दहेज प्रतिषेध अधिनियम, 1961 की सम्पूर्ण जानकारी (Dowry Prohibition Act, 1961 Full Information)

समाज से दहेज जैसी कुप्रथाओ को खत्म करने के उद्देश्य के लिये दहेज अधिनियम 1961 कानून बनाया गया था, जिसके अनुसार दहेज लेना ही नहीं, दहेज देना भी अपराध की श्रेणी मे आता है। वैसे हमारे समाज मे दहेज देना और लेना दोनो सबसे बडी समस्या है क्योकि समाज मे रहने व दिखावे के लिये बड़े-बड़े लोगो के लिये सिम्बल और सम्मान की तरह है कि क्या क्या गिफ्ट दिना या क्या मिला और किसने क्या गिफ्ट दिया। पहले यह सभी गिफ्ट हमारे सम्मान को दर्शाते है, लेकिन जब रिश्तेदारी मे किसी भी प्रकार से दरार आ जाती है तब इसी के चलते दहेज का रूप दे दिया जाता है।

दहेज जैसे कुप्रथाये हमारे ही नही अपितु प्रत्येक देश मे शादी-ब्याह जैसे कार्यक्रमो मे लकड़ी पक्ष के परिवार व्दारा नक़द या वस्तुओं के रूप में यह वर पक्ष के परिवार को वधू के साथ दिया जाता है। आज के आधुनिक समय में भी दहेज प्रथा नाम की बुराई हर जगह फैली हुई है। भारतीय समाज में दहेज़ प्रथा अभी भी विकराल रूप में है। इसके अलावा यह प्रथा हमारे ही समाज मे नही ब्लकि विश्व के अन्य देशो मे भी दहेज प्रथा जैसे कुरीतीयां विकराल रूप मे है।

इसके अलावा बहुत से मामलो मे हमारे भारत देश मे दहेज लेने के लिये वधू पक्ष को काफी दबाव डाला जाता है, जिसके चलते इस दबाव के कारण कभी कभी वधू इस दहेज के कारण अपना दम तोड़ देती है, ऐसी कुरीतियों के चलते उन सभी लोगो को मानसिक वेदना का शिकार भी होना पड़ रहा है। इसलिये यह दहेज प्रतिषेध अधिनियम 1961 (Dowry Prohibition Act, 1961) कानून को 25 मई 1961 को लाया गया। जिससे समाज मे हो रही दहेज कुरीतियों को रोका जा सके। इसके पश्चात् भी हमारे भारत देश मे औसतन हर एक घंटे में एक महिला दहेज संबंधी कुरीतियो के कारण ही मौत का शिकार हो रही है और वर्ष 2007 से 2011 के बीच इस प्रकार के मामलों में काफी वृद्धि देखी गई है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़े बताते हैं कि विभिन्न राज्यों से वर्ष 2012 में दहेज हत्या के 8,233 मामले सामने आए। आंकड़ों का औसत बताता है कि प्रत्येक घंटे में एक महिला दहेज प्रथा के कारण ही मृत्यु को गले लगा रही है।

दहेज प्रथा

दहेज प्रथा से हमारे समाज मे बहुत समय पहले से लागू है, जिसका मूलभूत सिद्धान्त यह है कि जब कोई युवती अपने मायके से विदा होकर अपने ससुराल जाती है, तो युवती के परिवार वाले एक तरह से उपहार देते है जिसे दहेज नहीं, उपहार माना जाता था, लेकिन आज के समय एकदम अलग था क्योकिं आज के समय ससुराल पक्ष (वर पक्ष वाले) एक तरह से शादी-विवाह मे एक तरह से एक-एक वस्तु इस तरह से डिमाण्ड के रूप मे भी मांगते है, जिसे वधू पक्ष वालों को पूरा करना पड़ता है इसके अलावा अधिकांशतः व्यक्ति समाज मे दिखावा करने या सम्मान बचाने के लिये भी दहेज मांगते एवंम् देते है।

इन प्रथाओ के चलते कभी-कभी ससुराल पक्ष वाले इस प्रथा का गलत फायदा भी उठाते है, इसलिये इस कानून को ऐसी प्रथाओ का रोकने के उद्देश्य से बनाया गया, जिसके चलते वह सभी दहेज देने वाले एवंम् लेने वाले दोनों ही दंड एवंम् अर्थदण्ड के अपराधी होंगे।

कब दहेज कानून लागू नही होता है?

जब किसी शादी-विवाह मे जब दोनो पक्षो के मध्य लेन देन की बाते होती है, तो कुछ बिन्दु जैसे वधु पक्ष वाले अपनी इच्छा से ही अपनी पुत्री अथवा दमाद को कुछ अपनी तरफ से गिफ्ट करते है, जिसे हम दहेज नही कहते है क्योकि यह सम्पत्ति मांगी नही गयी है, इसलिये स्वेच्छया से दी गयी सम्पत्ति को दहेज प्रतिषेध कानून मे नही आता है। लेकिन कुछ मामलो मे वधु पक्ष वाले भी इस कानून का गलत उपयोग करते है क्योकि जब वर-वधु के सम्बन्धो मे वाद-विवाद उत्पन्न होता है, तो उन सभी वस्तुओ को भी बढा चढाकर बताया जाता है और उस वस्तु को भी दहेज की संज्ञा दे दी जाती जबकि वह स्वेच्छया से दी हुयी है।

दहेज मामलों मे सजा/जुर्माना

दहेज जैसे मामलों मे हम समझ सकते है, कि जब कोई व्यक्ति दहेज देता अथवा दहेज लेता है, तो वह दोनो सूरतों वह दंड का अपराधी होता है। जो कोई व्यक्ति दहेज लेता है या देता है, तो वह कारावास से, जिसकी अवधि (पांच वर्ष से कम नही हो सकेंगी) और वह व्यक्ति जुर्माने से भी , जो पन्द्रह हजार रूपये अथवा दहेज के मूल्य के बराबर भी हो सकती है, दण्डित किया जायेगा।

जब कोई व्यक्ति दहेज के लिये अप्रत्यक्ष रूप से डिमांड करता है, तो भी वह व्यक्ति कम से कम 6 मास का कारावास (2 वर्ष तक बढांया जा सकता है) और जुर्माने से जो दस हजार रूपये तक का हो सकेगा।

हम जानेंगें दहेज प्रथा जैसी कुरीतियों को रोकने के लिये हमारे संविधान मे क्या बनाया गया जिसके चलते इसे रोकने का प्रयास किया जा रहा है। आज हम दहेज प्रतिषेध अधिनियम 1961 की सम्पूर्ण धारा जानेंगे, कि किस धारा मे क्या कहा गया है और यह कब किस पर लागू होगी।

धारा- 1 संक्षिप्त नाम, विस्तार और प्रारम्भ (Short title, extent and commencement)

धारा-2 दहेज की परिभाषा (Definition of “dowry”)

धारा- 3 दहेज देने या दहेज लेने के लिये शास्ति (Penalty for giving or taking dowry)

धारा- 4 दहेज मांगने के लिये शास्ति (Penalty for demanding dowry)

धारा- 4A विज्ञापन पर पाबंदी (Ban on advertisement)

धारा- 5 दहेज देने या लेने के लिये करार का शून्य होना (Agreement for giving or taking dowry to be void)

धारा- 6 दहेज का पत्नी या उसके वारिसों के फायदे के लिये होना (Dowry to be for the benefit of the wife or her heirs)

धारा- 7 अपराधों का संज्ञान (Cognizance of offences)

धारा- 8 अपराधों का कुछ प्रयोजनों के लिये संज्ञेय होना तथा जमानतीय और अशमनीय होना (Offences to be cognizable for certain purposes and to be bailable and non-compoundable)

धारा- 8A कुछ मामलों मे सबूत का भार (Burden of proof in certain cases)

धारा-8B दहेज प्रतिषेध अधिकारी (Dowry Prohibition Officers)

धारा- 9 नियम बनाने की शक्ति (Power to make rules)

धारा- 10 राज्य सरकार की नियम बनाने की शक्ति (Power of the State Government to make rules)

Leave a Comment