लव जिहाद
जीवनसाथी चुनने का अधिकार मूल अधिकारों में निहित
सुप्रीम कोर्ट एवंम् हाईकोर्ट व्दारा फैसला लिया गया था कि किसी महिला अथवा पुरूष, किसी के साथ रहने की स्वतंत्र है, धर्म पर निर्भर नहीं होगी एवंम् हाईकोर्ट ने कहा है कि जीवनसाथी चुनने का अधिकार, चाहे धर्म, जाति या नस्ल कोई हो, भारतीय संविधान के अनुच्छे्द 21 के तहत मूल अधिकारों के तहत जीवन और निजी स्वातंत्रता के अधिकार में निहित है। जजों ने केएस पुतास्वामी बनाम भारत सरकार मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को नजीर बनाया जिसमें कहा गया था कि व्यक्ति की स्वायत्ताी उसके अपने जीवन से जुड़े अहम फैसले करने की योग्यजता है।
बालिग होने पर अपने आप जीवनसाथी चुनने का अधिकार महिला एवंम् पुरूष व्दारा गलत तरीके से इस्तेमाल किया जा रहा है प्रदेश में कानून व्यवस्था सामान्य रखने के लिए और महिलाओं को इंसाफ दिलाने के लिए जरूरी है। उन्होंने कहा, बीते दिनों में 100 से ज्यादा घटनाएं सामने आई थीं, जिनमें ज़बरन धर्म परिवर्तित किया जा रहा है। इसके अंदर छल-कपट, बल से धर्म परिवर्तित किया जा रहा है। इसपर कानून को लेकर एक आवश्यक नीति बनी, जिसपर कोर्ट के आदेश आए हैं और आज योगी जी की कैबिनेट अध्यादेश लेकर आई है।
सामूहिक धर्म परिवर्तन कराने पर कार्यवाही
सरकार के अध्यादेश के अन्तर्गत दूसरे धर्म में शादी करने के लिए संबंधित जिले के जिलाधिकारी से इजाजत लेना अनिवार्य होगा। इसके लिए शादी से पहले 2 माह की नोटिस देना होगा। बिना अनुमति लिए शादी करने या धर्म परिवर्तन करने पर 6 महीने से लेकर 3 साल तक की सजा के साथ 10 हजार का जुर्माना भी देना पड़ेगा।