सीआरपीसी की धारा 243 | प्रतिरक्षा का साक्ष्य | CrPC Section- 243 in hindi| Evidence for defence.

नमस्कार दोस्तों, आज हम आपके लिए दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 243 के बारे में पूर्ण जानकारी देंगे। क्या कहती है दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 243 कब लागू होती है, यह भी इस लेख के माध्यम से आप तक पहुंचाने का प्रयास करेंगे।

धारा 243 का विवरण

दण्ड प्रक्रिया संहिता (CrPC) में धारा 243 के अन्तर्गत जब किसी मामले में न्यायालय किसी वाद को सुनती है, तब अभियुक्त से भी अपेक्षा करती है कि वह भी अपनी प्रतिरक्षा में प्रतिपरीक्षा आरंभ करे और अपना साक्ष्य पेश करे अथवा साक्षी को प्रस्तुत करे, अभियुक्त परीक्षा या प्रतिपरीक्षा के, या कोई दस्तावेज या अन्य चीज पेश करने के प्रयोजन से हाजिर होने के लिए किसी साक्षी को विवश करने के लिए कोई आदेशिका जारी करे तो, मजिस्ट्रेट ऐसी आदेशिका जारी करेगा जब तक उसका यह विचार न हो कि ऐसा आवेदन इस आधार पर नामंजूर कर दिया जाता है। यदि अभियुक्त ने किसी साक्षी की प्रतिपरीक्षा कर ली है या उसे प्रतिपरीक्षा करने का अवसर मिल चुका है तब ऐसे साक्षी को हाजिर होने के लिए इस धारा के अधीन तब तक विवश नहीं किया जाएगा जब तक मजिस्ट्रेट का यह समाधान नहीं हो जाता है कि ऐसा करना न्याय के प्रयोजनों के लिए आवश्यक है। यह धारा 243 प्रतिरक्षा का साक्ष्य प्रस्तुत करने की प्रक्रिया को बताती है।

सीआरपीसी की धारा 243 के अनुसार

प्रतिरक्षा का साक्ष्य-

(1) तब अभियुक्त से अपेक्षा की जाएगी कि वह अपनी प्रतिपरीक्षा आरम्भ करे और अपना साक्ष्य पेश करे; और यदि अभियुक्त कोई लिखित कथन देता है तो मजिस्ट्रेट उसे अभिलेख में फाइल करेगा।
(2) यदि अभियुक्त अपनी प्रतिरक्षा आरम्भ करने के पश्चात् मजिस्ट्रेट से आवेदन करता है कि वह परीक्षा या प्रतिपरीक्षा के, या कोई दस्तावेज या अन्य चीज पेश करने के प्रयोजन से हाजिर होने के लिए किसी साक्षी को विवश करने के लिए कोई आदेशिका जारी करे तो, मजिस्ट्रेट ऐसी आदेशिका जारी करेगा जब तक उसका यह विचार न हो कि ऐसा आवेदन इस आधार पर नामंजूर कर दिया जाना चाहिए कि वह तंग करने के या विलम्ब करने के या न्याय के उद्देश्यों को विफल करने के प्रयोजन से किया गया है, और ऐसा कारण उसके द्वारा लेखबद्ध किया जाएगा :
परन्तु जब अपनी प्रतिपरीक्षा आरम्भ करने के पूर्व अभियुक्त ने किसी साक्षी की प्रतिपरीक्षा कर ली है या उसे प्रतिपरीक्षा करने का अवसर मिल चुका है तब ऐसे साक्षी को हाजिर होने के लिए इस धारा के अधीन तब तक विवश नहीं किया जाएगा जब तक मजिस्ट्रेट का यह समाधान नहीं हो जाता है कि ऐसा करना न्याय के प्रयोजनों के लिए आवश्यक है।
(3) मजिस्ट्रेट उपधारा (2) के अधीन किसी आवेदन पर किसी साक्षी को समन करने के पूर्व यह अपेक्षा कर सकता है कि विचारण के प्रयोजन के लिए हाजिर होने में उस साक्षी द्वारा किए जाने वाले उचित व्यय न्यायलय में जमा कर दिए जाएं।

Evidence for defence–
(1) The accused shall then be called upon to enter upon his defence and produce his evidence; and if the accused puts in any written statement, the Magistrate shall file it with the record.
(2) If the accused, after he has entered upon his defence, applies to the Magistrate to issue any process for compelling the attendance of any witness for the purpose of examination or cross-examination, or the production of any document or other thing. the Magistrate shall issue such process unless he considers that such application should be refused on the ground that it is made for the purpose of vexation or delay or for defeating the ends of justice and such ground shall be recorded by him in writing:
Provided that, when the accused has cross-examined or had the opportunity of cross-examining any witness before entering on his defence, the attendance of such witness shall not be compelled under this section, unless the Magistrate is satisfied that it is necessary for the ends of justice.
(3) The Magistrate may, before summoning any witness on an application under sub-section (2), require that the reasonable expenses incurred by the witness in attending for the purposes of the trial be deposited in Court.

हमारा प्रयास सीआरपीसी की धारा 243 की पूर्ण जानकारी, आप तक प्रदान करने का है, उम्मीद है कि उपरोक्त लेख से आपको संतुष्ट जानकारी प्राप्त हुई होगी, फिर भी अगर आपके मन में कोई सवाल हो, तो आप कॉमेंट बॉक्स में कॉमेंट करके पूछ सकते है।

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