Restitution of Conjugal Rights (दाम्पत्य अधिकारों का पुनः स्थापन)
हिन्दू विवाह अधिनियम के अन्तर्गत धारा-9 मे दाम्पत्य अधिकारों का पुनः स्थापन बताया गया है । न्यायालय मे एक अर्जी के आधार पर दाम्पत्य को पुनः दाम्पत्य साथ रहने अथवा मूल कारणों को प्रमाणित करने के आधार पर पुनः दाम्पत्य जीवन का आरम्भ किया जा सकता है । जिसे एक वैवाहिक उपचार भी कह सकते है ।
हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा-9 के अन्तर्गत जब पति अथवा पत्नी अपने आपको दूसरे के साहचर्य से उचित कारण के बिना अलग कर लिया हो, तब व्यथित पक्षकार दाम्पत्य अधिकारों के पुनः स्थापन के लिये जिला न्यायालय मे आवेदन, अर्जी व्दारा कर सकेंगा और न्यायालय उस अर्जी मे दिये गये कथन की सत्यता जानने के बारे अथवा आवेदन को मंजूर करने का कोई वैध आधार नही है । इस बात से संतुष्ट हो जाने के पश्चात् दाम्पत्य अधिकारो का पुनः स्थापन डिक्री व्दारा करा सकेगा ।
इस प्रकार धारा-9 के अन्तर्गत दाम्पत्य अधिकारों को पुनः स्थापन की डिक्री प्राप्त करने हेतु तीन शर्तो का पूरा होना आवश्यक है –
यहकि प्रतिपक्षी युक्तियुक्त कारण के बिना साहचर्य से अलग हो गया है ।
यहकि न्यायालय याचिकाकार व्दारा याचिका मे कथित बयानों की सत्यता के बारे मे संतुष्ट है ।
यहकि अनुतोष प्रदान करने के मार्ग मे कोई अन्य बाधा नही है ।
हिन्दू विवाह अधिनियम मे दांपत्य अधिकारों के प्रत्यास्थपन के लिए अर्जी जिला न्यायालय के समक्ष पेश करते है तथा अर्जी पेश करने में अनुचित विलंब करना घातक है। धारा-10 के अंतर्गत डिक्री पारित होने के बाद 1 वर्ष या अधिक समय तक प्रतिस्थापन ना होने पर धारा 13 (1-क) के अंतर्गत विवाह विच्छेद की कार्रवाई प्रारंभ की जा सकती है। बिना युक्ति युक्त कारण के पत्नि या पति एक दूसरे के साहचर्य से पृथक रहते हैं तो दांपत्य अधिकारों की पुनर्स्थापना की डिक्री पारित की जा सकती है। डिक्री का निष्पादन आदेश 21 नियम 32 एवं 33 के प्रावधानों के अनुसार किया जाता है। आवेदन पेश करने वाले पक्षकार पर आरोप सिद्ध करने का प्रारंभिक भार रहता है किंतु मामले की परिस्थिति के अनुसार विरोध पक्ष पर भी सिद्ध करने का भार आ जाता है। जब यह सिद्ध हो जाए कि पत्नी ने अभित्यजन किया है तो अभित्यक्त पति की यह जिम्मेदारी नहीं है कि पत्नी से मेल मिलाप के लिए प्रयास करें और प्रयास ना करने पर न्यायिक पृथक्करण की डिक्री से पति को वंचित नहीं किया जा सकता है।
दांपत्य अधिकारों के प्रतिस्थापन की डिक्री पारित करने के पूर्व तीन बातें विशेष रूप से देखा जाना चाहिए-
(1) क्या पति या पत्नी ने बिना युक्तियुक्तकरण के अपने पति या पत्नी के सहवास से पृथक किया है ।
(2) क्या याचिका में कहे गए कथन सत्य है:
(3) डिक्री अस्वीकार करने के लिए अन्य कोई वैधानिक आधार तो नहीं है।
- यदि अलग रहने के लिए उपयुक्त कारण एवं आधार है तो डिक्री प्रदान नहीं की जाएगी।