कोर्ट मे गीता पर ही हाथ रखकर कसम क्यो दी जाती है, रामायण पर क्यो नही दी जाती है, रामायण भगवान श्री राम के जीवन का वर्णन है। रामायण से लोग आदर्श जीवन का मार्गदर्शन करते है, जबकि रामायण मे भगवान श्री राम ने कभी झूठ का सहारा नही लिया था और न ही कभी असत्य व अधर्मप्रिय कार्य किया और हमेशा न्यायप्रिय कार्य एवंम् आदर्श जीवन व्यतीत किया और आदर्श जीवन जीने के लिये भगवान श्री राम का प्रेरणात्मक पाठ है, परन्तु गीता हिन्दुओ का एक ऐसा ग्रन्थ है जिसमें जीवन के लिये मार्गदर्शन को प्रेरित करता है, यह केवल महाभारत युद्ध का विवरण नहीं है बल्कि सत्य एवंम् धर्म की स्थापना के लिए मनुष्य को किस प्रकार के आचरण करना चाहिए उसका विस्तार से विवरण है। हिंदू धर्म में गीता, इस्लाम में कुरान और क्रिश्चियन में बाइबल समान रूप से मानव जीवन को मार्गदर्शन करने वाले धर्म ग्रंथ माने गए हैं।
भारत मे गीता पर हाथ रखकर कसम खाने की परम्परा मुगल शासको के शासन काल से प्रारम्भ हुयी थी, मुगल शासको ने अपनी धार्मिक किताबो ग्रन्थो पर हाथ रखकर शपथ लेने की परम्परा शुरू की थी, मुगल शासको व्दारा अपने लाभ के लिये सत्य-असत्य, और छल-कपट का सहारा लेते थे, इसके साथ ही वह भारत के नागरिको के वचन पर विश्वास नही करते थे, लेकिन वे इतना जानते थे कि यदि कोई भारत का नागरिक अपने पवित्र ग्रन्थ पर हाथ रखकर शपथ ले या गंगाजल हाथ मे लेकर शपथ ले, तो वह झूठ नही बोल सकते है । शायद उन्हे ज्ञात था गंगाजल पवित्र है, कोई भी हिन्दू नागरिक गंगाजल की झूठी शपथ नही लेगा, इसलिये वे गंगाजल के माध्यम से शपथ दिलाते थे और दूसरे धर्म के लोगो के साथ उनके पवित्र ग्रन्थ अथवा धार्मिक किताबो पर हाथ रखकर शपथ दिलाते थे ।
भारत देश आजाद होने
के पश्चात् अदालत मे शपथ दिलाने की परम्परा सन् 1957 तक कुछ मुख्य अदालतो जैसे- बॉम्बे
हाईकोर्ट मे हिन्दू, मुस्लिम एवंम् दूसरे धर्मो के लोगो के उनकी पवित्र पुस्तक पर
हाथ रखकर शपथ लेने की प्रथा थी । सन् 1969 मे किसी ग्रन्थ अथवा धार्मिक किताबो पर
शपथ लेने की प्रथा पूर्ण रूप से समाप्त हो गयी थी, लेकिन आज भी शपथ दिलाने की
प्रकिया है जो कि सभी धर्मो के लोगो के लिये समान है, जो इस प्रकार है-
“ मै ईश्वर की शपथ लेता हूं जो भी कहूंगा सत्य कहूंगा सत्य के अलावा कुछ नही कहूंगा“
लॉ कमीशन ने अपने कानून मे संसोधन के पश्चात् यह भी प्रवधान किया है कि यदि गवाह 12 वर्ष से कम उम्र का है तो उसे किसी भी प्रकार की कोई शपथ की लेने की अवश्यकता नही है, क्योकि ऐसा माना जाता है छोटे बच्चे स्वयं भगवान का स्वरूप होते है ।