नमस्कार दोस्तों, आज हम आपके लिए दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 297 के बारे में पूर्ण जानकारी देंगे। क्या कहती है दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 297 कब लागू होती है, यह भी इस लेख के माध्यम से आप तक पहुंचाने का प्रयास करेंगे।
धारा 297 का विवरण
दण्ड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 297 के अन्तर्गत इस संहिता के अधीन किसी न्यायालय के समक्ष उपयोग में लाए जाने वाले शपथपत्रों पर शपथ ग्रहण या प्रतिज्ञान किसी न्यायाधीश या कोई न्यायिक या कार्यपालक मजिस्ट्रेट अथवा उच्च न्यायालय या सेशन न्यायालय द्वारा नियुक्त कोई शपथ-कमिश्नर अथवा नोटरी अधिनियम, 1952 (1952 का 53) के अधीन नियुक्त कोई नोटरी प्राधिकारी जिनके समक्ष शपथ-पत्रों पर शपथ ग्रहण किया जा सकेगा, साथ ही शपथपत्र ऐसे तथ्यों तक, जिन्हें अभिसाक्षी स्वयं अपनी जानकारी से साबित करने के लिए समर्थ है और ऐसे तथ्यों तक जिनके सत्य होने का विश्वास करने के लिए उसके पास उचित आधार है, ऐसे विश्वास के आधारों का स्पष्ट कथन करेगा।
सीआरपीसी की धारा 297 के अनुसार
प्राधिकारी जिनके समक्ष शपथ-पत्रों पर शपथ ग्रहण किया जा सकेगा-
(1) इस संहिता के अधीन किसी न्यायालय के समक्ष उपयोग में लाए जाने वाले शपथपत्रों पर शपथ ग्रहण या प्रतिज्ञान निम्नलिखित के समक्ष किया जा सकता है-
(क) कोई न्यायाधीश या कोई न्यायिक या कार्यपालक मजिस्ट्रेट अथवा ;
(ख) उच्च न्यायालय या सेशन न्यायालय द्वारा नियुक्त कोई शपथ-कमिश्नर अथवा ;
(ग) नोटरी अधिनियम, 1952 (1952 का 53) के अधीन नियुक्त कोई नोटरी।
(2) शपथपत्र ऐसे तथ्यों तक, जिन्हें अभिसाक्षी स्वयं अपनी जानकारी से साबित करने के लिए समर्थ है और ऐसे तथ्यों तक जिनके सत्य होने का विश्वास करने के लिए उसके पास उचित आधार है, सीमित होंगे और उनमें उनका कथन अलग-अलग होगा तथा विश्वास के आधारों की दशा में अभिसाक्षी ऐसे विश्वास के आधारों का स्पष्ट कथन करेगा।
(3) न्यायालय शपथपत्र में किसी कलंकात्मक और विसंगत बात के काटे जाने या संशोधित किए जाने का आदेश दे सकेगा।
Authorities before whom affidavits may be sworn-
(1) Affidavits to be used before any Court under this Code may be sworn or affirmed before-
(a) any Judge or any Judicial or Executive Magistrate, or
(b) any Commissioner of Oaths appointed by a High Court or Court of Session, or
(c) any notary appointed under the Notaries Act, 1952 (53 of 1952).
(2) Affidavits shall be confined to, and shall state separately, such facts as the deponent is able to prove from his own knowledge and such facts as he has reasonable ground to believe to be true, and in the latter case, the deponent shall clearly state the grounds of such belief.
(3) The Court may order any scandalous and irrelevant matter in the affidavit to be struck out or amended.
हमारा प्रयास सीआरपीसी की धारा 297 की पूर्ण जानकारी, आप तक प्रदान करने का है, उम्मीद है कि उपरोक्त लेख से आपको संतुष्ट जानकारी प्राप्त हुई होगी, फिर भी अगर आपके मन में कोई सवाल हो, तो आप कॉमेंट बॉक्स में कॉमेंट करके पूछ सकते है।