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सीआरपीसी की धारा 337 | जहां यह रिपोर्ट की जाती है कि पागल बन्दी अपनी प्रतिरक्षा करने में समर्थ है वहां प्रक्रिया | CrPC Section- 337 in hindi| Procedure where lunatic prisoner is reported capable of making his defence.

नमस्कार दोस्तों, आज हम आपके लिए दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 337 के बारे में पूर्ण जानकारी देंगे। क्या कहती है दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 337 कब लागू होती है, यह भी इस लेख के माध्यम से आप तक पहुंचाने का प्रयास करेंगे।

धारा 337 का विवरण

दण्ड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 337 के अन्तर्गत यदि ऐसा व्यक्ति धारा 330 की उपधारा (2) के उपबन्धों के अधीन निरुद्ध किया जाता है, और जेल में निरुद्ध व्यक्ति की दशा में कारागारों का महानिरीक्षक या पागलखाने में निरुद्ध व्यक्ति की दशा में उस पागलखाने के परिदर्शक या उनमें से कोई दो प्रमाणित करें, कि उसकी या उनकी राय में वह व्यक्ति अपनी प्रतिरक्षा करने में समर्थ है तो वह, यथास्थिति, मजिस्ट्रेट या न्यायालय के समक्ष उस समय, जिसे वह मजिस्ट्रेट या न्यायालय नियत करे, लाया जाएगा और वह मजिस्ट्रेट या न्यायालय उस व्यक्ति के बारे में धारा 332 के उपबन्धों के अधीन कार्यवाही करेगा, और पूर्वोक्त महानिरीक्षक या परिदर्शकों का प्रमाणपत्र साक्ष्य के तौर पर ग्रहण किया जा सकेगा।

सीआरपीसी की धारा 337 के अनुसार

जहां यह रिपोर्ट की जाती है कि पागल बन्दी अपनी प्रतिरक्षा करने में समर्थ है वहां प्रक्रिया–

यदि ऐसा व्यक्ति धारा 330 की उपधारा (2) के उपबन्धों के अधीन निरुद्ध किया जाता है, और जेल में निरुद्ध व्यक्ति की दशा में कारागारों का महानिरीक्षक या पागलखाने में निरुद्ध व्यक्ति की दशा में उस पागलखाने के परिदर्शक या उनमें से कोई दो प्रमाणित करें, कि उसकी या उनकी राय में वह व्यक्ति अपनी प्रतिरक्षा करने में समर्थ है तो वह, यथास्थिति, मजिस्ट्रेट या न्यायालय के समक्ष उस समय, जिसे वह मजिस्ट्रेट या न्यायालय नियत करे, लाया जाएगा और वह मजिस्ट्रेट या न्यायालय उस व्यक्ति के बारे में धारा 332 के उपबन्धों के अधीन कार्यवाही करेगा, और पूर्वोक्त महानिरीक्षक या परिदर्शकों का प्रमाणपत्र साक्ष्य के तौर पर ग्रहण किया जा सकेगा।

Procedure where lunatic prisoner is reported capable of making his defence-
If such person is detained under the provisions of sub-section (2) of Section 330, and in the case of a person detained in a jail, the Inspector-General of Prisons, or in the case of a person detained in a lunatic asylum, the visitors of such asylum or any two of them shall certify that, in his or their opinion, such person is capable of making his defence, he shall be taken before the Magistrate or Court, as the case may be, at such time as the Magistrate or Court appoints, and the Magistrate or Court shall deal with such person under the provisions of Section 332; and the certificate of such Inspector-General or visitors as aforesaid shall be receivable as evidence.

हमारा प्रयास सीआरपीसी की धारा 337 की पूर्ण जानकारी, आप तक प्रदान करने का है, उम्मीद है कि उपरोक्त लेख से आपको संतुष्ट जानकारी प्राप्त हुई होगी, फिर भी अगर आपके मन में कोई सवाल हो, तो आप कॉमेंट बॉक्स में कॉमेंट करके पूछ सकते है।

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