परिवाद का संज्ञान (Cognizance of Complint)- दण्ड प्रकिया संहिता की धारा 202 के अनुसार-
भारतीय दंड संहिता की धारा 202 के अनुसार-
जो भी कोई यह जानते हुए या यह विश्वास करने का कारण रखते हुए कि कोई अपराध किया गया है, उस अपराध के बारे में कोई सूचना, जिसे देने के लिए वह क़ानूनी रूप से आबद्ध हो, देने का साशय लोप करेगा, तो उसे किसी एक अवधि के लिए कारावास जिसे छह महीने तक बढ़ाया जा सकता है, या आर्थिक दण्ड, या दोनों से दण्डित किया जाएगा।
यदि कोई मजिस्ट्रेट अपराध का परिवाद प्राप्त करने पर जिसका संज्ञान करने के लिये आधिकृत है या जो धारा-192 के अधीन उसके हवाले किया गया है, ठीक समझता है और ऐसे मामले मे जहां अभियुक्त ऐसे स्थान पर रह रहा है, जो उसके न्यायक्षेत्र मे नही आता, जिसमे वह अधिकारिता का प्रयोग करता है तो अभियुक्त के विरूद्ध आदेशिका का जारी किया जाना मुल्तवी कर सकता है, और विनिश्चित करने के प्रयोजन से कि कार्यवाही करने के लिये पर्याप्त आधार है या नही, या तो स्वयं ही मामले की जांच कर सकता है या किसी पुलिस अधिकारी व्दारा या अन्य ऐसे व्यक्ति व्दारा जिनको वह ठीक समझे, अन्वेषण किये जाने के लिये निर्देश दे सकता है, परन्तु अन्वेषण के लिये ऐसा कोई निर्देश वहां नही दिया जायेगा-
लागू अपराध
सूचना देने के लिए आबद्ध व्यक्ति व्दारा अपराध की सूचना देने का साशय लोप का अपराध करने व्यक्ति को छह माह का कारावास या आर्थिक दण्ड या दोनों के लिये उत्तरदायी होगा ।
- जहां मजिस्ट्रेट को यह प्रतीत होता है कि वह अपराध जिसका परिवाद किया गया है अनन्यतः सत्र न्यायालय व्दारा विचारणीय है; या
- जहां परिवाद किसी न्यायालय व्दारा नही किया गया है, जब कि परिवादी या उपस्थित साक्षियों की (यदि कोई हो) धारा 200 के आधीन शपथ पर समीक्षा नही ली जाती है ।
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