भारतीय संविदा अधिनियम क्या है?| इसके क्या महत्व है सम्पूर्ण जानकारी ?

भारतीय संविदा अधिनियम 1872 (indian contract act 1872) कानून बनाने का मुख्य उद्देश्य किन्ही दो या दो से अधिक लोगो के मध्य होने वाले करार को कानूनी मान्यता देने का है। संविदा अधिनियम प्रत्येक देश के अलग अलग शर्तो के हिसाब से भी हो सकती है, लेकिन साधारण भाषा मे हम यह समझ सकते है, कि किन्ही दो व्यक्तियों को अपनी बात पर अटल रहने के लिये एक करार होता, जिससे उन्हे कानूनी रूप से मदद् मिलती है। हांलाकि हम सभी जानते है कि बड़े बड़े मामलों मे करार दोनों पक्षो को अपनी बात पर अटल रखने के लिये ही कराया जाता है, जिससे कोई एक पक्ष किसी बात को लेकर अपना मत न बदले।

HIGHLIGHT

आज हम सभी पाठकों के लिये भारतीय संविदा अधिनियम 1872 के बारे मे चर्चा करने वाले है। आज हम जानेंगे कि संविदा किसे कहते है What is contract?, इसके क्या लाभ एवंम् हानि है साथ ही यह कितने प्रकार के होते है और कितने वर्षो तक हम किसी से करार करा सकते है। इसके अलावा करार के लिये क्या गारण्टी भी ली जा सकती है। भारती संविदा कानून मे कितनी धाराये है। यह समस्त जानकारी आज हम इस लेख के माध्यम से जानने वाले है।

संविदा किसे कहते है? (What is contract?)

संविदा (Contract) एक तरह से दो या दो से अधिक व्यक्तियों के मध्य होने वाला करार है, करार किसी भी तरह का जैसे प्रापर्टी सम्बन्धी, व्यापर सम्बन्धी, किरायेदारी सम्बन्धी और कई प्रकार के भी हो सकते है। करार को लिखित रूप से दर्ज कराकर एक करार पत्र तैयार किया जा सकता है, जहां दोनो पक्षों के मध्य होने वाला करार ही संविदा कहलाता है। यह लिखित करार ही दोनो पक्षों के अधिकारो और दायित्वों को कानूनी रूप से सहायता प्रदान करता है।

करार को बरकरार रखने के लिये दोनो व्यक्तियों के मध्य लिखित और मौखिक रूप भी हो सकते है, जिसमे गवाह भी हो सकते है। जो संविदा पत्र का ही एक भाग होता है। हांलाकि लिखित करार आज के समय मे ज्यादा माइने रखता है, क्योकि लिखित करार मे दोनो पक्ष सोच-समझकर एक करार पत्र पर हस्ताक्षर भी करते है, जिसके तहत यदि कोई पक्ष बेईमानी या अपनी बात से मुकरता है, तो दूसरा पक्ष कानूनी रास्ता अपना सकता है। मौखिक करार एक तरह बातचीत ही होती है, जहां कोई पक्ष दूसरे पक्ष पर विश्वास करके किन्ही गवाहों के मध्य किसी करार को मान्यता दे देता है, लेकिन वहां कानूनी मदद् न के बराबर मिलती है। इसलिये लिखित करार अधिक महत्वपूर्ण माना जाता है।

भारतीय संविदा अधिनियम 1872 किसने बनाया था? (Who made the Indian Contract Act 1872?)

यह अधिनियम अंग्रेजी सामान्य कानून के सिद्धांतों पर आधारित है। यह भारत के सभी राज्यों पर लागू है। पहले यह जम्मू एवंम् कश्मीर पर लागू नही होता था, लेकिन आज सम्पूर्ण भारत पर लागू होता है। यह कानून उन सभी परिस्थितियों को निर्धारित करता है जहां संविदा करने वाले पक्षकारों द्वारा किए गए वादे को पूर्ण करने के लिये कानूनी रूप से बाध्यकारी होंगे। इसके अलावा यह कानून दोनो पक्षकारों के होने वाले करार को बाध्य करने करने के लिये कानूनी मदद् करता है। जहां दोनो पक्षों मे यदि कोई भी पक्ष अपने हुये करार से मुकरता है या कोई बदलाव करता या करने का प्रयास करता है, तो वह कानूनी रूप से दंड एवंम् जुर्माने का भी भागीदार होता है।

यह कानून अग्रेजी शासन के अनुरूप है पहले बिट्रिश शासन के दौरान ऐसे कानून को समान्य कानून के सिद्धान्तो के स्वरूप अपने भारत देश पर भी 25 अप्रैल 1872 को लागू कर दिया गया। जिसे 1 सितम्बर 1872 से सम्पूर्ण भारत मे (जम्मू एवंम् कश्मीर को छोड़कर) प्रभावी कर दिया गया।

भारतीय संविदा अधिनियम का क्या उद्देश्य है? (What is the purpose of the Indian Contract Act?)

भारतीय संविदा अधिनियम 1872 एक कानून है जो भारत में संविदा/करार को नियंत्रित करता है। यह भारत में अंग्रेजों द्वारा लागू किया गया था और आज भी लागू है। अधिनियम एक अनुबंध को परिभाषित करता है, अनुबंध के आवश्यक तत्वों को निर्धारित करता है, और अनुबंधों के प्रवर्तन का प्रावधान करता है।

वाणिज्यिक लेनदेन में निश्चितता और पूर्वानुमेयता को बढ़ावा देना: करार को नियंत्रित करने वाले नियमों का एक स्पष्ट और व्यापक सेट प्रदान करके, अधिनियम यह सुनिश्चित करने में मदद करता है कि व्यवसाय और व्यक्ति विश्वास के साथ अनुबंध में प्रवेश कर सकते हैं, यह जानते हुए कि उनके अधिकारों और दायित्वों की रक्षा की जाएगी।

अनुबंध के दोनों पक्षों के हितों की रक्षा करना: अधिनियम अनुबंध के दोनों पक्षों के लिए कई सुरक्षा उपाय प्रदान करता है, जैसे कि स्वतंत्र सहमति की आवश्यकता और अनुचित शर्तों का निषेध। इससे यह सुनिश्चित करने में मदद मिलती है कि अनुबंध निष्पक्ष और न्यायसंगत हैं और कोई भी पक्ष इसका लाभ नहीं उठा रहा है।

अनुबंधों से उत्पन्न विवादों का समाधान करना: अधिनियम अनुबंधों से उत्पन्न होने वाले विवादों को अदालतों या मध्यस्थता के माध्यम से हल करने के लिए एक रूपरेखा प्रदान करता है। इससे यह सुनिश्चित करने में मदद मिलती है कि विवादों को निष्पक्ष और कुशलतापूर्वक हल किया जाता है।

प्रस्ताव और स्वीकृति: एक अनुबंध तब बनता है जब एक पक्ष प्रस्ताव देता है और दूसरा पक्ष उसे स्वीकार कर लेता है। प्रस्ताव स्पष्ट और सुस्पष्ट होना चाहिए और स्वीकृति के बारे में प्रस्तावकर्ता को सूचित किया जाना चाहिए।

प्रतिफल: प्रतिफल एक ऐसी मूल्यवान वस्तु है जो प्रत्येक पक्ष द्वारा दूसरे पक्ष के वादे के बदले में दी जाती है। यह पैसा, सामान, सेवाएँ या यहाँ तक कि कुछ करने का वादा भी हो सकता है।

कानूनी संबंध बनाने का इरादा: दोनो पक्षो व्दारा अपने समझौते को कानूनी रूप से बाध्यकारी बनाने का इरादा रखना चाहिए। इसका मतलब यह है कि उन्हें मजाक नहीं करना चाहिए या मज़ाक में अभिनय नहीं करना चाहिए।

वैधता: अनुबंध किसी अवैध उद्देश्य के लिए नहीं होना चाहिए।

क्षमता: पार्टियों को अनुबंध में प्रवेश करने के लिए कानूनी रूप से सक्षम होना चाहिए। इसका मतलब यह है कि वे वयस्क और स्वस्थ दिमाग वाले होने चाहिए।

भारतीय संविदा अधिनियम में गारंटी क्या है? (What is Guarantee in Indian Contract Act?)

गारंटी का करार एक अनुबंध है जहां एक तीसरा पक्ष (ज़मानतदार) ऋण का भुगतान करने या दायित्व पूरा करने का वादा करता है यदि मूल देनदार (प्रमुख देनदार) ऐसा करने में विफल रहता है, तो भारतीय अनुबंध अधिनियम, 1872 धारा 126 में गारंटी के अनुबंध को इस प्रकार परिभाषित करता है:

“गारंटी का अनुबंध किसी तीसरे व्यक्ति के डिफ़ॉल्ट के मामले में उसके वादे को पूरा करने, या दायित्व का निर्वहन करने का एक अनुबंध है।”

गारंटी के अनुबंध के तहत ज़मानतकर्ता उत्तरदायी नहीं है जब तक कि मुख्य देनदार चूक न कर दे। हालाँकि, एक बार जब मुख्य देनदार चूक कर देता है, तो ज़मानतदार ऋणदाता को ऋण की पूरी राशि का भुगतान करने या दायित्व पूरा करने के लिए उत्तरदायी होता है।

भारतीय अनुबंध अधिनियम के तहत तीन प्रकार की गारंटी हैं:

सरल गारंटी: यह सबसे सामान्य प्रकार की गारंटी है। एक साधारण गारंटी में, यदि मुख्य देनदार चूक करता है तो ज़मानतदार ऋणदाता को ऋण की पूरी राशि का भुगतान करने का वादा करता है।

सतत गारंटी: इस प्रकार की गारंटी लेनदेन की एक श्रृंखला पर लागू होती है। लेन-देन की श्रृंखला के तहत मुख्य देनदार द्वारा उठाए गए किसी भी ऋण के लिए लेनदार को भुगतान करने के लिए ज़मानत उत्तरदायी है।

संयुक्त गारंटी: इस प्रकार की गारंटी वह होती है जहां दो या दो से अधिक जमानतदार मूल देनदार के ऋण के लिए लेनदार के प्रति संयुक्त रूप से उत्तरदायी होने के लिए सहमत होते हैं।

गारंटी के अनुबंध के तहत ज़मानत का दायित्व उस ऋण या दायित्व की राशि तक सीमित है जो मुख्य देनदार लेनदार को देना है। मुख्य देनदार के डिफ़ॉल्ट के परिणामस्वरूप लेनदार को होने वाले किसी भी अन्य नुकसान के लिए ज़मानत उत्तरदायी नहीं है।

संविदा अधिनियम में कुल कितनी धाराएं हैं? (How many sections are there in contract Act?)

भारतीय संविदा अधिनियम, 1872 में कुल 266 धाराएँ हैं। इसे तीन भागों में बांटा गया है:

भाग I: अनुबंध के कानून के सामान्य सिद्धांत (धारा 1 से 75)
भाग II: विशेष अनुबंध (धारा 76 से 238)
भाग III: साझेदारी (धारा 239 से 266)

संविदा कितने प्रकार के होते हैं? (How many types of contracts are there?)

संविदा विभिन्न प्रकार के होते है, करार के अनुरूप प्रत्येक संविदा की अपने विशिष्ट नियम व शर्तो के आधार पर पक्षकारों की अवश्यकताओ को पूरा करते है। प्रत्येक प्रकार की संविदाओं मे एक बात समान्य पायी जाती है, जहां पक्षकारों को अपना करार हाल मे पूर्ण करने के लिये बाध्यकारी होता है संविदा के प्रकार को वर्गीकरण इस आधार पर किया जा सकता है कि वे कैसे बनते हैं और कैसे कार्य करते है, क्या वे वैध हैं, उनकी प्रकृति के आधार पर और उनके निष्पादन (एग्जिक्यूशन) के आधार पर भी उन्हे वर्गीकृत किया जाता है।

गठन के आधार पर संविदा के प्रकार (Types of Contracts Based on Formation)

संविदा गठन के आधार पर निम्नलिखित प्रकार से वर्गीकृत किया जा रह है।  उदाहरणः मौखिक संविदा, लिखित संविदा, व्यक्त संविदा, निहित संविदा, अर्धं संविदा एवंम् ई-संविदा

मौखिक संविदा (Oral Contract)

मौखिक संविदा वे करार होते हैं जो मौखिक रूप से फोन (कम्युनिकेशन) द्वारा यदि दोनो पक्षों ने किसी करार को स्वीकार कर लिया। आज के समय ज्यादातर् संविदा मौखिक रूप से ही किए जा रहे हैं। लेकिन, मौखिक संविदा को अदालतों में साबित करना थो़ड़ा मुश्किल होता है, इसलिए ये संविदा आमतौर पर अब नहीं बनाए जाते हैं। यह कहा जा सकता है कि, मौखिक संविदा वैध संविदा होते हैं और कानून द्वारा लागू करने योग्य होते हैं, लेकिन ये करार वैध संविदा की शर्तों को पूरा करते हों। 

उदाहरणः राम से दिनेश से फोन पर दिल्ली से पंजाब तक जाने के लिये टैक्सी/कैब बुक कराया, और दिनेश ने अपनी शर्तो को बताते हुये एक निश्चित मूल्य पर टैक्सी/कैब बुक कर लिया। यह एक मौखिक संविदा है, जहां राम और दिनेश अपने करार को पूर्ण करने के लिये बाध्यकारी होंगे।

लिखित संविदा (Written Contract)

लिखित संविदा वे करार होते है, जहां दोनों पक्षो व्दारा सोच-समझकर अपनी अपनी शर्तो, कत्तव्यों को लिखित रूप से दर्ज कराया है । यह संविदा वास्तविक रूप में लिखित संविदा होती हैं। ये वर्तमान में सबसे प्रचलित प्रकार का संविदा हैं। लेकिन ये करार वैध संविदा की शर्तों को पूरा करते हों। 

उदाहरणः श्याम से महेश से अपने व्यापार करने के लिये दुकान किराये पर ली। जहां महेश ने श्याम को अपनी शर्तो को लिखित रूप मे दर्ज कराकर एक रेंट एग्रीमेंट बनवाया। यह एक लिखित संविदा है, जहां श्याम और महेश अपने करार को पूर्ण करने के लिये बाध्यकारी होंगे।

व्यक्त संविदा (Express Contract)

व्यक्त संविदा वे करार होते है, जहां दोनों पक्षो व्दारा प्रस्तावों या प्रस्थापना की स्वीकृति अर्थात् लिखित एवंम् मौखिक रूप से सोच-समझकर अपनी अपनी शर्तो, कत्तव्यों को लिखित एवंम् मौखिक रूप से दर्ज कराया है । जब शब्दों में प्रस्थापना दी जाती है तो वह एक व्यक्त प्रस्थापना होती है। एक व्यक्त संविदा को शब्दों में या तो मौखिक रूप से या लिखित रूप में किया जाता है।

उदाहरणः राम, श्याम से पूछता है कि क्या वह अपना घर 350000 राशि के लिए बेचना चाहता है। श्याम हाँ कहकर सहमत हो जाता है। यह व्यक्त संविदा का एक उदाहरण है। इस प्रकार एक व्यक्त संविदा में, संविदा की शर्तें स्पष्ट रूप से व्यक्त की जाती हैं।

निहित संविदा (Implied Contract)

निहित संविदा वे करार होते है, जहां दोनों पक्षो कार्य या आचरण से संकेत मिलता है कि अनुबंध की शर्तों से बंधे होने का उनका पारस्परिक इरादा है। यह करार जिसमें समझौते की शर्तें लिखित या मौखिक रूप में व्यक्त नहीं की जाती हैं, एक निहित अनुबंध है। जहां कोई पक्ष किसी अपनी कोई लिखित या मौखिक शर्त न रखकर व्यक्तित्व एवंम् आचरण से संकेतिक करता हो।

उदाहरण: रमेश लखनऊ घंटाघर जाने के लिये रिक्शा पर बैठता हैं और चालक गाड़ी चलाना शुरू कर देता है। रमेश चालक को वह पता बताएं जहां उसे आपको छोड़ना है। चालक रुकता है और रमेश उसे भुगतान कर देता हैं।

जैसा कि आप समझ सकते हैं कि यह एक करार है लेकिन क्या रमेश और चालक ने लिखित और मौखिक रूप में कोई शर्त व्यक्त की है? नहीं, इरादा रमेश आचरण से निहित था और इस प्रकार एक निहित अनुबंध था।

अर्ध संविदा (Quasi Contract)

अर्ध संविदा वे करार होते है, जहां किसी भी पक्ष के बीच कोई समझौता नहीं किया जाता है। वास्तव में, किसी न्यायालय के आदेश से पहले कोई अनुबंध नहीं होता है। अर्ध-संविदा वह करार है, जहां किसी पक्ष के मध्य कोई करार नही होता है फिर भी किसी कारणवश न्यायालय के आदेश से पहले कोई अनुबंध नहीं होता है।

उदाहरण : बैंक गलती से श्याम के खाते में बड़ी रकम ट्रांसफर कर देता है। अब श्याम और बैंक के मध्य कोई लिखित या मौखिक या किसी भी प्रकार का समझौता नहीं है लेकिन पैसा श्याम का नहीं है श्याम को न चाहते हुए भी पैसे वापस करने होंगे। बैंक अगर अदालत का दरवाजा खटखटाएगा और अदालत पैसे वापस करने का आदेश जारी करेगी, जो एक अर्ध-अनुबंध बन रहा है।

ई-संविदा (E-Contract)

इलेक्ट्रॉनिक संविदा वे करार होते है, जहां करार दोनों पक्षो के मध्य ई-कॉमर्स के माध्यम से किया जाता है, जिसमें दोनों पक्ष शायद ही कभी व्यक्तिगत रूप से मिले हो। यह इलेक्ट्रॉनिक साधनों और उपकरणों में ईमेल, परीक्षण, टेलीफोन, डिजिटल हस्ताक्षर आदि भी शामिल हो सकते हैं। इन्हें साइबर अनुबंध, ईडीआई अनुबंध या इलेक्ट्रॉनिक डेटा इंटरचेंज अनुबंध के रूप में भी जाना जाता है।

उदाहरण : रोहन ऑनलाइन के माध्यम से अपने लिये घड़ी खरीदता है, जहां दोने पक्षो के मध्य एक ई-संविदा लागू होती है और दोनो पक्षो के मध्य एक करार की शर्तें दोनो पक्षो पर लागू होती है।

वैधता के आधार पर संविदा के प्रकार (Types of Contracts Based on Validity)

संविदा वैधता के आधार पर निम्नलिखित प्रकार से वर्गीकृत किया जा रह है।  उदाहरणः वैध संविदा, अवैध संविदा, शून्य संविदा, शून्यकरणीय संविदा, प्रारम्भ से ही शून्य संविदा, एवंम् लागू न करने योग्य संविदा।

वैध संविदा (Valid Contract)

एक वैध करार एक ऐसा समझौता है जो कानूनी रूप से बाध्यकारी और लागू करने योग्य है। इसे कानून द्वारा परिभाषित अनुबंध के सभी आवश्यक तत्वों को पूरा करना चाहिए। इन तत्वों में शामिल हैं:

प्रस्ताव और स्वीकृति: एक पक्ष द्वारा प्रस्ताव और दूसरे पक्ष द्वारा स्वीकृति होनी चाहिए। प्रस्ताव और स्वीकृति स्पष्ट और सुस्पष्ट होनी चाहिए।
विचार-विमर्श: प्रत्येक पक्ष द्वारा दूसरे पक्ष के वादे के बदले में कुछ मूल्य दिया जाना चाहिए। यह पैसा, सामान, सेवाएँ या यहाँ तक कि कुछ करने का वादा भी हो सकता है।
कानूनी संबंध बनाने का इरादा: दोनो पक्षो को अपने समझौते के अनुरूप कानूनी रूप से बाध्यकारी बनाने का इरादा रखना चाहिए। जिससे कोई भी पक्ष करार तोड़ न सके, जिसे पालन करना बाध्यकारी हो।
वैधता: करार किसी अवैध उद्देश्य के लिए नहीं होना चाहिए।
क्षमता: दोनो पक्षो के मध्य करार करने के लिए कानूनी रूप से सक्षम होना चाहिए। अर्थात् कि वे वयस्क और स्वस्थ दिमाग वाले होने चाहिए।

अवैध संविदा (Illegal Contract)

अवैध करार एक ऐसा अनुबंध है जो कानून द्वारा निषिद्ध है। इसका मतलब यह है कि अनुबंध कानूनी रूप से लागू करने योग्य नहीं है और इसे अदालत द्वारा लागू नहीं किया जा सकता है। किसी अनुबंध के अवैध होने के कई कारण हो सकते हैं, जिनमें शामिल हैं:

अनुबंध में एक अवैध गतिविधि शामिल है। उदाहरण के लिए, दवाएँ बेचने का अनुबंध अवैध है।
अनुबंध सार्वजनिक नीति का उल्लंघन करता है. सार्वजनिक नीति सिद्धांतों का एक समूह है जिसे समाज के सर्वोत्तम हित में माना जाता है। उदाहरण के लिए, सरकार को धोखा देने के लिए बनाया गया अनुबंध अवैध हो सकता है।
अनुबंध अविवेकपूर्ण है. इसका मतलब यह है कि अनुबंध इतना अनुचित है कि इसे लागू करना अन्यायपूर्ण होगा।

शून्य संविदा (Void Contract)

शून्य करार एक ऐसा अनुबंध है जो कानूनी रूप से लागू करने योग्य नहीं है। इसका मतलब यह है कि अनुबंध का कोई कानूनी प्रभाव नहीं है और इसे अदालत द्वारा लागू नहीं किया जा सकता है। ऐसे कई कारण हैं जिनकी वजह से कोई अनुबंध अमान्य हो सकता है, जिनमें शामिल हैं:

उदाहरणः दवाएँ बेचने का अनुबंध अवैध है और इसलिए शून्य है एवंम् अनुबंध अवैध है
करार के एक या दोनों पक्ष कानूनी रूप से अनुबंध में प्रवेश करने में सक्षम नहीं हैं। उदाहरण के लिए, एक नाबालिग और एक वयस्क के बीच एक अनुबंध शून्य है क्योंकि नाबालिग कानूनी रूप से अनुबंध में प्रवेश करने में सक्षम नहीं है।
यह अनुबंध दबाव में किया गया था। दबाव तब होता है जब अनुबंध के एक पक्ष को दूसरे पक्ष द्वारा धमकी या दबाव के माध्यम से अनुबंध में प्रवेश करने के लिए मजबूर किया जाता है।
फर्जी तरीके से अनुबंध किया गया था। धोखाधड़ी तब होती है जब अनुबंध का एक पक्ष दूसरे पक्ष को अनुबंध में शामिल होने के लिए प्रेरित करने के लिए गलत या भ्रामक बयान देता है।
अनुबंध अस्पष्ट या अस्पष्ट है. यदि कोई अनुबंध अस्पष्ट या अस्पष्ट है, तो यह शून्य हो सकता है क्योंकि यह निर्धारित करना संभव नहीं है कि पार्टियों का इरादा क्या है।
यदि कोई अनुबंध अमान्य है, तो इसका मतलब है कि अनुबंध के किसी भी पक्ष के पास अनुबंध के तहत कोई कानूनी दायित्व नहीं है। इसका मतलब यह है कि कोई भी पक्ष अनुबंध के उल्लंघन के लिए दूसरे पक्ष पर मुकदमा नहीं कर सकता।

शून्यकरणीय संविदा (Voidable Contract)

शून्यकरणीय करार एक ऐसा अनुबंध है जो कानूनी रूप से लागू करने योग्य है, लेकिन यदि कोई पक्ष चाहे तो इसे रद्द करने में सक्षम हो सकता है। इसका मतलब यह है कि अनुबंध तब तक वैध है जब तक कोई पक्ष इसे रद्द नहीं करना चाहता। एक बार जब करार रद्द हो जाता है, तो ऐसा लगता है मानो अनुबंध कभी अस्तित्व में ही नहीं था।

ऐसे कई कारण हैं जिनकी वजह से कोई अनुबंध रद्द करने योग्य हो सकता है, जिनमें शामिल हैं:

क्षमता की कमी: करार के एक या दोनों पक्षों के पास अनुबंध में प्रवेश करने की कानूनी क्षमता नहीं हो सकती है। उदाहरण के लिए, एक नाबालिग किसी अनुबंध में प्रवेश करने के लिए कानूनी रूप से सक्षम नहीं है, इसलिए उनके द्वारा किया गया कोई भी अनुबंध रद्द करने योग्य है।
गलतबयानी: करार के एक पक्ष ने दूसरे पक्ष को अनुबंध में प्रवेश करने के लिए प्रेरित करने के लिए गलत या भ्रामक बयान दिए होंगे। इसे गलतबयानी के रूप में जाना जाता है, और यह अनुबंध को रद्द करने योग्य बना सकता है।
दबाव: अनुबंध के एक पक्ष को दूसरे पक्ष द्वारा धमकी या दबाव के माध्यम से अनुबंध में प्रवेश करने के लिए मजबूर किया जा सकता है। इसे दबाव के रूप में जाना जाता है, और यह अनुबंध को रद्द करने योग्य बना सकता है।
अचेतनता: यदि कोई अनुबंध अचेतन है तो उसे रद्द किया जा सकता है। इसका मतलब यह है कि अनुबंध इतना अनुचित है कि इसे लागू करना अन्यायपूर्ण होगा।

प्रारंभ से ही शून्य संविदा (Void Contract from Inception)

प्रारंभ से ही शून्य करार एक ऐसा अनुबंध है जो शुरुआत से ही कानूनी रूप से लागू करने योग्य नहीं है। इसका मतलब यह है कि अनुबंध कभी वैध नहीं था, और इसे अदालत द्वारा लागू नहीं किया जा सकता है। ऐसे कई कारण हैं जिनकी वजह से कोई अनुबंध प्रारंभ से ही अमान्य हो सकता है, जिनमें शामिल हैं:

अनुबंध के एक या दोनों पक्ष कानूनी रूप से अनुबंध में प्रवेश करने में सक्षम नहीं हैं। उदाहरण के लिए, एक नाबालिग और एक वयस्क के बीच एक अनुबंध शुरू से ही अमान्य है क्योंकि नाबालिग कानूनी रूप से अनुबंध में प्रवेश करने में सक्षम नहीं है।
यह अनुबंध दबाव में किया गया था। दबाव तब होता है जब अनुबंध के एक पक्ष को दूसरे पक्ष द्वारा धमकी या दबाव के माध्यम से अनुबंध में प्रवेश करने के लिए मजबूर किया जाता है।
फर्जी तरीके से अनुबंध किया गया था। धोखाधड़ी तब होती है जब अनुबंध का एक पक्ष दूसरे पक्ष को अनुबंध में शामिल होने के लिए प्रेरित करने के लिए गलत या भ्रामक बयान देता है।
अनुबंध का पालन करना असंभव है। उदाहरण के लिए, किसी ऐसे घर को बेचने का अनुबंध जो अस्तित्व में नहीं है, शुरुआत से ही शून्य है।

लागू न करने योग्य संविदा (Unenforceable Contract)

लागू न करने योग्य करार एक ऐसा अनुबंध है जो वैध है लेकिन जिसे अदालत लागू नहीं करेगी। इसका मतलब यह है कि अनुबंध कानूनी रूप से बाध्यकारी है, लेकिन दोनो पक्षो व्दारा अदालत में इस पर भरोसा करने में सक्षम नहीं हो सकती हैं। ऐसे कई कारण हैं जिनकी वजह से कोई अनुबंध लागू न करने योग्य हो सकता है, जिनमें शामिल हैं:

उचित स्वरूप का अभाव: एक अनुबंध लागू न करने योग्य हो सकता है यदि वह कानून द्वारा अपेक्षित उचित स्वरूप में नहीं है। उदाहरण के लिए, भूमि की बिक्री के अनुबंध को लिखित रूप में और दोनों पक्षों द्वारा हस्ताक्षरित होने की आवश्यकता हो सकती है।
सीमाओं का क़ानून: एक अनुबंध लागू न करने योग्य हो सकता है यदि अनुबंध किए हुए बहुत समय हो गया हो। सीमाओं का क़ानून वह समय अवधि है जिसके भीतर कोई पक्ष अनुबंध के उल्लंघन के लिए मुकदमा कर सकता है।
सार्वजनिक नीति: यदि कोई अनुबंध सार्वजनिक नीति का उल्लंघन करता है तो वह लागू न करने योग्य हो सकता है। सार्वजनिक नीति सिद्धांतों का एक समूह है जिसे समाज के सर्वोत्तम हित में माना जाता है। उदाहरण के लिए, सरकार को धोखा देने के लिए बनाया गया अनुबंध लागू न करने योग्य हो सकता है।

संविदा कितने साल की हो सकती है? (How long can the contract be?)

भारतीय संविदा अधिनियम के अन्तर्गत किसी करार के लिए अधिकतम अवधि निर्दिष्ट नहीं करता है। हालाँकि, कुछ महत्वपूर्ण विचार के माध्यम से हम समझ सकते हैं किसी करार के लिये लगभग् कितनी अवधि निर्दिष्ट किया गया है। किसी करार की अवधि को सीमित कर सकते हैं। उदाहरण के लिए, माल की बिक्री का अनुबंध माल की शेल्फ लाइफ तक सीमित हो सकता है। या, संपत्ति के पट्टे का अनुबंध पट्टे की अवधि तक सीमित हो सकता है। इसके अलावा, कोई करार दोनो पक्षों के मध्य की एक विशिष्ट अवधि के लिए भी सहमत हो सकता हैं। उदाहरण के लिए, कोई अनुबंध एक वर्ष, दो वर्ष या पाँच वर्ष की अवधि के लिए हो सकता है।

यहां कुछ कारक दिए गए हैं जो करार की अवधि को प्रभावित कर सकते हैं:

  • अनुबंध की प्रकृति
  • अनुबंध का उद्देश्य
  • अनुबंध के पक्षकारों की आवश्यकताएँ।
  • उस देश का कानून जहां अनुबंध किया जा रहा है।

यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि करार की अवधि परिवर्तन के अधीन हो सकती है। उदाहरण के लिए, यदि एक पक्ष अनुबंध का उल्लंघन करता है तो करार को समय से पहले भी समाप्त किया जा सकता है या, यदि पक्ष सहमत हों तो करार को आगे की अवधि के लिए बढ़ाया भी जा सकता है।

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