नमस्कार दोस्तों, आज हम आपके लिए दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 338 के बारे में पूर्ण जानकारी देंगे। क्या कहती है दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 338 कब लागू होती है, यह भी इस लेख के माध्यम से आप तक पहुंचाने का प्रयास करेंगे।
धारा 338 का विवरण
दण्ड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 338 के अन्तर्गत यदि ऐसा व्यक्ति धारा 330 की उपधारा (2) या धारा 335 के उपबन्धों के अधीन निरुद्ध है और ऐसा महानिरीक्षक या ऐसे परिदर्शक प्रमाणित करते हैं कि उसके या उनके विचार में वह अपने को या किसी अन्य व्यक्ति को क्षति पहुंचाने के खतरे के बिना छोड़ा जा सकता है तो राज्य सरकार तब उसके छोड़े जाने का या अभिरक्षा में निरुद्ध रखे जाने का या, यदि वह पहले ही लोक पागलखाने नहीं भेज दिया गया है तो ऐसे पागलखाने को अन्तरित किए जाने का आदेश दे सकती है और यदि वह उसे पागलखाने को अन्तरित करने का आदेश देती है तो वह एक न्यायिक और दो चिकित्सक अधिकारियों का एक आयोग नियुक्त कर सकती है। आयोग ऐसा साक्ष्य लेकर, जो आवश्यक हो, ऐसे व्यक्ति के चित्त की दशा की यथारीति जांच करेगा और राज्य सरकार को रिपोर्ट देगा, जो उसके छोड़े जाने या निरुद्ध रखे जाने का, जैसा वह ठीक समझे, आदेश दे सकती है।
सीआरपीसी की धारा 338 के अनुसार
जहां निरुद्ध पागल छोड़े जाने के योग्य घोषित कर दिया जाता है वहां प्रक्रिया-
(1) यदि ऐसा व्यक्ति धारा 330 की उपधारा (2) या धारा 335 के उपबन्धों के अधीन निरुद्ध है और ऐसा महानिरीक्षक या ऐसे परिदर्शक प्रमाणित करते हैं कि उसके या उनके विचार में वह अपने को या किसी अन्य व्यक्ति को क्षति पहुंचाने के खतरे के बिना छोड़ा जा सकता है तो राज्य सरकार तब उसके छोड़े जाने का या अभिरक्षा में निरुद्ध रखे जाने का या, यदि वह पहले ही लोक पागलखाने नहीं भेज दिया गया है तो ऐसे पागलखाने को अन्तरित किए जाने का आदेश दे सकती है और यदि वह उसे पागलखाने को अन्तरित करने का आदेश देती है तो वह एक न्यायिक और दो चिकित्सक अधिकारियों का एक आयोग नियुक्त कर सकती है।
(2) ऐसा आयोग ऐसा साक्ष्य लेकर, जो आवश्यक हो, ऐसे व्यक्ति के चित्त की दशा की यथारीति जांच करेगा और राज्य सरकार को रिपोर्ट देगा, जो उसके छोड़े जाने या निरुद्ध रखे जाने का, जैसा वह ठीक समझे, आदेश दे सकती है।
Procedure where lunatic detained is declared fit to be released-
(1) If such person is detained under the provisions of sub-section (2) of Section 330, or Section 335, and such Inspector-General or visitors shall certify that, in his or their judgment, he may be released without danger of his doing injury to himself or to any other person, the State Government may thereupon order him to be released, or to be detained in custody, or to be transferred to a public lunatic asylum if he has not been already sent to such an asylum; and, in case it orders him to be transferred to an asylum, may appoint a Commission, consisting of a judicial and two medical officers.
(2) Such Commission shall make a formal inquiry into the state of mind of such person, take such evidence as is necessary, and shall report to the State Government, which may order his release or detention as it thinks fit.
हमारा प्रयास सीआरपीसी की धारा 338 की पूर्ण जानकारी, आप तक प्रदान करने का है, उम्मीद है कि उपरोक्त लेख से आपको संतुष्ट जानकारी प्राप्त हुई होगी, फिर भी अगर आपके मन में कोई सवाल हो, तो आप कॉमेंट बॉक्स में कॉमेंट करके पूछ सकते है।