सीआरपीसी की धारा 334 | चित्त-विकृति के आधार पर दोषमुक्ति का निर्णय | CrPC Section- 334 in hindi| Judgment of acquittal on ground of unsoundness of mind.

नमस्कार दोस्तों, आज हम आपके लिए दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 334 के बारे में पूर्ण जानकारी देंगे। क्या कहती है दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 334 कब लागू होती है, यह भी इस लेख के माध्यम से आप तक पहुंचाने का प्रयास करेंगे।

धारा 334 का विवरण

दण्ड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 334 के अन्तर्गत जब कभी कोई व्यक्ति इस आधार पर दोषमुक्त किया जाता है कि उस समय जब यह अभिकथित है कि उसने अपराध किया वह चित्त-विकृति के कारण उस कार्य का स्वरूप, जिसका अपराध होना अभिकथित है, या यह कि वह दोषपूर्ण या विधि के प्रतिकूल है, जानने में असमर्थ था, तब निष्कर्ष में यह विनिर्दिष्टतः कथित होगा कि उसने वह कार्य किया या नहीं किया।

सीआरपीसी की धारा 334 के अनुसार

चित्त-विकृति के आधार पर दोषमुक्ति का निर्णय-

जब कभी कोई व्यक्ति इस आधार पर दोषमुक्त किया जाता है कि उस समय जब यह अभिकथित है कि उसने अपराध किया वह चित्त-विकृति के कारण उस कार्य का स्वरूप, जिसका अपराध होना अभिकथित है, या यह कि वह दोषपूर्ण या विधि के प्रतिकूल है, जानने में असमर्थ था, तब निष्कर्ष में यह विनिर्दिष्टतः कथित होगा कि उसने वह कार्य किया या नहीं किया।

Judgment of acquittal on ground of unsoundness of mind-
Whenever any person is acquitted upon the ground that, at the time at which he is alleged to have committed an offence, he was, by reason of unsoundness of mind, incapable of knowing the nature of the act alleged as constituting the offence, or that it was wrong or contrary to law, the finding shall state specifically whether he committed the act or not.

हमारा प्रयास सीआरपीसी की धारा 334 की पूर्ण जानकारी, आप तक प्रदान करने का है, उम्मीद है कि उपरोक्त लेख से आपको संतुष्ट जानकारी प्राप्त हुई होगी, फिर भी अगर आपके मन में कोई सवाल हो, तो आप कॉमेंट बॉक्स में कॉमेंट करके पूछ सकते है।

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