भारतीय न्याय संहिता की धारा 228 | Bharatiya Nyaya Sanhita Section 228

भारतीय न्याय संहिता की धारा 228 हिन्दी मे (BNS Act Section-228 in Hindi) –

अध्याय XIV
झूठे साक्ष्य और लोक न्याय के विरुद्ध अपराध
228. मृत्युदंड योग्य अपराध के लिए दोषसिद्धि प्राप्त करने
के इरादे से झूठा साक्ष्य देना या गढ़ना।

228. (1) जो कोई मिथ्या साक्ष्य देगा या गढ़ेगा, जिसका आशय यह है, या यह सम्भाव्य जानते हुए कि वह किसी व्यक्ति को भारत में तत्समय प्रवृत्त विधि द्वारा मृत्यु दण्डनीय अपराध के लिए दोषसिद्ध करवाएगा, तो उसे आजीवन कारावास या कठोर कारावास से दण्डित किया जाएगा, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, और वह पचास हजार रुपए तक के जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।
(2) यदि किसी निर्दोष व्यक्ति को उपधारा (1) में निर्दिष्ट मिथ्या साक्ष्य के परिणामस्वरूप दोषसिद्ध किया जाता है और उसे फाँसी दी जाती है, तो ऐसा मिथ्या साक्ष्य देने वाला व्यक्ति या तो मृत्यु दण्ड से या इसमें इसके पूर्व वर्णित दण्ड से दण्डित किया जाएगा।

Bharatiya Nyaya Sanhita Section 228 in English (BNS Act Section-228 in English) –

Chapter XIV
Of False Evidence and Offences Against Public Justice.
228. Giving or fabricating false evidence with intent
to procure conviction of capital offence.

228. (1) Whoever gives or fabricates false evidence, intending thereby to cause, or knowing it to be likely that he will thereby cause, any person to be convicted of an offence which is capital by the law for the time being in force in India shall be punished with imprisonment for life, or with rigorous imprisonment for a term which may extend to ten years, and shall also be liable to fine which may extend to fifty thousand rupees.
(2) If an innocent person be convicted and executed in consequence of false evidence referred in sub-section (1), the person who gives such false evidence shall be punished either with death or the punishment hereinbefore described.