भारतीय न्याय संहिता की धारा 227 हिन्दी मे (BNS Act Section-227 in Hindi) –
अध्याय XIV
227. (1) जो कोई न्यायिक कार्यवाही में जानबूझकर मिथ्या साक्ष्य देगा या न्यायिक कार्यवाही के किसी प्रक्रम में उपयोग किए जाने के प्रयोजन के लिए मिथ्या साक्ष्य गढ़ेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डित किया जाएगा, जो दस हजार रुपए तक का हो सकेगा।
झूठे साक्ष्य और लोक न्याय के विरुद्ध अपराध
227. झूठे साक्ष्य के लिए दण्ड।
(2) जो कोई उपधारा (1) में निर्दिष्ट मामले से भिन्न किसी मामले में जानबूझकर मिथ्या साक्ष्य देगा या गढ़ेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डित किया जाएगा, जो पांच हजार रुपए तक का हो सकेगा।
स्पष्टीकरण 1- सैन्य न्यायालय के समक्ष विचारण एक न्यायिक कार्यवाही है।
स्पष्टीकरण 2- न्यायालय के समक्ष कार्यवाही से पूर्व विधि द्वारा निर्देशित जांच न्यायिक कार्यवाही का एक चरण है, यद्यपि वह जांच न्यायालय के समक्ष नहीं भी हो सकती है।
उदाहरण-
ए, यह पता लगाने के लिए कि क्या जेड को विचारण के लिए सौंपा जाना चाहिए, मजिस्ट्रेट के समक्ष जांच में शपथ पर एक कथन देता है, जिसके बारे में वह जानता है कि वह झूठा है। चूंकि यह जांच न्यायिक कार्यवाही का एक चरण है, इसलिए ए ने झूठा साक्ष्य दिया है।
स्पष्टीकरण 3- न्यायालय द्वारा विधि के अनुसार निर्देशित और न्यायालय के प्राधिकार के अधीन संचालित जांच न्यायिक कार्यवाही का एक चरण है, यद्यपि वह जांच न्यायालय के समक्ष नहीं भी हो सकती है।
उदाहरण: न्यायालय द्वारा भूमि की सीमा का मौके पर पता लगाने के लिए नियुक्त अधिकारी के समक्ष जांच में A, शपथ पर एक कथन देता है, जिसके बारे में वह जानता है कि वह झूठा है। चूंकि यह जांच न्यायिक कार्यवाही का एक चरण है, इसलिए A ने झूठा साक्ष्य दिया है।
Bharatiya Nyaya Sanhita Section 227 in English (BNS Act Section-227 in English) –
Chapter XIV
227. (1) Whoever intentionally gives false evidence in any of a judicial proceeding, or fabricates false evidence for the purpose of being used in any stage of a judicial proceeding, shall be punished with imprisonment of either description for a term which may extend to seven years, and shall also be liable to fine which may extend to ten thousand rupees.
Of False Evidence and Offences Against Public Justice.
227. Punishment for false evidence.
(2) Whoever intentionally gives or fabricates false evidence in any case other than that referred to in subsection (1), shall be punished with imprisonment of either description for a term which may extend to three years, and shall also be liable to fine which may extend to five thousand rupees.
Explanation 1- A trial before a Court-martial is a judicial proceeding.
Explanation 2- An investigation directed by law preliminary to a proceeding before a Court is a stage of a judicial proceeding, though that investigation may not take place before a Court.
Illustration.
A, in an enquiry before a Magistrate for the purpose of ascertaining whether Z ought to be committed for trial, makes on oath a statement which he knows to be false. As this enquiry is a stage of a judicial proceeding, A has given false evidence.
Explanation 3- An investigation directed by a Court according to law, and conducted under the authority of a Court is a stage of a judicial proceeding, though that investigation may not take place before a Court.
Illustration.
A, in an enquiry before an officer deputed by a Court to ascertain on the spot the boundaries of land, makes on oath a statement which he knows to be false. As this enquiry is a stage of a judicial proceeding, A has given false evidence.