भारतीय संविदा अधिनियम की धारा 217 | Indian Contract Act Section 217

भारतीय संविदा अधिनियम Indian Contract Act (ICA Section-217) in Hindi के विषय में पूर्ण जानकारी देंगे। भारतीय संविदा अधिनियम की धारा 217 के अनुसार यदि कोई अभिकर्ता अपने मालिक के ज्ञान के बिना अभिकरण के कारबार में अपने मालिक के लेखे व्यवहार करने के बजाय अपने ही लेखे व्यवहार करता है तो मालिक अभिकर्ता से उस फायदे का दावा करने का हकदार है जो अभिकर्ता को उस संव्यवहार से हुआ है, जिसे IC Act Section-217 के अन्तर्गत परिभाषित किया गया है।

भारतीय संविदा अधिनियम की धारा 217 (Indian Contract Act Section-217) का विवरण

भारतीय संविदा अधिनियम की धारा 217 IC Act Section-217 के अनुसार यदि कोई अभिकर्ता अपने मालिक के ज्ञान के बिना अभिकरण के कारबार में अपने मालिक के लेखे व्यवहार करने के बजाय अपने ही लेखे व्यवहार करता है तो मालिक अभिकर्ता से उस फायदे का दावा करने का हकदार है जो अभिकर्ता को उस संव्यवहार से हुआ है।

भारतीय संविदा अधिनियम की धारा 217 (IC Act Section-217 in Hindi)

अभिकर्ता का मालिक के लेखे प्राप्त राशियों में से प्रतिधारण का अधिकार-

अभिकर्ता अभिकरण के कारबार में मालिक के लेखे प्राप्त राशियों में से उन सब धनों का, जो उसे कारबार के संचालन में उसके द्वारा दिए गए अग्रिमों या उचित रूप से उपगत व्ययों के लिए उसको शोध्य हों, और ऐसे पारिश्रमिक का भी, जो ऐसे अभिकर्ता के तौर पर कार्य करने के लिए उसे देय हों, प्रतिधारण कर सकेगा।

Indian Contract Act Section-217 (IC Act Section-217 in English)

Agent’s right of retainer out of sums received on principal’s account-

An agent may retain, out of any sums received on account of the principal in the business of the agency, all moneys due to himself in respect of advances made or expenses properly incurred by him in conducting such business, and also such remuneration as may be payable to him for acting as agent.

हमारा प्रयास भारतीय संविदा अधिनियम (Indian Contract Act Section) की धारा 217 की पूर्ण जानकारी, आप तक प्रदान करने का है, उम्मीद है कि उपरोक्त लेख से आपको संतुष्ट जानकारी प्राप्त हुई होगी, फिर भी अगर आपके मन में कोई सवाल हो, तो आप कॉमेंट बॉक्स में कॉमेंट करके पूछ सकते है।

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