नमस्कार दोस्तों, आज हम आपके लिए भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 167 के बारे में पूर्ण जानकारी देंगे। क्या कहती है भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 167, साथ ही क्या बतलाती है, यह भी इस लेख के माध्यम से आप तक पहुंचाने का प्रयास करेंगे।
धारा 167 का विवरण
भारतीय साक्ष्य अधिनियम (Indian Evidence Act) की धारा 167 के अन्तर्गत साक्ष्य का अनुचित ग्रहण या अग्रहण स्वयमेव किसी भी मामले में नवीन विचारण के लिए या किसी विनिश्चय के उलटे जाने के लिए आधार नहीं होगा, यदि उस न्यायालय को, जिसके समक्ष ऐसा आक्षेप उठाया गया है, यह प्रतीत हो कि आक्षिप्त और गृहीत उस साक्ष्य के बिना भी विनिश्चय के न्यायोचित ठहराने के लिये यथेष्ट साक्ष्य था अथवा यह कि यदि अगृहीत साक्ष्य लिया भी गया होता, तो उससे विनिश्चय में फेरफार न होना चाहिये था।
भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 167 के अनुसार
साक्ष्य के अनुचित ग्रहण या अग्रहण के लिए नवीन विचारण नहीं होगा-
साक्ष्य का अनुचित ग्रहण या अग्रहण स्वयमेव किसी भी मामले में नवीन विचारण के लिए या किसी विनिश्चय के उलटे जाने के लिए आधार नहीं होगा, यदि उस न्यायालय को, जिसके समक्ष ऐसा आक्षेप उठाया गया है, यह प्रतीत हो कि आक्षिप्त और गृहीत उस साक्ष्य के बिना भी विनिश्चय के न्यायोचित ठहराने के लिये यथेष्ट साक्ष्य था अथवा यह कि यदि अगृहीत साक्ष्य लिया भी गया होता, तो उससे विनिश्चय में फेरफार न होना चाहिये था।
No new trial for improper admission or rejection of evidence-
The improper admission or rejection of evidence shall not be ground of itself for a new trial or reversal of any decision in any case, if it shall appear to the Court before which such objection is raised that, independently of the evidence objected to and admitted, there was sufficient evidence to justify the decision, or that, if the rejected evidence had been received, it ought not to have varied the decision.
हमारा प्रयास भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 167 की पूर्ण जानकारी, आप तक प्रदान करने का है, उम्मीद है कि उपरोक्त लेख से आपको संतुष्ट जानकारी प्राप्त हुई होगी, फिर भी अगर आपके मन में कोई सवाल हो, तो आप कॉमेंट बॉक्स में कॉमेंट करके पूछ सकते है।