भारतीय संविदा अधिनियम की धारा 25 | Indian Contract Act Section 25

 भारतीय संविदा अधिनियम Indian Contract Act (ICA Section-25) in Hindi के विषय में पूर्ण जानकारी देंगे। भारतीय संविदा अधिनियम की धारा 25 के अनुसार लिखित रूप में अभिव्यक्त और दस्तावेजों के रजिस्ट्रीकरण के लिए तत्समय प्रवृत्त विधि के अधीन रजिस्ट्रीकृत और एक दूसरे के साथ निकट संबंध वाले पक्षकारों के बीच नैसर्गिक प्रेम और स्नेह के कारण किया गया हो, ऐसे व्यक्ति को पूर्णत: या भागत: प्रतिकर देने के लिए वचन हो, जिसने वचनदाता के लिए स्वेच्छया पहले ही कोई बात कर दी हो अथवा ऐसी कोई बात कर दी हो, जिसे करने के लिए वचनदाता वैध रूप से विवश किए जाने का दायीं था, जिसे IC Act Section-25 के अन्तर्गत परिभाषित किया गया है।

भारतीय संविदा अधिनियम की धारा 25 (Indian Contract Act Section-25) का विवरण

भारतीय संविदा अधिनियम की धारा 25 IC Act Section-25 के अनुसार लिखित रूप में अभिव्यक्त और दस्तावेजों के रजिस्ट्रीकरण के लिए तत्समय प्रवृत्त विधि के अधीन रजिस्ट्रीकृत और एक दूसरे के साथ निकट संबंध वाले पक्षकारों के बीच नैसर्गिक प्रेम और स्नेह के कारण किया गया हो, ऐसे व्यक्ति को पूर्णत: या भागत: प्रतिकर देने के लिए वचन हो, जिसने वचनदाता के लिए स्वेच्छया पहले ही कोई बात कर दी हो अथवा ऐसी कोई बात कर दी हो, जिसे करने के लिए वचनदाता वैध रूप से विवश किए जाने का दायीं था।

भारतीय संविदा अधिनियम की धारा 25 (IC Act Section-25 in Hindi)

प्रतिफल के बिना करार शून्य है, सिवाय जबकि वह लिखित तथा रजिस्ट्रीकत हो या की गई किसी बात के लिए प्रतिकर देने का वचन हो, या परिसीमा विधि द्वारा वर्जित किसी ऋण के संदाय का वचन हो-

प्रतिफल के बिना किया गया करार शून्य है, जबकि वह —
(1) लिखित रूप में अभिव्यक्त और दस्तावेजों के रजिस्ट्रीकरण के लिए तत्समय प्रवृत्त विधि के अधीन रजिस्ट्रीकृत और एक दूसरे के साथ निकट संबंध वाले पक्षकारों के बीच नैसर्गिक प्रेम और स्नेह के कारण किया गया हो; अथवा
(2) किसी ऐसे व्यक्ति को पूर्णत: या भागत: प्रतिकर देने के लिए वचन हो, जिसने वचनदाता के लिए स्वेच्छया पहले ही कोई बात कर दी हो अथवा ऐसी कोई बात कर दी हो, जिसे करने के लिए वचनदाता वैध रूप से विवश किए जाने का दायीं था; अथवा
(3) जिस ऋण का संदाय वादों की परिसीमा विषयक विधि द्वारा वारित न होने की दशा में लेनदार करा लेता, उसके पूर्णत: या भागत: संदाय के लिए उस व्यक्ति द्वारा जिसे उस वचन से भारित किया जाना है या तन्निमित साधारण या विशेष रूप से प्राधिकृत उसके अधिकर्ता द्वारा, किया गया लिखित और हस्ताक्षरित वचन हो।
इनमें से किसी भी दशा में ऐसा करार संविदा है।
स्पष्टीकरण 1– इस धारा की कोई भी बात वस्तुत: दिए गए किसी दान की विधिमान्यता पर, जहाँ तक कि दाता और आदाता के बीच का संबंध है, प्रभाव नहीं डालेगी।
स्पष्टीकरण 2 — कोई करार, जिसके लिए वचनदाता की सम्मति स्वतन्त्रता से दी गई है, केवल इस कारण शून्य नहीं है कि प्रतिफल अपर्याप्त है, किन्तु इस प्रश्न को अवधारित करने में कि बचनदाता की सम्मति स्वतन्त्रता से दी गई थी या नहीं, प्रतिफल की अपर्याप्तता न्यायालय द्वारा गणना में भी ली जा सकेगी।
 दृष्टान्त
(क) ‘ख’ को किसी प्रतिफल के बिना 1,000 रुपये देने का ‘क’ वचन देता है, यह करार शून्य है।
(ख) ‘क’ नैसर्गिक प्रेम और स्नेह से अपने पुत्र ‘ख’ को 1,000 रुपये देने का वचन देता है। ‘ख’ के प्रति अपने वचन को ‘क’ लेखबद्ध करता है और उसे रजिस्ट्रीकृत करता है। यह संविदा है।
(ग) ‘ख’ की थैली ‘क’ पड़ी पाता है और उसे उसको दे देता है। ‘क’ को ‘ख’ 50 रुपये देने का वचन देता है। यह संविदा है।
(घ) ‘ख’ के शिशु पुत्र का पालन ‘क’ करता है। वैसा करने में हुए ‘क’ के व्ययों के संदाय का ‘ख’ वचन देता है। यह संविदा है।
(ङ) ‘ख’ के 1,000 रुपये ‘क’ द्वारा देय हैं, किन्तु वह ऋण परिसीमा अधिनियम द्वारा वारित है। ‘क’ उस ऋण के मद्दे ‘ख’ को 500 रुपये देने का लिखित वचन हस्ताक्षरित करता है। यह संविदा है।
(च) ‘क’ 1,000 रुपये के मूल्य के घोड़े को 10 रुपये में बेचने का करार करता है। इस करार के लिए ‘क’ की सम्मति स्वतन्त्रता से दी गई थी। प्रतिफल अपर्याप्त होते हुए भी यह करार संविदा है।
(छ) ‘क’ 1,000 रुपये के मूल्य के घोड़े को 10 रुपये में बेचने का करार करता है। ‘क’ इससे इन्कार करता है कि इस करार के लिए उसकी सम्मति स्वतन्त्रता से दी गई थी।
प्रतिफल की अपर्याप्तता ऐसा तथ्य है, जिसे न्यायालय को यह विचार करने में गणना में लेना चाहिए कि ‘क’ की सम्मति स्वतन्त्रता से दी गई थी या नहीं।

Indian Contract Act Section-25 (IC Act Section-25 in English)

Agreement without consideration, void, unless it is in writing and registered or is a promise to compensate for something done or is a promise to pay a debt barred by limitation law-

An agreement made without consideration is void, unless –
(1) it is expressed in writing and registered under the law for the time being in force for the registration of documents, and is made on account of natural love and affection between parties standing in a near relation to each other; or unless
(2) it is a promise to compensate, wholly or in part, a person who has already voluntarily done something for the promisor, or something which the promisor was legally compellable to do; or unless.
(3) It is a promise, made in writing and signed by the person to be charged therewith, or by his agent generally or specially authorized in that behalf, to pay wholly or in part a debt of which the creditor might have enforced payment but for the law for the limitation of suits. In any of these cases, such an agreement is a contract.
Explanation 1 – Nothing in this section shall affect the validity, as between the donor and donee, of any gift actually made.
Explanation 2 – An Agreement to which the consent of the promisor is freely given is not void merely because the consideration is inadequate; but the inadequacy of the consideration may be taken into account by the Court in determining the question whether the consent of the promisor was freely given.
Illustrations
(a) A promises, for no consideration, to give to B Rs. 1,000. This is a void agreement.
(b) A, for natural love and affection, promises to give his son, B, Rs. 1,000. A puts his promise to B into writing and registers it. This is a contract.
(c) A finds B’s purse and gives it to him. B promises to give A Rs. 50. This is a contract.
(d) A supports B’s infant son. B promises to pay A’s expenses in so doing. This is a contract.
(e) A owes B Rs. 1,000, but the debt is barred by the Limitation Act. A signs a written promise to pay B Rs. 500 on account of the debt. This is a contract.
(f) A agrees to sell a horse worth Rs. 1,000 for Rs. 10. As consent to the agreement was freely given. The agreement is a contract notwithstanding the inadequacy of
the consideration.
(g) A agrees to sell a horse worth Rs. 1,000 for Rs. 10. A denies that his consent to the agreement was freely given.
The inadequacy of the consideration is a fact which the Court should take into account in considering whether or not A’s consent was freely given.

हमारा प्रयास भारतीय संविदा अधिनियम (Indian Contract Act Section) की धारा 25 की पूर्ण जानकारी, आप तक प्रदान करने का है, उम्मीद है कि उपरोक्त लेख से आपको संतुष्ट जानकारी प्राप्त हुई होगी, फिर भी अगर आपके मन में कोई सवाल हो, तो आप कॉमेंट बॉक्स में कॉमेंट करके पूछ सकते है।

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