नमस्कार दोस्तों, आज हम आपके लिए भारतीय दंड संहिता की धारा 300 के बारे में पूर्ण जानकारी देंगे। क्या कहती है भारतीय दंड संहिता की धारा 300, साथ ही यह धारा क्या परिभाषित करती है, यह सभी जानकारी इस लेख के माध्यम से आप तक पहुंचाने का प्रयास करेंगे।
धारा 300 का विवरण
भारतीय दण्ड संहिता (IPC) में धारा 300 के विषय में पूर्ण जानकारी देंगे। जो कोई निम्न दशाओं को छोड़कर आपराधिक मानव-वध हत्या है, यदि वह कार्य, जिसके द्वारा मृत्यु कारित की गयी हो, मृत्यु कारित करने के आशय से किया गया हो अथवा ऐसी शारीरिक क्षति कारित करने के आशय से किया गया हो जिससे अपराधी जानता हो कि उस व्यक्ति की मृत्यु कारित करना सम्भाव्य है, तो वह सभी हत्या की श्रेणी मे आयेगा, तो वह धारा 300 के परिभाषित किया जाता है।
आईपीसी की धारा 300 के अनुसार-
हत्या–
एतस्मिन् पश्चात् अपवादित दशाओं को छोड़कर आपराधिक मानव-वध हत्या है, यदि वह कार्य, जिसके द्वारा मृत्यु कारित की गयी हो, मृत्यु कारित करने के आशय से किया गया हो, अथवा
दूसरा- यदि वह ऐसी शारीरिक क्षति कारित करने के आशय से किया गया हो जिससे अपराधी जानता हो कि उस व्यक्ति की मृत्यु कारित करना सम्भाव्य है जिसको वह अपहानि कारित की गयी है, अथवा
तीसरा- यदि वह किसी व्यक्ति की शारीरिक क्षति कारित करने के आशय से किया गया हो और वह शारीरिक क्षति, जिसके कारित करने का आशय हो, प्रकृति के मामूली अनुक्रम में मृत्यु कारित करने के लिए में पर्याप्त हो, अथवा
चौथा– यदि कार्य करने वाला व्यक्ति यह जानता हो कि वह कार्य इतना आसन्नसंकट है कि पूरी अधिसंभाव्यता है कि वह मृत्यु कारित कर देगा या ऐसी शारीरिक क्षति कारित कर ही देगा जिससे मृत्यु कारित होना सम्भाव्य है और वह मृत्यु कारित करने या पूर्वोक्त रूप की क्षति कारित करने की जोखिम उठाने के लिये किसी प्रतिहेतु के बिना ऐसा कार्य करे।
Murder-
Except in the cases hereinafter excepted; culpable homicide is murder, if the act by which the death is caused is done with the intention of causing death, or
Secondly- If it is done with the intention of causing such bodily injury as the offender knows to be likely to cause the death of the person to whom the harm is caused, or
Thirdly- If it is done with the intention of causing bodily injury to any person and the bodily injury intended to be inflicted is sufficient in the ordinary course of nature to cause death, or
Fourthly- If the person committing the act knows that it is so imminently dangerous that it must, in all probability, cause death or such bodily injury as is likely to cause death, and commits such act without any excuse for incurring the risk of causing death, or such injury as aforesaid.
इसके बाद के मामलों को छोड़कर, दोषी सजातीय हत्या है, यदि वह अधिनियम जिसके व्दारा मृत्यु होती है, मृत्यु का कारण बनने के आशय से किया गया हो, अथवायदि ऐसा शारीरिक क्षति पहुँचाने के आशय से किया जाता है क्योंकि अपराधी जानता है कि इससे उस व्यक्ति की मृत्यु होने की संभावना है जिससे जान से, नुकसान हुआ हो ।यदि किसी व्यक्ति को शारीरिक चोट पहुँचाने के इरादे से ऐसा किया जाता है और शारीरिक चोट पहुँचाने के इरादे से मृत्यु का कारण प्रकृति के परिणाम से है।यदि ऐसे कार्य करने वाला व्यक्ति यह जानता हो कि वह कार्य इतना आसन्न संकट है कि पूरी अधिसंभाव्यता है कि वह मृत्यु कारित कर ही देगा या ऐसी शारीरिक क्षति कारित कर ही देगा जिससे मृत्यु कारित होना संभाव्य है और वह मृत्यु कारित करने या पूर्वोकत रूप की क्षति कारित करने की जोखिम उठाने के लिए किसी प्रतिहेतु के बिना ऐसा कार्य करे ।
उदाहरार्थ–
(क) ख को मार डालने के आशय से क उस पर गोली चलाता है परिणामस्वरूप ख मर जाता है । क हत्या करता है । (घ) क किसी प्रतिहेतु के बिना व्यक्तियों के एक समूह पर भरी हुई तोप चलाता है और उनमें से एक का वध कर देता है । क हत्या का दोषी है, यद्यपि किसी विशिष्ट व्यक्ति की मॄत्यु कारित करने की उसकी पूर्वचिन्तित परिकल्पना न रही हो । अपवाद 1 – आपराधिक मानव वध कब हत्या नहीं है – आपराधिक मानव वध हत्या नहीं है, यदि अपराधी उस समय जब कि वह गम्भीर और अचानक प्रकोपन से आत्म संयम की शक्ति से वंचित हो, उस व्यक्ति की, जिसने कि वह प्रकोपन दिया था, मृत्युकारित करे या किसी अन्य व्यक्ति की मृत्यु भूल या दुर्घटनावश कारित करे ।
अपवाद 2 – आपराधिक मानव वध हत्या नहीं है, यदि वह व्यक्ति जिसकी मृत्यु कारित की जाए, अठारह वर्ष से अधिक आयु का होते हुए, अपनी सम्मति से मृत्यु होना सहन करे, या मृत्यु की जोखिम उठाए ।
य को, जो अठारह वर्ष से कम आयु का है, उकसा कर क उससे स्वेच्छया आत्महत्या करवाता है । यहां, कम उम्र होने के कारण य अपनी मृत्यु के लिए सम्मति देने में असमर्थ था, इसलिए, क ने हत्या का दुष्प्रेरण किया है ।
आपराधिक मानव-वध कब हत्या नहीं है- आपराधिक मानव-वध हत्या नहीं है, यदि अपराधी उस समय जबकि वह गम्भीर और अचानक प्रकोपन से आत्मसंयम की शक्ति से वंचित हो, उस व्यक्ति की, जिसने कि वह प्रकोपन दिया था, मृत्यु कारित करे या किसी अन्य व्यक्ति की मृत्यु भूल या दुर्घटनावश कारित करे।
ऊपर का अपवाद निम्नलिखित परन्तुकों के अध्यधीन है-
पहला- यह कि वह प्रकोपन किसी व्यक्ति का वध करने या अपहानि करने के लिए अपराधी द्वारा प्रतिहेतु के रूप में ईप्सित न हो या स्वेच्छया प्रकोपित न हो।
दूसरा- यह कि वह प्रकोपन किसी ऐसी बात द्वारा न दिया गया हो जो विधि के पालन में, या लोक सेवक द्वारा ऐसे लोक-सेवक की शक्तियों के विधिपूर्ण प्रयोग में, की गयी हो।
तीसरा- यह कि वह प्रकोपन किसी ऐसी बात द्वारा न दिया गया हो, जो प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार के विधिपूर्ण प्रयोग में की गयी हो।
स्पष्टीकरण-प्रकोपन इतना गम्भीर और अचानक था या नहीं कि अपराध को हत्या की कोटि में जाने से बचा दे, यह तथ्य का प्रश्न है।
उदाहरार्थ–
क को चाबुक मारने का प्रयत्न य करता है, किन्तु इस प्रकार नहीं कि क को घोर उपहति कारित हो। क एक पिस्तौल निकाल लेता है। य हमले को चालू रखता है। क सद्भावपूर्वक यह विश्वास करते हुए कि वह अपने को चाबुक लगाये जाने से किसी अन्य साधन द्वारा नहीं बचा सकता है, गोली से य का वध कर देता है। क ने हत्या नहीं की है, किन्तु केवल आपराधिक मानव-वध किया है।
हमारा प्रयास आईपीसी की धारा 300 की पूर्ण जानकारी, आप तक प्रदान करने का है, उम्मीद है कि उपरोक्त लेख से आपको संतुष्ट जानकारी प्राप्त हुई होगी, फिर भी अगर आपके मन में कोई सवाल हो, तो आप कॉमेंट बॉक्स में कॉमेंट करके पूछ सकते है।