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सीआरपीसी की धारा 357 | प्रतिकर देने का आदेश | CrPC Section- 357 in hindi| Order to pay compensation.

नमस्कार दोस्तों, आज हम आपके लिए दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 357 के बारे में पूर्ण जानकारी देंगे। क्या कहती है दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 357 कब लागू होती है, यह भी इस लेख के माध्यम से आप तक पहुंचाने का प्रयास करेंगे।

धारा 357 का विवरण

दण्ड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 357 के अन्तर्गत जब कोई न्यायालय जुर्माने का दंडादेश देता है या कोई ऐसा दंडादेश (जिसके अन्तर्गत मृत्यु दंडादेश भी है) देता है जिसका भाग जुर्माना भी है, तब निर्णय देते समय वह न्यायालय यह आदेश दे सकता है कि वसूल किए गए सब जुर्माने या उसके किसी भाग का उपयोजन किसी हानि या क्षति का प्रतिकर देने में किया जाए, यदि न्यायालय की राय में ऐसे व्यक्ति द्वारा प्रतिकर सिविल न्यायालय में वसूल किया जाता है।

सीआरपीसी की धारा 357 के अनुसार

प्रतिकर देने का आदेश-
(1) जब कोई न्यायालय जुर्माने का दंडादेश देता है या कोई ऐसा दंडादेश (जिसके अन्तर्गत मृत्यु दंडादेश भी है) देता है जिसका भाग जुर्माना भी है, तब निर्णय देते समय वह न्यायालय यह आदेश दे सकता है कि वसूल किए गए सब जुर्माने या उसके किसी भाग का उपयोजन-
(क) अभियोजन में उचित रूप से उपगत व्ययों को चुकाने में किया जाए:
(ख) किसी व्यक्ति को उस अपराध द्वारा हुई किसी हानि या क्षति का प्रतिकर देने में किया जाए, यदि न्यायालय की राय में ऐसे व्यक्ति द्वारा प्रतिकर सिविल न्यायालय में वसूल किया जाता है;
(ग) उस दशा में, जब कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति की मृत्यु कारित करने के, या ऐसे अपराध के किए जाने का दुष्प्रेरण करने के लिए दोषसिद्ध किया जाता है, उन व्यक्तियों को, जो ऐसी मृत्यु से अपने को हुई हानि के लिए दण्डादिष्ट व्यक्ति से नुकसानी वसूल करने के लिए घातक दुर्घटना अधिनियम, 1855 (1855 का 13) के अधीन हकदार है, प्रतिकर देने में किया जाए;
(घ) जब कोई व्यक्ति, किसी अपराध के लिए, जिसके अन्तर्गत चोरी, आपराधिक दुर्विनियोग, आपराधिक न्यास-भंग या छल भी है, चुराई हुई सम्पत्ति को उस दशा में जब वह यह जानता है या उसको यह विश्वास करने का कारण है कि वह चुराई हुई है बेईमानी से प्राप्त करने या रखे रखने के लिए या उसके व्ययन में स्वेच्छा या सहायता करने के लिए दोषसिद्ध किया जाए, तब ऐसी सम्पत्ति के सद्भावपूर्ण क्रेता को, ऐसी सम्पत्ति उसके हकदार व्यक्ति के कब्जे में लौटा दी जाने की दशा में उसकी हानि के लिए प्रतिकर देने में किया जाए।
(2) यदि जुर्माना ऐसे मामले में किया जाता है जो अपीलनीय है तो ऐसा कोई संदाय, अपील उपस्थित करने के लिए अनुज्ञात अवधि के बीत जाने से पहले या यदि अपील उपस्थित की जाती है तो उसके से विनिश्चय के पूर्व, नहीं किया जायेगा।
(3) जब न्यायालय ऐसा दंड अधिरोपित करता है जिसका भाग जुर्माना नहीं है तब न्यायालय निर्णय पारित करते समय, अभियुक्त व्यक्ति को यह आदेश दे सकता है कि उस कार्य के कारण जिसके लिए उसे ऐसा दंडादेश दिया गया है, जिस व्यक्ति को कोई हानि या क्षति उठानी पड़ी है, उसे वह प्रतिकर के रूप में इतनी रकम दे जितनी आदेश में विनिर्दिष्ट है।
(4) इस धारा के अधीन आदेश, अपील न्यायालय द्वारा या उच्च न्यायालय या सेशन न्यायालय द्वारा भी किया जा सकेगा जब वह अपनी पुनरीक्षण की शक्तियों का प्रयोग कर रहा हो।
(5) उसी मामले से संबंधित किसी पश्चात्वर्ती सिविल वाद में प्रतिकर अधिनिर्णीत करते समय न्यायालय ऐसी किसी राशि को, जो इस धारा के अधीन प्रतिकर के रूप में दी गई है या वसूल की गई है, हिसाब में लेगा।

Order to pay compensation-
(1) When a Court imposes a sentence of fine or a sentence (including a sentence of death) of which fine forms a part, the Court may, when passing judgment, order the whole or any part of the fine recovered to be applied-
(a) in defraying the expenses properly incurred in the prosecution;
(b) in the payment to any person of compensation for any loss or injury caused by the offence, when compensation in the opinion of the Court, recoverable by such person in a Civil Court;
(c) when any person is convicted of any offence for having caused the death of another person or of having abetted the commission of such an offence, in paying compensation to the persons who are, under the Fatal Accidents Act, 1855 (13 of 1855), entitled to recover damages from the person sentenced for the loss resulting to them from such death;
(d) when any person is convicted of any offence which includes theft, criminal misappropriation, criminal breach of trust, or cheating, or of having dishonestly received or retained, or of having voluntarily assisted in disposing of, stolen property knowing or having reason to believe the same to be stolen, in compensating any bonafide purchaser of such property for the loss of the same if such property is restored to the possession of the person entitled thereto.
(2) If the fine is imposed in a case which is subject to appeal, no such payment shall be made before the period allowed for presenting the appeal has elapsed, or, if an appeal be presented, before the decision of the appeal.

हमारा प्रयास सीआरपीसी की धारा 357 की पूर्ण जानकारी, आप तक प्रदान करने का है, उम्मीद है कि उपरोक्त लेख से आपको संतुष्ट जानकारी प्राप्त हुई होगी, फिर भी अगर आपके मन में कोई सवाल हो, तो आप कॉमेंट बॉक्स में कॉमेंट करके पूछ सकते है।

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