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सीआरपीसी की धारा 255 | अभियोजन के लिए साक्ष्य | CrPC Section- 255 in hindi| Evidence for prosecution.

नमस्कार दोस्तों, आज हम आपके लिए दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 255 के बारे में पूर्ण जानकारी देंगे। क्या कहती है दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 255 कब लागू होती है, यह भी इस लेख के माध्यम से आप तक पहुंचाने का प्रयास करेंगे।

धारा 255 का विवरण

दण्ड प्रक्रिया संहिता (CrPC) में धारा 255 के अन्तर्गत यदि अभियुक्त अभिवचन करने से इंकार करता है या अभिवचन नहीं करता है या विचारण किए जाने का दावा करता है या मजिस्ट्रेट अभियुक्त को धारा 241 के अधीन दोषसिद्ध नहीं करता है तो वह मजिस्ट्रेट साक्षियों की परीक्षा के लिए तारीख नियत करेगा। परन्तु यह कि मजिस्ट्रेट पुलिस द्वारा अन्वेषण के दौरान अभिलिखित की गई साक्षियों के कथन अभियुक्त को अग्रिम रूप से प्रदान करेगा। यदि मजिस्ट्रेट, अभियोजन के आवेदन पर उसके साक्षियों में से किसी को हाजिर होने या कोई दस्तावेज या अन्य चीज पेश करने का निदेश देने वाला समन जारी कर सकता है। ऐसी नियत तारीख पर मजिस्ट्रेट ऐसा सब साक्ष्य लेने के लिए अग्रसर होगा जो अभियोजन के समर्थन में पेश किया जाता है, परन्तु मजिस्ट्रेट किसी साक्षी की प्रतिपरीक्षा तब तक के लिए, जब तक किसी अन्य साक्षी या साक्षियों की परीक्षा नहीं कर ली जाती है, आस्थगित करने की अनुज्ञा दे सकेगा या किसी साक्षी को अतिरिक्त प्रतिपरीक्षा के लिए पुन: बुला सकेगा।

सीआरपीसी की धारा 255 के अनुसार

दोषमुक्ति या दोषसिद्धि-

(1) यदि मजिस्ट्रेट धारा 254 में निर्दिष्ट साक्ष्य और ऐसा अतिरिक्त साक्ष्य, यदि कोई हो, जो वह स्वप्रेरणा से पेश करवाए लेने पर इस निष्कर्ष पर पहुंचता है कि अभियुक्त दोषी नहीं है तो वह दोषमुक्ति का आदेश अभिलिखित करेगा।
(2) जहां मजिस्ट्रेट धारा 325 या धारा 360 के उपबन्धों के अनुसार कार्यवाही नहीं करता है वहां यदि वह इस निष्कर्ष पर पहुंचता है कि अभियुक्त दोषी है तो वह विधि के अनुसार उसके बारे में दण्डादेश दे सकेगा।
(3) कोई मजिस्ट्रेट धारा 252 या धारा 255 के अधीन, किसी अभियुक्त को, चाहे परिवाद या समन किसी भी प्रकार का रहा हो, इस अध्याय के अधीन विचारणीय किसी भी ऐसे अपराध के लिए, जो स्वीकृत या साबित तथ्यों से उसके द्वारा किया गया प्रतीत होता है, दोषसिद्ध कर सकता है यदि मजिस्ट्रेट का समाधान हो जाता है कि उससे अभियुक्त पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा।

Acquittal or conviction-
(1) If the Magistrate, upon taking the evidence referred to in Section 254 and such further evidence, if any, as he may, of his own motion, cause to be produced, finds the accused not guilty, he shall record an order of acquittal.
(2) Where the Magistrate does not proceed in accordance with the provisions of Section 325 or Section 360, he shall, if he finds the accused guilty, pass sentence upon him according to law.
(3) A Magistrate may, under Section 252 or Section 255, convict the accused of any offence triable under this Chapter, which form the facts admitted or proved he appears to have committed, whatever may be the nature of the complaint or summons, if the Magistrate is satisfied that the accused would not be prejudiced thereby.

हमारा प्रयास सीआरपीसी की धारा 255 की पूर्ण जानकारी, आप तक प्रदान करने का है, उम्मीद है कि उपरोक्त लेख से आपको संतुष्ट जानकारी प्राप्त हुई होगी, फिर भी अगर आपके मन में कोई सवाल हो, तो आप कॉमेंट बॉक्स में कॉमेंट करके पूछ सकते है।

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