नमस्कार दोस्तों, आज हम आपके लिए दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 170 के बारे में पूर्ण जानकारी देंगे। क्या कहती है दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 170 कब लागू होती है, यह भी इस लेख के माध्यम से आप तक पहुंचाने का प्रयास करेंगे।
धारा 170 का विवरण
दण्ड प्रक्रिया संहिता (CrPC) में धारा 170 के अन्तर्गत जब किसी मामले मे जांच पर पुलिस अधिकारी अथवा भारसाधक अधिकारी पर्याप्त साक्ष्य जांच से प्राप्त कर लेता है, तो वह न्यायालय मे मजिस्ट्रेट के समक्ष प्रस्तुत करता है, प्राप्त साक्ष्य के आधार पर ही मजिस्ट्रेट अभियुक्त का विचारण करने या उसे विचारणार्थ सुपुर्द करने के लिए सशक्त मजिस्ट्रेट के पास अभियुक्त को अभिरक्षा में भेजेगा अथवा यदि अपराध जमानतीय है और अभियुक्त प्रतिभूति देने के लिए समर्थ है यह धारा 170 ऐसे मामलों में पुलिस अधिकारी व्दारा अन्वेषण के पश्चात् साक्ष्य पर्याप्त है तब मामलों का मजिस्ट्रेट के पास भेज दिया जाना प्रक्रिया को बताता है।
सीआरपीसी की धारा 170 के अनुसार
जब साक्ष्य पर्याप्त है तब मामलों का मजिस्ट्रेट के पास भेज दिया जाना-
(1) यदि इस अध्याय के अधीन अन्वेषण करने पर पुलिस थाने के भारसाधक अधिकारी को प्रतीत होता है कि यथापूर्वोक्त पर्याप्त साक्ष्य या उचित आधार है, तो वह अधिकारी पुलिस रिपोर्ट पर उस अपराध का संज्ञान करने के लिए और अभियुक्त का विचारण करने या उसे विचारणार्थ सुपुर्द करने के लिए सशक्त मजिस्ट्रेट के पास अभियुक्त को अभिरक्षा में भेजेगा अथवा यदि अपराध जमानतीय है और अभियुक्त प्रतिभूति देने के लिए समर्थ है तो ऐसे मजिस्ट्रेट के समक्ष नियत दिन उसके हाजिर होने के लिए और मजिस्ट्रेट के समक्ष, जब तक अन्यथा निदेश न दिया जाए तब तक दिन-प्रतिदिन उसकी हाजिरी के लिए प्रतिभूति लेगा।
(2) जब पुलिस थाने का भारसाधक अधिकारी अभियुक्त को इस धारा के अधीन मजिस्ट्रेट के पास भेजता है या ऐसे मजिस्ट्रेट के समक्ष उसके हाजिर होने के लिए प्रतिभूति लेता है तब उस मजिस्ट्रेट के पास वह ऐसा कोई आयुध या अन्य वस्तु जो उसके समक्ष पेश करना आवश्यक हो, भेजेगा और यदि कोई परिवादी हो, तो उससे और ऐसे अधिकारी को मामले के तथ्यों और परिस्थितियों से परिचित प्रतीत होने वाले उतने व्यक्तियों से, जितने वह आवश्यक समझे, मजिस्ट्रेट के समक्ष निर्दिष्ट प्रकार से हाजिर होने के लिए और (यथास्थिति) अभियोजन करने के लिए या अभियुक्त के विरुद्ध आरोप के विषय में साक्ष्य देने के लिए बन्धपत्र निष्पादित करने की अपेक्षा करेगा।
(3) यदि बन्धपत्र में मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट का न्यायालय उल्लिखित है तो उस न्यायालय के अन्तर्गत कोई ऐसा न्यायालय भी समझा जाएगा जिसे ऐसा मजिस्ट्रेट मामले की जांच या विचारण के लिए निर्देशित करता है, परन्तु यह तब जब ऐसे निर्देश की उचित सूचना उस परिवादी या उन व्यक्तियों को दे दी गई है।
(4) वह अधिकारी, जिसकी उपस्थिति में बन्धपत्र निष्पादित किया जाता है, उस बन्धपत्र की एक प्रतिलिपि उन व्यक्तियों में से एक को परिदत्त करेगा जो उसे निष्पादित करता है और तब मूल बन्धपत्र को अपनी रिपोर्ट के साथ मजिस्ट्रेट के पास भेजेगा।
Cases to be sent to Magistrate when evidence is sufficient–
(1) If, upon an investigation under this Chapter, it appears to the officer in charge of the police station that there is sufficient evidence or reasonable ground as aforesaid, such officer shall forward the accused under custody to a Magistrate empowered to take cognizance of the offence upon a police report and to try the accused or commit him for trial, or, if the offence is bailable and the accused is able to give security, shall take security from him for his appearance before such Magistrate on a day fixed and for his attendance from day to day before such Magistrate until otherwise directed.
(2) When the officer in charge of a police station forwards an accused person to a Magistrate or takes security for his appearance before such Magistrate under this section, he shall send to such Magistrate any weapon or other article which it may be necessary to produce before him, and shall require the complainant (if any) and so many of the persons who appear to such officer to be acquainted with the facts and circumstances of the case as he may think necessary, to execute a bond to appear before the Magistrate as thereby directed and prosecute or give evidence (as the case may be) in the matter of the charge against the accused.
(3) If the Court of the Chief Judicial Magistrate is mentioned in the bond, such Court shall be held to include any Court to which such Magistrate may refer the case for inquiry or trial, provided reasonable notice of such reference is given to such complainant or persons.
(4) The officer in whose presence the bond is executed shall deliver a copy thereof to one of the persons who executed it, and shall then send to the Magistrate the original with his report.
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