जमानत कब और किसे किन-किन अपराधो मे मिल सकती है? (When and who can get bail in which crimes?)

अक्सर हम लोगो ने देखा है कि कोई व्यक्ति अथवा फिल्मी दुनिया का कोई अभिनेता, अपराध करके बड़े मजे से बाहर घूम रहा है तो हमारे मन मे यह प्रश्न जरूर उठता है कि इसे तो कुछ दिन पहले, इस मामले मे पुलिस गिरफ्तार करके ले गयी थी और यह व्यक्ति अब बाहर कैसे घूम रहा है, तो आज हम बात करेंगें कि ( What is bail? When can I get bail ), किसी अभियुक्त को जमानत/बेल कैसे मिल सकती है और जेल से बाहर जमानत, पर किन-किन परिस्थितियों मे कैसे निकला जाये, इसके आलावा जमानत पर बाहर आने वाले अभि़युक्त को न्यायालय किन शर्तो पर जमानत देता है

मुचलका/ पर्सनल बॉन्ड क्या है?

जमानत लेने के लिये हमारी कानून व्यवस्था मे दो प्रकार से किसी व्यक्ति को बॉन्ड/सिक्योरिटी लेकर जमानत देने का अधिकार दिया गया है पहला एक सिक्योरिटी बॉन्ड और दूसरा पर्सनल बॉन्ड। आमतौर पर अदालत दोनों तरह के बॉन्ड जारी करने का आदेश देती है। जब कि कानून यह भी कहता है कि अदालत किसी को भी सिर्फ पर्सनल बॉन्ड पर भी छोड़ सकती है। सामान्य हिंदुस्तानी भाषा में सिक्योरिटी बॉन्ड को जमानत और पर्सनल बॉन्ड को मुचलका कहा जाता है।

अपराध के प्रकार और जमानत की प्रक्रिया-

वैसे हम पहले समझते है अपराध कितने प्रकार के होते है। अपराध की दो श्रेणी होती है- जमानतीय अपराध (Bailable Offence) और गैर-जमानतीय अपराध (Non-Bailable Offence)

जमानतीय अपराध वे अपराध होते है जैसे कोई किसी गैर-कानूनी जनसभा का सदस्य है, झगड़ा करना, घातक हथियार रखना, उपद्रव करना, शांति भंग करना इत्यादि जो गम्भीर प्रकृति के नही होते है वह सभी जमानतीय अपराध की श्रेणी मे आते है, इसी तरह से गैर-जमानती अपराध जैसे- किसी हत्या करना, हत्या का प्रयास करना, रेप करना, गम्भीर चोट पहुचाना, अपहरण करना इत्यादि अपराध गैर-जमानती श्रेणी मे आते है।

किसी अभियुक्त व्दारा यदि जमानतीय अपराध किया गया है, तो पुलिस अधिकारी अथवा न्यायालय उसे जमानत दे देता है। जमानत देने का तात्पर्य यह नही कि अभियुक्त व्दारा गम्भीर अपराध नही किया गया है, ब्लकि जमानत देना या न देना न्यायालय के न्यायविवेक पर निर्भर करता है, अगर न्यायालय को जब यह लगने लगता है, कि अभियुक्त सबूत मिटाने या फरार होने की कोशिश कर सकता है अथवा यह कृत्य यह व्यक्ति बार-बार करता आ रहा है, तो भी न्यायालय अभियुक्त की जमानत याचिका को खारिज कर सकता है। जमानतीय अपराधो मे जांच अधिकारी/पुलिस अधिकारी अभियुक्त स्वयं ही मुचलके पर या बेलबॉन्ड के माध्यम से जमानत दे सकता है।

मुचलके पर जमानत का प्रावधान-

मुचलके पर जमानत का प्रावधान उन मामलों मे लागू होता है, जहां किसी अभियुक्त को पुलिस (अपनी हिरासत मे लिये है), तो वह अभियुक्त को मुचलके पर जमानत दे सकता है। मुचलके का अर्थ पर्सनल बाॉन्ड (बिना गारन्टी) भराकर भी जमानत दे सकता है। यह उन साधारण मामले जैसे सार्वजनिक स्थान पर झगड़ा, गाली-गलौज और हल्की फुल्की मारपीट इत्यादि पर आसानी से मुचलके पर जमानत देने का अधिकार होता है।

न्यायालय आमतौर पर गैर-गम्भीर अपराधों मे जमानत दे देती है, ऐसे मामलो मे जमानत या तो पुलिस अधिकारी (जिसकी हिरासत मे है) या न्यायालय दे सकता है, अभियुक्त को जमानत गारन्टी या बिना गारन्टी के जमानत “प्रतिज्ञापत्र” को निष्पादित कर जमानत पर रिहा किया जा सकता है। जमानत बाण्डं के कुछ नियम एवंम् शर्ते जैसे अभियुक्त न्यायाल या पुलिस अधिकारी के अनुमति के बिना राज्य के क्षेत्रीय अधिकार क्षेत्र को छोड़ कर नही जा सकेगा, हर बार अभियुक्त की अवश्यकता पड़ने पर पुलिस अधिकारी या न्यायालय के समक्ष उपस्थिति होना पड़ेगा। अभियुक्त जांच मे पूर्ण समर्थन करेगा, किसी भी दस्तावेजों के साथ छेडछाड़ नही करेंगा और न ही किसी सबूत और गवाह को डराने या मिटाने का प्रयास करेगा। जो अभियुक्त जमानत की शर्तो का पालन करने मे विफल रहता है, तो न्यायालय अभियुक्त को जमानत देेने से इन्कार करने का अधिकार भी है, क्यो न वह अपराध जमानती हो।

इसी तरह से गैर-जमानतीय अपराध वह अपराध होते है जो गम्भीर प्रकृति के होते है, इन अपराधों मे न्यायालय इतनी आसानी से जमानत नही देताा है। काफी समय जमानत मिलने मे लग जाता है, इसके अलावा न्यायालय यह भी देखता कि अभियुक्त इस अपराध मे कितना इनवाल्व है और इस व्यक्ति का पुराना क्या रिकार्ड है क्या पहले भी कभी किसी दूसरे गम्भीर अपराध मे लिप्त तो नही है। गैर-जमानतीय मामलों मे जांच अधिकारी/पुलिस अधिकारी अभियुक्त को जमानत नही दे सकते है, केवल मजिस्ट्रेट/न्यायाधीश ही जमानत दे सकेगें।

इसके अलावा यदि पुलिस समय पर आरोप पत्र (Chargesheet) दाखिल नही करते है, तब भी अभियुक्त को जमानत दी जा सकती है, चाहे मामला गम्भीर क्यों न हो। जिन अपराधों मे दस साल की सजा है, यदि उसमे 90 दिन मे आरोप-पत्र पेश नही किया, तो भी जमानत देने का प्रावधान है।

गैर-जमानतीय अपराध वाले मामलों मे यदि न्यायालय को यह भान हो जाता है कि अभियुक्त को वादी व्दारा केवल परेशान करने उद्देश्य से फसांया है और वह इस अपराध मे पूर्णतयाः लिप्त नही है, अथवा साक्ष्यो को देखने और मामले की जांच करने के पश्चात् अगर न्यायालय को ज्ञात हो जाता है कि अभियुक्त पर यह झूठा आरोप लगाया गया है अथवा जमानत की सुनवाई के समय यह सिद्द कर ले जाते है, तब भी असानी से जमानत/बेल मिल जाती है।

जमानत/बेल (Bail) के प्रकार-

जमानत/बेल (Types of Bail) दो प्रकार से मिलती है, अर्थात् जब कोई अपराध कारित होता है, तो अभियुक्त को न्यायालय एवंम् पुलिस अधिकारी के समक्ष उपस्थित ही होना पड़ता है, इसके अलावा यदि उपस्थित होंगे तो अभियुक्त को यह भी खतरा बना रहता है कि यदि हम न्यायालय अथवा पुलिस के समक्ष ऐसे ही उपस्थित हो जायेंगे, तो कही ऐसा न हो पुलिस अधिकारी अथवा न्यायालय हमे जेल न भेज दे, इसलिये अभियुक्त को बेल का सहारा लेना पड़ता है, तो आज हम जानेंगे। जमानत/बेल के प्रकार और यह बेल कब तक, किस तरह से काम मे आती है।

अग्रिम जमानत/बेल-

अग्रिम जमानत (Anticipatory bail) बेल उन अभियुक्त पर लागू होता है, जिन्हे न्यायालय अथवा पुलिस अधिकारी तलब कर रही है, कि अभियुक्त न्यायालय अथवा पुलिस अधिकारी के समक्ष उपस्थित हो, इसलिये सम्मन जारी करती है। ऐसे मामलो मे जब प्राथमिक रिपोर्ट/एनसीआर दर्ज की जाती है, तो पुलिस अधिकारी अभियुक्त को सूचित करती है, कि आइये और मामले की सही जांच हेतु प्रस्तुत होकर प्रकरण को समझाइये आकर, लेकिन कभी-कभी मामले की गम्भीरता को देखते हुये गिरफ्तार करने की भी शक्ति होती है। यदि पुलिस अधिकारी व्दारा रिपोर्ट दर्ज कर ली गयी है, तो भी अभियुक्त न्यायालय मे इस आधार पर अन्तरिम जमानत हेतु आवेदन कर सकता है कि अभियुक्त निर्दोष है, केवल झूठे मामले मे फसांया गया और यदि जो भी कारण अभियुक्त को निर्दोष साबित करने के लिये हो, सभी कारणों को ढंग से बतलाने के पश्चात् न्यायालय आरोप सिद्ध होने तक अग्रिम जमानत दे सकती है।

अग्रिम जमानत का उद्धेश्य केवल अभियुक्त की बेगुनाही साबित करने तक ही मान्य होती है, अर्थात् अभियुक्त को पुलिस की पूरी मदद् करनी होगी, पुलिस आपको गिरफ्तार नही करेगी और आरोप पत्र (Chargesheet) दाखिल होने तक पुलिस अधिकारी एवंम् आपसे कुछ नही बोलेगी, लेकिन जब आरोप पत्र (Chargesheet) दाखिल हो जायेगी, तो फिर आपको रेगूलर बेल करानी ही होगी।

रेगुलर जमानत/बेल-

रेगुलर बेल (Regular bail) प्रत्येक मामले मे गिरफ्तारी से बचने के लिये लेना ही पड़ता है, इसके अलावा अभियुक्त को यह बेल केवल गिरफ्तारी से बचाती है और न्यायालय और पुलिस अधिकारी के समक्ष उपस्थित होने के लिये बाध्य भी करती है, दोनो सूरतो मे यदि अभियुक्त समयानुसार न्यायालय अथवा पुलिस अधिकारी के समक्ष उपस्थित नही होता है, तो यह जमानत/बेल स्वतः ही समाप्त हो जाती है।

वैसे आमतौर पर बेल बॉन्ड भराने का एक मुख्य उद्देश्य यह भी होता है, कि अभियुक्त को जब भी न्यायालय अधिकारी के समक्ष उपस्थित होने हेतु बुलाया जायेगा, तो वह उपस्थित होगा। किसी दूसरे राज्य मे बिना अग्रिम सूचना दिये कही नही जा सकेगा। इसके अलावा रेगुलर बेल के जो भी जमानतगीर व्दारा अभियुक्त की उपस्थित कराने हेतु गारन्टर लगे है, यह उनकी भी जिम्मेदारी होती है, कि अभियुक्त को समय पर उपस्थित कराये। अन्यथा जमानत स्वतः ही निरस्त हो जाती है।

जमानत की शर्ते-

किसी मामले मे अभियुक्त को जब जमानत मंजूर हो जाती है, तो अभियुक्त का भी दायित्व होता है कि वह जमानत की पूर्ण शर्तो का ढंग से पालन करे। अभियुक्त को यह जानना बहुत ही आवश्यक है कि यदि न्यायालय ने जमानत दी है तो हमे क्या-क्या सावधानियां रखनी होगी। अन्यथा कही ऐसा न हो कि अभियुक्त की थोड़ी सी लापरवाही अभियुक्त को जेल न पहुचा दे।

न्यायालय/पुलिस अधिकारी किसी अभियुक्त को किन-किन आधारों पर जमानत/बेल पर रिहा करती है-

  • रिहा होने के बाद आप वादी को परेशान नहीं करेंगे।
  • जमानत पर रिहा होने के बाद अभियुक्त किसी भी सबूत या गवाह को मिटाने की कोशिश नहीं करेंगे ।
  • बेल पर रिहा होने वाले अभियुक्त विदेश यात्रा नहीं कर सकेंगे।
  • जमानत/बेल मिलने के पश्चात् अभियुक्त बिना अग्रिम सूचना दिये राज्य एवंम् जिला छोड़कर नही जा सकेंगे।

उपरोक्त लेख के माध्यम दी गयी जानकारी आप समझ ही गये होंगे, फिर भी आपके मन मे किसी भी प्रकार की कोई शंका हो, तो आप कमेन्ट के माध्यम जानकारी ले सकते है।

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