहायक रजिस्ट्रार अभिप्रेत है;

(76) किसी कंपनी के प्रतिनिर्देश से “संबंधित पक्षकार’ से निम्नलिखित अभिप्रेत हैं :

(i) कोई निदेशक या उसका नातेदार;

(ii) मुख्य प्रबंधकीय कार्मिक या उसका नातेदार;

(iii) कोई फर्म, जिसमें कोई निदेशक, प्रबंधक या उसका नातेदार एक भागीदार है;

(iv) कोई प्राइवेट कंपनी, जिसमें कोई निदेशक या प्रबंधक उसका सदस्य या निदेशक है;

(v) कोई पब्लिक कंपनी, जिसमें कोई निदेशक या प्रबंधक कोई निदेशक है या उसकी समादत्त शेयर पूंजी का दो प्रतिशत से अधिक अपने नातेदारों के साथ धारण करता है;

(vi) कोई निगमित निकाय, जिसका निदेशक बोर्ड, प्रबंध निदेशक या प्रबंधक किसी निदेशक या प्रबंधक की सलाह, निदेशों या अनुदेशों के अनुसार कार्य करने का अभ्यस्त है;

(vii) ऐसा कोई व्यक्ति, जिसकी सलाह, निदेशों या अनुदेशों पर कोई निदेशक या प्रबंधक कार्य करने का अभ्यस्त है : .

परंतु उपखंड (vi) और उपखंड (vii) की कोई बात, वृत्तिक हैसियत में दी गई सलाह, निदेशों या अनुदेशों को लागू नहीं होगी;

(viii) कोई कंपनी, जो

(अ) ऐसी कंपनी की नियंत्री, समनुषंगी या कोई सहयोजित कंपनी है; या

(आ) ऐसी किसी नियंत्री कंपनी की समनुषंगी है, जिसकी वह भी एक समनुषंगी है;

(ix) ऐसा अन्य व्यक्ति, जो विहित किया जाए।

(77) किसी व्यक्ति के प्रतिनिर्देश से, “नातेदार” से ऐसा कोई व्यक्ति अभिप्रेत है, जो किसी दूसरे व्यक्ति का नातेदार है, यदि

(i) वे हिंदू अविभक्त कुटुंब के सदस्य हैं;

(ii) वे पति और पत्नी हैं; या

(iii) एक व्यक्ति, दूसरे व्यक्ति से ऐसी रीति से संबद्ध है, जो विहित की जाए:

(78) “पारिश्रमिक” से किसी व्यक्ति द्वारा दी गई सेवाओं के लिए उसको दी गई या हस्तांतरित कोई धनराशि या उसके समतुल्य अभिप्रेत है और इसके अंतर्गत आय-कर अधिनियम, 1961 के अधीन यथापरिभाषित परिलब्धियां भी हैं;

(79) “अनुसूची” से इस अधिनियम से संलग्न अनुसूची अभिप्रेत है;

(80) “अनुसूचित बैंक” से भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम, 1934 की धारा 2 के खंड (ङ) में यथापरिभाषित अनुसूचित बैंक अभिप्रेत है;

(81) “प्रतिभूतियों” से प्रतिभूति संविदा (विनियमन) अधिनियम, 1956 की धारा 2 के खंड (ज) में यथापरिभाषित प्रतिभूतियां अभिप्रेत हैं;

(82) “प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड” से भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड अधिनियम, 1992 की धारा 3 के अधीन स्थापित भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड अभिप्रेत है;

(83) “गंभीर कपट अन्वेषण कार्यालय” से धारा 211 में निर्दिष्ट कार्यालय अभिप्रेत है;

(84) “शेयर” से किसी कंपनी की शेयर पूंजी में कोई शेयर अभिप्रेत है और इसके अंतर्गत स्टाक भी है;

(85) “लघु कंपनी” से पब्लिक कंपनी से भिन्न ऐसी कंपनी अभिप्रेत है,

(i) जिसकी समादत्त शेयर पूंजी पचास लाख रुपए या उस उच्चतर रकम से, जो विहित की जाए, अधिक नहीं है, जो पांच करोड़ रुपए से अधिक नहीं होगी;

(ii) जिसका आवर्त, उसके अंतिम लाभ और हानि लेखा के अनुसार दो करोड़ रुपए या ऐसी उच्चतर रकम से, जो विहित की जाए, अधिक नहीं है, जो बीस करोड़ रुपए से अधिक नहीं होगी :

परंतु इस खंड की कोई बात निम्नलिखित को लागू नहीं होगी

(अ) कोई नियंत्री कंपनी या कोई समनुषंगी कंपनी;

(आ) धारा 8 के अधीन रजिस्ट्रीकृत कोई कंपनी; या

(इ) किसी विशेष अधिनियम द्वारा शासित कोई कंपनी या निगमित निकाय;

(86) “अभिदत्त पूंजी” से पूंजी का ऐसा भाग अभिप्रेत है, जो तत्समय कंपनी के सदस्यों द्वारा अभिदाय किया गया है;

(87) किसी अन्य कंपनी (अर्थात् नियंत्री कंपनी) के संबंध में “समनुषंगी कंपनी” या “समनुषंगी” से ऐसी कंपनी अभिप्रेत है, जिसमें नियंत्री कंपनी

(i) निदेशक बोर्ड की संरचना का नियंत्रण करती है; या

(ii) कुल शेयर पूंजी के आधे से अधिक का प्रयोग या नियंत्रण या तो स्वयं या अपनी एक या अधिक समनुषंगी कंपनियों के साथ मिलकर करती है :

परंतु नियंत्री कंपनियों का ऐसा वर्ग या के ऐसे वर्ग, जो विहित किया जाए/किए जाएं, ऐसी संख्या से परे, जो विहित की जाए, समनुषंगियों के लिए उत्तरदायी नहीं होगा/होंगे।

स्पष्टीकरण—इस खंड के प्रयोजनों के लिए,

(क) कोई कंपनी, नियंत्री कंपनी की समनुषंगी कंपनी समझी जाएगी, यद्यपि उपखंड (i) या उपखंड (i) में निर्दिष्ट नियंत्रण, नियंत्री कंपनी की किसी अन्य समनुषंगी कंपनी का हो;

(ख) किसी कंपनी के निदेशक बोर्ड की संरचना किसी अन्य कंपनी द्वारा नियंत्रित की गई समझी जाएगी, यदि वह अन्य कंपनी, उसके द्वारा प्रयोक्तव्य कुछ शक्ति का प्रयोग करके अपने विवेकानुसार सभी या बहुसंख्यक निदेशकों की नियुक्ति कर सकती है या उन्हें हटा सकती है;

(ग) “कंपनी” पद के अंतर्गत कोई निगमित निकाय भी है;

(घ) किसी नियंत्री कंपनी के संबंध में, “उत्तरदायी” से उसकी समनुषंगी कंपनी या कंपनियां अभिप्रेत हैं;

(88) “श्रमसाध्य साधारण शेयर” से ऐसे साधारण शेयर अभिप्रेत हैं, जो किसी कंपनी द्वारा अपने निदेशकों या कर्मचारियों को, बौद्धिक संपदा अधिकारों की प्रकृति या मूल्य परिवर्धनों की प्रकृति में, उसका नाम चाहे जो भी हो ज्ञान उपलब्ध कराने या उनको अधिकार उपलब्ध कराने के लिए नकदी से भिन्न छूट पर या प्रतिफल के लिए जारी किए जाते हैं;

(89) किसी विषय के संबंध में, “कुल मतदान शक्ति” से, ऐसे मतों की कुल संख्या अभिप्रेत है, जो कंपनी के किसी अधिवेशन में किसी मतदान पर उस विषय के संबंध में डाले जाएं, यदि उस विषय पर मत देने का अधिकार रखने वाले उसके सभी सदस्य या उनके परोक्षी अधिवेशन में उपस्थित हैं और अपने मत डालते हैं:

(90) “अधिकरण” से धारा 408 के अधीन गठित राष्ट्रीय कंपनी विधि अधिकरण अभिप्रेत है;

(91) “आवर्त” से किसी वित्तीय वर्ष के दौरान कंपनी द्वारा माल के विक्रय, प्रदाय या वितरण या प्रदान की गई सेवाओं के संबंध में या दोनों से की गई रकम की वसूली का कुल मूल्य अभिप्रेत है;

(92) “अपरिसीमित कंपनी” से ऐसी कंपनी अभिप्रेत है, जिसके सदस्यों के दायित्व की कोई सीमा नहीं है;

(93) “मतदान अधिकार” से किसी कंपनी के किसी सदस्य का, कंपनी के किसी अधिवेशन में या डाक मतपत्र के माध्यम से मतदान करने का अधिकार अभिप्रेत है;

(94) “पूर्णकालिक निदेशक” के अंतर्गत कंपनी के पूर्णकालिक नियोजन में कोई निदेशक भी है;

(95) उन शब्दों और पदों के, जो इस अधिनियम में प्रयुक्त हैं और परिभाषित नहीं किए गए हैं किंतु प्रतिभूति संविदा (विनियमन) अधिनियम, 1956 या भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड अधिनियम, 1992 या निक्षेपागार अधिनियम, 1996 में परिभाषित हैं, वही अर्थ होंगे जो उन अधिनियमों में हैं ।

Companies Act Section-2 (Company Act Section-2 in English)

Definitions

In this Act, unless the context otherwise requires,— 

(1) abridged prospectus‖ means a memorandum containing such salient features of a prospectus as  may be specified by the Securities and Exchange Board by making regulations in this behalf; 

(2) accounting standards‖ means the standards of accounting or any addendum thereto for companies  or class of companies referred to in section 133; 

(3) alter‖ or alteration‖ includes the making of additions, omissions and substitutions; 

(4) Appellate Tribunal‖ means the National Company Law Appellate Tribunal constituted under  section 410; 

(5) articles‖ means the articles of association of a company as originally framed or as altered from  time to time or applied in pursuance of any previous company law or of this Act; 

(6) associate company‖, in relation to another company, means a company in which that other company has a significant influence, but which is not a subsidiary company of the company having such  influence and includes a joint venture company. 

Explanation.—For the purposes of this clause, significant influence‖ means control of at least twenty percent. of total share capital, or of business decisions under an agreement; 

(7) auditing standards‖ means the standards of auditing or any addendum thereto for companies or  class of companies referred to in sub-section (10) of section 143; 

(8) authorized capital‖ or nominal capital‖ means such capital as is authorised by the memorandum  of a company to be the maximum amount of share capital of the company; 

(9) banking company‖ means a banking company as defined in clause (c) of section 5 of the Banking  Regulation Act, 1949 (10 of 1949); 

(10) Board of Directors‖ or Board‖, in relation to a company, means the collective body of the  directors of the company; 

(11) body corporate‖ or corporation‖ includes a company incorporated outside India, but does not  include— 

(i) a co-operative society registered under any law relating to co-operative societies; and 

(ii) any other body corporate (not being a company as defined in this Act), which the Central  Government may, by notification, specify in this behalf; 

(12) book and paper‖ and book or paper‖ include books of account, deeds, vouchers, writings,  documents, minutes and registers maintained on paper or in electronic form; 

(13) books of account‖ includes records maintained in respect of— 

(i) all sums of money received and expended by a company and matters in relation to which the  receipts and expenditure take place; 

(ii) all sales and purchases of goods and services by the company; 

(iii) the assets and liabilities of the company; and 

(iv) the items of cost as may be prescribed under section 148 in the case of a company which  belongs to any class of companies specified under that section; 

(14) branch office‖, in relation to a company, means any establishment described as such by the  company; 

(15) called-up capital‖ means such part of the capital, which has been called for payment;

(16) charge‖ means an interest or lien created on the property or assets of a company or any of its  undertakings or both as security and includes a mortgage; 

(17) chartered accountant‖ means a chartered accountant as defined in clause (b) of sub-section (1)  of section 2 of the Chartered Accountants Act, 1949 (38 of 1949) who holds a valid certificate of practice  under sub-section (1) of section 6 of that Act; 

(18) Chief Executive Officer‖ means an officer of a company, who has been designated as such by  it; 

(19) Chief Financial Officer‖ means a person appointed as the Chief Financial Officer of a company; (20) company‖ means a company incorporated under this Act or under any previous company law; 

(21) company limited by guarantee‖ means a company having the liability of its members limited by  the memorandum to such amount as the members may respectively undertake to contribute to the assets  of the company in the event of its being wound up; 

(22) company limited by shares‖ means a company having the liability of its members limited by the  memorandum to the amount, if any, unpaid on the shares respectively held by them; 

(23) Company Liquidator‖, in so far as it relates to the winding up of a company, means a person  appointed by— 

(a) the Tribunal in case of winding up by the Tribunal; or 

(b) the company or creditors in case of voluntary winding up, 

as a Company Liquidator from a panel of professionals maintained by the Central Government under sub section (2) of section 275; 

(24) company secretary‖ or secretary‖ means a company secretary as defined in clause (c) of sub-section (1) of section 2 of the Company Secretaries Act, 1980 (56 of 1980) who is appointed by a  company to perform the functions of a company secretary under this Act; 

(25) company secretary in practice‖ means a company secretary who is deemed to be in practice  under sub-section (2) of section 2 of the Company Secretaries Act, 1980 (56 of 1980); 

(26) contributory‖ means a person liable to contribute towards the assets of the company in the event  of its being wound up. 

Explanation.—For the purposes of this clause, it is hereby clarified that a person holding fully paid up shares in a company shall be considered as a contributory but shall have no liabilities of a contributory  under the Act whilst retaining rights of such a contributory; 

(27) control‖ shall include the right to appoint majority of the directors or to control the management  or policy decisions exercisable by a person or persons acting individually or in concert, directly or  indirectly, including by virtue of their shareholding or management rights or shareholders agreements or  voting agreements or in any other manner; 

(28) cost accountant‖ means a cost accountant as defined in clause (b) of subsection (1) of section 2  of the Cost and Works Accountants Act, 1959 (23 of 1959); 

(29) court‖ means— 

(i) the High Court having jurisdiction in relation to the place at which the registered office of the  company concerned is situate, except to the extent to which jurisdiction has been conferred on any  district court or district courts subordinate to that High Court under sub-clause (ii); 

(ii) the district court, in cases where the Central Government has, by notification, empowered any  district court to exercise all or any of the jurisdictions conferred upon the High Court, within the  scope of its jurisdiction in respect of a company whose registered office is situate in the district; 

(iii) the Court of Session having jurisdiction to try any offence under this Act or under any  previous company law;

(iv) the Special Court established under section 435; 

(v) any Metropolitan Magistrate or a Judicial Magistrate of the First Class having jurisdiction to  try any offence under this Act or under any previous company law; 

(30) debenture‖ includes debenture stock, bonds or any other instrument of a company evidencing a  debt, whether constituting a charge on the assets of the company or not; 

(31) deposit‖ includes any receipt of money by way of deposit or loan or in any other form by a  company, but does not include such categories of amount as may be prescribed in consultation with the  Reserve Bank of India; 

(32) depository‖ means a depository as defined in clause (e) of sub-section (1) of section 2 of the  Depositories Act, 1996 (22 of 1996); 

(33) derivative‖ means the derivative as defined in clause (ac) of section 2 of the Securities  Contracts (Regulation) Act, 1956 (42 of 1956); 

(34) director‖ means a director appointed to the Board of a company; 

(35) dividend‖ includes any interim dividend; 

(36) document‖ includes summons, notice, requisition, order, declaration, form and register, whether  issued, sent or kept in pursuance of this Act or under any other law for the time being in force or  otherwise, maintained on paper or in electronic form; 

(37) employees‘ stock option‖ means the option given to the directors, officers or employees of a  company or of its holding company or subsidiary company or companies, if any, which gives such  directors, officers or employees, the benefit or right to purchase, or to subscribe for, the shares of the  company at a future date at a pre-determined price; 

(38) expert‖ includes an engineer, a valuer, a chartered accountant, a company secretary, a cost  accountant and any other person who has the power or authority to issue a certificate in pursuance of any  law for the time being in force; 

(39) financial institution‖ includes a scheduled bank, and any other financial institution defined or  notified under the Reserve Bank of India Act, 1934 (2 of 1934); 

(40) financial statement‖ in relation to a company, includes— 

(i) a balance sheet as at the end of the financial year; 

(ii) a profit and loss account, or in the case of a company carrying on any activity not for profit,  an income and expenditure account for the financial year; 

(iii) cash flow statement for the financial year; 

(iv) a statement of changes in equity, if applicable; and 

(v) any explanatory note annexed to, or forming part of, any document referred to in sub-clause  (i) to sub-clause (iv): 

Provided that the financial statement, with respect to One Person Company, small company and  dormant company, may not include the cash flow statement; 

(41) financial year‖, in relation to any company or body corporate, means the period ending on the  31st day of March every year, and where it has been incorporated on or after the 1st day of January of a  year, the period ending on the 31st day of March of the following year, in respect whereof financial  statement of the company or body corporate is made up: 

Provided that on an application made by a company or body corporate, which is a holding company  or a subsidiary of a company incorporated outside India and is required to follow a different financial year  for consolidation of its accounts outside India, the Tribunal may, if it is satisfied, allow any period as its  financial year, whether or not that period is a year:

Provided further that a company or body corporate, existing on the commencement of this Act, shall,  within a period of two years from such commencement, align its financial year as per the provisions of  this clause; 

(42) foreign company‖ means any company or body corporate incorporated outside India which— 

(a) has a place of business in India whether by itself or through an agent, physically or through  electronic mode; and 

(b) conducts any business activity in India in any other manner. 

(43) free reserves‖ means such reserves which, as per the latest audited balance sheet of a company,  are available for distribution as dividend: 

Provided that— 

(i) any amount representing unrealised gains, notional gains or revaluation of assets, whether  shown as a reserve or otherwise, or 

(ii) any change in carrying amount of an asset or of a liability recognised in equity, including  surplus in profit and loss account on measurement of the asset or the liability at fair value, 

shall not be treated as free reserves; 

(44) Global Depository Receipt‖ means any instrument in the form of a depository receipt, by  whatever name called, created by a foreign depository outside India and authorised by a company making  an issue of such depository receipts; 

(45) Government company‖ means any company in which not less than fifty-one per cent. of the  paid-up share capital is held by the Central Government, or by any State Government or Governments, or  partly by the Central Government and partly by one or more State Governments, and includes a company  which is a subsidiary company of such a Government company; 

(46) holding company‖, in relation to one or more other companies, means a company of which such  companies are subsidiary companies; 

(47) independent director‖ means an independent director referred to in sub-section (6) of section  149; 

(48) Indian Depository Receipt‖ means any instrument in the form of a depository receipt created by  a domestic depository in India and authorised by a company incorporated outside India making an issue  of such depository receipts; 

(49) interested director‖ means a director who is in any way, whether by himself or through any of  his relatives or firm, body corporate or other association of individuals in which he or any of his relatives  is a partner, director or a member, interested in a contract or arrangement, or proposed contract or  arrangement, entered into or to be entered into by or on behalf of a company; 

(50) issued capital‖ means such capital as the company issues from time to time for subscription; (51) key managerial personnel‖, in relation to a company, means— 

(i) the Chief Executive Officer or the managing director or the manager; 

(ii) the company secretary; 

(iii) the whole-time director; 

(iv) the Chief Financial Officer; and 

(v) such other officer as may be prescribed; 

(52) listed company‖ means a company which has any of its securities listed on any recognised stock  exchange; 

(53) manager‖ means an individual who, subject to the superintendence, control and direction of the  Board of Directors, has the management of the whole, or substantially the whole, of the affairs of a

company, and includes a director or any other person occupying the position of a manager, by whatever  name called, whether under a contract of service or not; 

(54) managing director‖ means a director who, by virtue of the articles of a company or an  agreement with the company or a resolution passed in its general meeting, or by its Board of Directors, is  entrusted with substantial powers of management of the affairs of the company and includes a director  occupying the position of managing director, by whatever name called. 

Explanation.—For the purposes of this clause, the power to do administrative acts of a routine nature  when so authorised by the Board such as the power to affix the common seal of the company to any  document or to draw and endorse any cheque on the account of the company in any bank or to draw and  endorse any negotiable instrument or to sign any certificate of share or to direct registration of transfer of  any share, shall not be deemed to be included within the substantial powers of management; 

(55) member‖, in relation to a company, means— 

(i) the subscriber to the memorandum of the company who shall be deemed to have agreed to  become a member of the company, and on its registration, shall be entered as a member in its register of  members; 

(ii) every other person who agrees in writing to become a member of the company and whose  name is entered in the register of members of the company; 

(iii) every person holding shares of the company and whose name is entered as a beneficial owner  in the records of a depository; 

(56) memorandum‖ means the memorandum of association of a company as originally framed or as  altered from time to time in pursuance of any previous company law or of this Act; 

(57) net worth‖ means the aggregate value of the paid-up share capital and all reserves created out of  the profits and securities premium account, after deducting the aggregate value of the accumulated losses,  deferred expenditure and miscellaneous expenditure not written off, as per the audited balance sheet, but  does not include reserves created out of revaluation of assets, write-back of depreciation and 

amalgamation; 

(58) notification‖ means a notification published in the Official Gazette and the expression notify‖  shall be construed accordingly; 

(59) officer‖ includes any director, manager or key managerial personnel or any person in  accordance with whose directions or instructions the Board of Directors or any one or more of the  directors is or are accustomed to act; 

(60) officer who is in default‖, for the purpose of any provision in this Act which enacts that an  officer of the company who is in default shall be liable to any penalty or punishment by way of  imprisonment, fine or otherwise, means any of the following officers of a company, namely:— 

(i) whole-time director; 

(ii) key managerial personnel; 

(iii) where there is no key managerial personnel, such director or directors as specified by the  Board in this behalf and who has or have given his or their consent in writing to the Board to such  specification, or all the directors, if no director is so specified; 

(iv) any person who, under the immediate authority of the Board or any key managerial  personnel, is charged with any responsibility including maintenance, filing or distribution of accounts  or records, authorises, actively participates in, knowingly permits, or knowingly fails to take active  steps to prevent, any default; 

(v) any person in accordance with whose advice, directions or instructions the Board of Directors  of the company is accustomed to act, other than a person who gives advice to the Board in a  professional capacity;

(vi) every director, in respect of a contravention of any of the provisions of this Act, who is aware  of such contravention by virtue of the receipt by him of any proceedings of the Board or participation  in such proceedings without objecting to the same, or where such contravention had taken place with  his consent or connivance; 

(vii) in respect of the issue or transfer of any shares of a company, the share transfer agents,  registrars and merchant bankers to the issue or transfer; 

(61) Official Liquidator‖ means an Official Liquidator appointed under sub-section (1) of section  359; 

(62) One Person Company‖ means a company which has only one person as a member; 

(63) “ordinary or special resolution” means an ordinary resolution, or as the case may be, special  resolution referred to in section 114; 

(64) paid-up share capital‖ or share capital paid-up‖ means such aggregate amount of money  credited as paid-up as is equivalent to the amount received as paid-up in respect of shares issued and also  includes any amount credited as paid-up in respect of shares of the company, but does not include any  other amount received in respect of such shares, by whatever name called; 

(65) postal ballot‖ means voting by post or through any electronic mode; 

(66) prescribed‖ means prescribed by rules made under this Act; 

(67) previous company law‖ means any of the laws specified below:— 

(i) Acts relating to companies in force before the Indian Companies Act, 1866 (10 of 1866); (ii) the Indian Companies Act, 1866 (10 of 1866); 

(iii) the Indian Companies Act, 1882 (6 of 1882); 

(iv) the Indian Companies Act, 1913 (7 of 1913); 

(v) the Registration of Transferred Companies Ordinance, 1942 (Ord. 54 of 1942); (vi) the Companies Act, 1956 (1 of 1956); and 

(vii) any law corresponding to any of the aforesaid Acts or the Ordinances and in force— 

(A) in the merged territories or in a Part B State (other than the State of Jammu and Kashmir),  or any part thereof, before the extension thereto of the Indian Companies Act, 1913 (7 of 1913);  or 

(B) in the State of Jammu and Kashmir, or any part thereof, before the commencement of the  Jammu and Kashmir (Extension of Laws) Act, 1956 (62 of 1956), in so far as banking, insurance  and financial corporations are concerned, and before the commencement of the Central Laws  (Extension to Jammu and Kashmir) Act, 1968 (25 of 1968), in so far as other corporations are  concerned; 

(viii) the Portuguese Commercial Code, in so far as it relates to sociedades anonimas; and (ix) the Registration of Companies (Sikkim) Act, 1961 (Sikkim Act 8 of 1961); 

(68) private company‖ means a company having a minimum paid-up share capital 1*** as may be  prescribed, and which by its articles,— 

(i) restricts the right to transfer its shares; 

(ii) except in case of One Person Company, limits the number of its members to two hundred: 

Provided that where two or more persons hold one or more shares in a company jointly, they shall, for  the purposes of this clause, be treated as a single member: 

 1-The words of one lakh rupees or such higher paid-up share capital‖ omitted by Act 21 of 2015, s. 2 (w.e.f. 29-5-2015).

Provided further that— 

(A) persons who are in the employment of the company; and 

(B) persons who, having been formerly in the employment of the company, were members of the  company while in that employment and have continued to be members after the employment ceased, 

shall not be included in the number of members; and 

(iii) prohibits any invitation to the public to subscribe for any securities of the company; (69) promoter‖ means a person— 

(a) who has been named as such in a prospectus or is identified by the company in the annual  return referred to in section 92; or 

(b) who has control over the affairs of the company, directly or indirectly whether as a  shareholder, director or otherwise; or 

(c) in accordance with whose advice, directions or instructions the Board of Directors of the  company is accustomed to act: 

Provided that nothing in sub-clause (c) shall apply to a person who is acting merely in a professional  capacity; 

(70) prospectus‖ means any document described or issued as a prospectus and includes a red herring  prospectus referred to in section 32 or shelf prospectus referred to in section 31 or any notice, circular,  advertisement or other document inviting offers from the public for the subscription or purchase of any  securities of body corporate; 

(71) public company‖ means a company which— 

(a) is not a private company; 

(b) has a minimum paid-up share capital 1*** as may be prescribed: 

Provided that a company which is a subsidiary of a company, not being a private company, shall be  deemed to be public company for the purposes of this Act even where such subsidiary company continues  to be a private company in its articles ; 

(72) public financial institution‖ means— 

(i) the Life Insurance Corporation of India, established under section 3 of the Life Insurance  Corporation Act, 1956 (31 of 1956); 

(ii) the Infrastructure Development Finance Company Limited, referred to in clause (vi) of sub section (1) of section 4A of the Companies Act, 1956 (1 of 1956) so repealed under section 465 of  this Act; 

(iii) specified company referred to in the Unit Trust of India (Transfer of Undertaking and  Repeal) Act, 2002 (58 of 2002); 

(iv) institutions notified by the Central Government under sub-section (2) of section 4A of the  Companies Act, 1956 (1 of 1956) so repealed under section 465 of this Act; 

(v) such other institution as may be notified by the Central Government in consultation with the  Reserve Bank of India: 

Provided that no institution shall be so notified unless— 

(A) it has been established or constituted by or under any Central or State Act; or 

 1- The words of five lakh rupees or such higher paid-up share capital,‖ omitted by Act 21 of 2015, s. 2 (w.e.f. 29-5-2015).

(B) not less than fifty-one per cent. of the paid-up share capital is held or controlled by the  Central Government or by any State Government or Governments or partly by the Central  Government and partly by one or more State Governments; 

(73) recognised stock exchange‖ means a recognised stock exchange as defined in clause (f) of  section 2 of the Securities Contracts (Regulation) Act, 1956 (42 of 1956); 

(74) register of companies‖ means the register of companies maintained by the Registrar on paper or  in any electronic mode under this Act; 

(75) Registrar‖ means a Registrar, an Additional Registrar, a Joint Registrar, a Deputy Registrar or  an Assistant Registrar, having the duty of registering companies and discharging various functions under  this Act; 

(76) related party‖, with reference to a company, means— 

(i) a director or his relative; 

(ii) a key managerial personnel or his relative; 

(iii) a firm, in which a director, manager or his relative is a partner; 

(iv) a private company in which a director or manager is a member or director; 

(v) a public company in which a director or manager is a director or holds along with his  relatives, more than two per cent. of its paid-up share capital; 

(vi) any body corporate whose Board of Directors, managing director or manager is accustomed  to act in accordance with the advice, directions or instructions of a director or manager; 

(vii) any person on whose advice, directions or instructions a director or manager is accustomed  to act: 

Provided that nothing in sub-clauses (vi) and (vii) shall apply to the advice, directions or instructions  given in a professional capacity; 

(viii) any company which is— 

(A) a holding, subsidiary or an associate company of such company; or 

(B) a subsidiary of a holding company to which it is also a subsidiary; 

(ix) such other person as may be prescribed; 

(77) ‗‗relative‘‘, with reference to any person, means any one who is related to another, if— (i) they are members of a Hindu Undivided Family; 

(ii) they are husband and wife; or 

(iii) one person is related to the other in such manner as may be prescribed; 

(78) remuneration‖ means any money or its equivalent given or passed to any person for services  rendered by him and includes perquisites as defined under the Income-tax Act, 1961 (43 of 1961); 

(79) Schedule‖ means a Schedule annexed to this Act; 

(80) scheduled bank‖ means the scheduled bank as defined in clause (e) of section 2 of the Reserve  Bank of India Act, 1934 (2 of 1934); 

(81) securities‖ means the securities as defined in clause (h) of section 2 of the Securities Contracts  (Regulation) Act, 1956 (42 of 1956); 

(82) Securities and Exchange Board‖ means the Securities and Exchange Board of India established  under section 3 of the Securities and Exchange Board of India Act,1992 (15 of 1992); 

(83) Serious Fraud Investigation Office‖ means the office referred to in section 211; (84) share‖ means a share in the share capital of a company and includes stock;

(85) ‗‗small company‘‘ means a company, other than a public company,— 

(i) paid-up share capital of which does not exceed fifty lakh rupees or such higher amount as may  be prescribed which shall not be more than five crore rupees; or 

(ii) turnover of which as per its last profit and loss account does not exceed two crore rupees or  such higher amount as may be prescribed which shall not be more than twenty crore rupees: 

Provided that nothing in this clause shall apply to— 

(A) a holding company or a subsidiary company; 

(B) a company registered under section 8; or 

(C) a company or corporate body governed by any particular Act; 

(86) subscribed capital‖ means such part of the capital which is for the time being subscribed by the  members of a company; 

(87) subsidiary company‖ or subsidiary‖, in relation to any other company (that is to say the  holding company), means a company in which the holding company— 

(i) controls the composition of the Board of Directors; or 

(ii) exercises or controls more than one-half of the total share capital either at its own or together  with one or more of its subsidiary companies: 

Provided that such class or classes of holding companies as may be prescribed shall not have layers of  subsidiaries beyond such numbers as may be prescribed. 

Explanation.—For the purposes of this clause,— 

(a) a company shall be deemed to be a subsidiary company of the holding company even if the  control referred to in sub-clause (i) or sub-clause (ii) is of another subsidiary company of the holding  company; 

(b) the composition of a company‘s Board of Directors shall be deemed to be controlled by  another company if that other company by exercise of some power exercisable by it at its discretion  can appoint or remove all or a majority of the directors; 

(c) the expression company‖ includes any body corporate; 

(d) layer‖ in relation to a holding company means its subsidiary or subsidiaries; 

(88) sweat equity shares‖ means such equity shares as are issued by a company to its directors or  employees at a discount or for consideration, other than cash, for providing their know-how or making  available rights in the nature of intellectual property rights or value additions, by whatever name called; 

(89) total voting power‖, in relation to any matter, means the total number of votes which may be  cast in regard to that matter on a poll at a meeting of a company if all the members thereof or their proxies  having a right to vote on that matter are present at the meeting and cast their votes; 

(90) Tribunal‖ means the National Company Law Tribunal constituted under section 408; 

(91) turnover‖ means the aggregate value of the realisation of amount made from the sale, supply or  distribution of goods or on account of services rendered, or both, by the company during a financial year; 

(92) unlimited company‖ means a company not having any limit on the liability of its members; 

(93) voting right‖ means the right of a member of a company to vote in any meeting of the company  or by means of postal ballot; 

(94) whole-time director‖ includes a director in the whole-time employment of the company;

(95) words and expressions used and not defined in this Act but defined in the Securities Contracts  (Regulation) Act, 1956 (42 of 1956) or the Securities and Exchange Board of India Act, 1992 (15 of  1992) or the Depositories Act, 1996 (22 of 1996) shall have the meanings respectively assigned to them  in those Acts. 

हमारा प्रयास कंपनी अधिनियम (Companies Act Section) की धारा 2 की पूर्ण जानकारी, आप तक प्रदान करने का है, उम्मीद है कि उपरोक्त लेख से आपको संतुष्ट जानकारी प्राप्त हुई होगी, फिर भी अगर आपके मन में कोई सवाल हो, तो आप कॉमेंट बॉक्स में कॉमेंट करके पूछ सकते है।

Leave a Comment