नमस्कार दोस्तों, आज हम आपके लिए दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 167 के बारे में पूर्ण जानकारी देंगे। क्या कहती है दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 167 कब लागू होती है, यह भी इस लेख के माध्यम से आप तक पहुंचाने का प्रयास करेंगे।
धारा 167 का विवरण
दण्ड प्रक्रिया संहिता (CrPC) में धारा 167 के अन्तर्गत जब कभी कोई व्यक्ति गिरफ्तार किया गया है और अभिरक्षा मे निरूद्ध है और यह प्रतीत हो कि अन्वेषण धारा 57 द्वारा नियत चौबीस घंटे की अवधि के अन्दर पूरा नहीं किया जा सकता और यह विश्वास करने के लिए आधार है, तो निकटतम न्यायिक मजिस्ट्रेट को इसमें इसके पश्चात् विहित डायरी की मामले से सम्बन्धित प्रविष्टियों की एक प्रतिलिपि भेजेगा और साथ ही अभियुक्त व्यक्ति को भी उस मजिस्ट्रेट के पास भेजेगा। यह धारा 167 ऐसे मामलों में चौबीस घंटे के अन्दर अन्वेषण पूरा न किया जा सके। प्रकिया को बतलाता है।
सीआरपीसी की धारा 167 के अनुसार
जब चौबीस घंटे के अन्दर अन्वेषण पूरा न किया जा सके तब प्रक्रिया-
(1) जब कभी कोई व्यक्ति गिरफ्तार किया गया है और अभिरक्षा में निरुद्ध है और यह प्रतीत हो कि अन्वेषण धारा 57 द्वारा नियत चौबीस घंटे की अवधि के अन्दर पूरा नहीं किया जा सकता और यह विश्वास करने के लिए आधार है। कि अभियोग या इत्तिला दृढ़ आधार पर है तब पुलिस थाने का भारसाधक अधिकारी या यदि अन्वेषण करने वाला पुलिस अधिकारी उपनिरीक्षक से निम्नतर पंक्ति का नहीं है तो वह, निकटतम न्यायिक मजिस्ट्रेट को इसमें इसके पश्चात् विहित डायरी की मामले से सम्बन्धित प्रविष्टियों की एक प्रतिलिपि भेजेगा और साथ ही अभियुक्त व्यक्ति को भी उस मजिस्ट्रेट के पास भेजेगा।
(2) वह मजिस्ट्रेट जिसके पास अभियुक्त व्यक्ति इस धारा के अधीन भेजा जाता है, चाहे उस मामले के विचारण की उसे अधिकारिता हो या न हो, अभियुक्त का ऐसी अभिरक्षा में, जैसी वह मजिस्ट्रेट ठीक समझे, इतनी अवधि के लिए, जो कुल मिला कर पन्द्रह दिन से अधिक न होगी, निरुद्ध किया जाना समय-समय पर प्राधिकृत कर सकता है तथा यदि उसे मामले के विचारण की या विचारण के लिए सुपुर्द करने की अधिकारिता नहीं है और अधिक निरुद्ध रखना उसके विचार में अनावश्यक है तो वह अभियुक्त को ऐसे मजिस्ट्रेट के पास, जिसे ऐसी अधिकारिता है, भिजवाने के लिए आदेश दे सकता है।
परन्तु –
(क) मजिस्ट्रेट अभियुक्त व्यक्ति का पुलिस अभिरक्षा से अन्यथा निरोध पन्द्रह दिन की अवधि से आगे के लिए उस दशा में प्राधिकृत कर सकता है जिसमें उसका समाधान हो जाता है कि ऐसा करने के लिए पर्याप्त आधार है किन्तु कोई भी मजिस्ट्रेट अभियुक्त व्यक्ति का इस पैरा के अधीन अभिरक्षा में निरोध :-
(i) कुल मिलाकर नब्बे दिन से अधिक की अवधि के लिए प्राधिकृत नहीं करेगा जहां अन्वेषण ऐसे अपराध के सम्बन्ध में है जो मृत्यु, आजीवन कारावास या दस वर्ष से अन्यून की अवधि के लिए कारावास से दण्डनीय है;
(ii) कुल मिलाकर साठ दिन से अधिक की अवधि के लिए प्राधिकृत नहीं करेगा जहां अन्वेषण किसी अन्य अपराध के सम्बन्ध में है;
और यथास्थिति, नब्बे दिन या साठ दिन की उक्त अवधि की समाप्ति पर यदि अभियुक्त व्यक्ति जमानत देने के लिए तैयार है और दे देता है तो उसे जमानत पर छोड़ दिया जाएगा और यह समझा जायेगा कि इस उपधारा के अधीन जमानत पर छोड़ा गया प्रत्येक व्यक्ति अध्याय 33 के प्रयोजनों के लिए उस अध्याय के उपबन्धों के अधीन छोड़ा गया समझा जाएगा;
(ख) कोई भी मजिस्ट्रेट इस धारा के अधीन पुलिस की अभिरक्षा में अभियुक्त के निरोध को प्राधिकृत नहीं करेगा जब तक अभियुक्त को उसके समक्ष प्रथम बार सशरीर तथा पश्चात्वर्ती प्रत्येक समय पर, जब तक अभियुक्त पुलिस की अभिरक्षा में बना रहता है, पेश नहीं किया जाता है, किन्तु मजिस्ट्रेट अभियुक्त की या तो सशरीर या इलेक्ट्रानिक वीडियो सम्पर्क के माध्यम से पेश किए जाने पर न्यायिक अभिरक्षा में अग्रेतर निरोध को बढ़ा सकेगा।
(ग) कोई द्वितीय वर्ग मजिस्ट्रेट, जो उच्च न्यायालय द्वारा इस निमित्त विशेषतया सशक्त नहीं किया गया है, पुलिस की अभिरक्षा में निरोध प्राधिकृत न करेगा।
Procedure when investigation cannot be completed in twenty-four hours-
(1) Whenever any person is arrested and detained in custody, and it appears that the investigation cannot be completed within the period twenty-four hours fixed by Section 57, and there are grounds for believing that the accusation or information is well-founded, the officer in charge of the police station or the police officer making the investigation, if he is not below the rank of sub-inspector, shall forthwith transmit to the nearest Judicial Magistrate a copy of the entries in the diary hereinafter prescribed relating to the case, and shall at the same time forward the accused to such Magistrate.
(2) The Magistrate to whom an accused person is forwarded under this section may, whether he has or has not jurisdiction to try the case, from time to time, authorise the detention of the accused in such custody as such Magistrate thinks fit, for a term not exceeding fifteen days in the whole; and if he has no jurisdiction to try the case or commit it for trial, and considers further detention unnecessary, he may order the accused to be forwarded to a Magistrate having such jurisdiction :
Provided that-
(a) the Magistrate may authorise the detention of the accused person. otherwise than in the custody of the police, beyond the period of fifteen days, if he is satisfied that adequate grounds exist for doing so, but no Magistrate shall authorise the detention of the accused person in custody under this paragraph for a total period exceeding.-
(i) ninety days, where the investigation relates to an offence punishable with death, imprisonment for life or imprisonment for a term of not less than ten years;
(ii) sixty days, where the investigation relates to any other offence, and, on the expiry of the said period of ninety days, or sixty days, as the case may be, the accused person shall be released on bail if he is prepared to and does furnish bail, and every person released on bail under this sub section shall be deemed to be so released under the provisions of Chapter XXXIII for the purposes of that Chapter ;
(b) no Magistrate shall authorise detention of the accused in custody of the police under this section unless the accused is produced before him in person for the first time and subsequently every time till the accused remains in the custody of the police, but the Magistrate may extend further detention in judicial custody on production of the accused either in person or through the medium of electronic video linkage;
(c) no Magistrate of the second class, not specially empowered in this behalf by the High Court, shall authorise detention in the custody of the police.
हमारा प्रयास सीआरपीसी की धारा 167 की पूर्ण जानकारी, आप तक प्रदान करने का है, उम्मीद है कि उपरोक्त लेख से आपको संतुष्ट जानकारी प्राप्त हुई होगी, फिर भी अगर आपके मन में कोई सवाल हो, तो आप कॉमेंट बॉक्स में कॉमेंट करके पूछ सकते है।