नमस्कार दोस्तों, आज हम आपके लिए दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 395 के बारे में पूर्ण जानकारी देंगे। क्या कहती है दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 395 कब लागू होती है, यह भी इस लेख के माध्यम से आप तक पहुंचाने का प्रयास करेंगे।
धारा 395 का विवरण
दण्ड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 395 के अन्तर्गत जहां किसी न्यायालय का समाधान हो जाता है कि उसके समक्ष लंबित मामले में किसी अधिनियम, अध्यादेश या विनियम की अथवा किसी अधिनियम, अध्यादेश या विनियम में अन्तर्विष्ट किसी उपबन्ध की विधिमान्यता के बारे में ऐसा प्रश्न अन्तर्ग्रस्त है, जिसका अवधारण उस मामले को निपटाने के लिए आवश्यक है, और उसकी यह राय है कि ऐसा अधिनियम, अध्यादेश, विनियम या उपबन्ध अविधिमान्य या अप्रवर्तनशील है किन्तु उस उच्च न्यायालय द्वारा, जिसके वह न्यायालय अधीनस्थ है, या उच्चतम न्यायालय द्वारा ऐसा घोषित नहीं किया गया है वहां न्यायालय अपनी राय और उसके कारणों को उल्लिखित करते हुए मामले का कथन तैयार करेगा और उसे उच्च न्यायालय के विनिश्चय के लिए निर्देशित करेगा।
सीआरपीसी की धारा 395 के अनुसार
उच्च न्यायालय को निर्देश-
(1) जहां किसी न्यायालय का समाधान हो जाता है कि उसके समक्ष लंबित मामले में किसी अधिनियम, अध्यादेश या विनियम की अथवा किसी अधिनियम, अध्यादेश या विनियम में अन्तर्विष्ट किसी उपबन्ध की विधिमान्यता के बारे में ऐसा प्रश्न अन्तर्ग्रस्त है, जिसका अवधारण उस मामले को निपटाने के लिए आवश्यक है, और उसकी यह राय है कि ऐसा अधिनियम, अध्यादेश, विनियम या उपबन्ध अविधिमान्य या अप्रवर्तनशील है किन्तु उस उच्च न्यायालय द्वारा, जिसके वह न्यायालय अधीनस्थ है, या उच्चतम न्यायालय द्वारा ऐसा घोषित नहीं किया गया है वहां न्यायालय अपनी राय और उसके कारणों को उल्लिखित करते हुए मामले का कथन तैयार करेगा और उसे उच्च न्यायालय के विनिश्चय के लिए निर्देशित करेगा।
स्पष्टीकरण- इस धारा में “विनियम” से साधारण खण्ड अधिनियम, 1897 (1897 का 10) में या किसी राज्य के साधारण खण्ड अधिनियम में यथापरिभाषित कोई विनियम अभिप्रेत है।
(2) यदि सेशन न्यायालय या महानगर मजिस्ट्रेट अपने समक्ष लंबित किसी मामले में, जिसे उपधारा (1) के उपबंध लागू नहीं होते हैं, ठीक समझता है तो वह, ऐसे मामले की सुनवाई में उठने वाले किसी विधि-प्रश्न को उच्च न्यायालय के विनिश्चय के लिए निर्देशित कर सकता है।
(3) कोई न्यायालय, जो उच्च न्यायालय को उपधारा (1) या उपधारा (2) के अधीन निर्देश करता है, उस पर उच्च न्यायालय का विनिश्चय होने तक, अभियुक्त को जेल को सुपुर्द कर सकता है या अपेक्षा किए जाने पर हाजिर होने के लिए जमानत पर छोड़ सकता है।Reference to High Court-
(1) Where any Court is satisfied that a case pending before it involves a question as to the validity of any Act, Ordinance or Regulation or of any provision contained in an Act, Ordinance or Regulation, the determination of which is necessary for the disposal of the case, and is of opinion that such Act, Ordinance, Regulation or provision is invalid or inoperative, but has not been so declared by the High Court to which that Court is subordinate or by the Supreme Court, the Court shall state a case setting out its opinion and the reasons therefor, and refer the same for the decision of the High Court.
Explanation- In this section, “Regulation” means any Regulation as defined in the General Clauses Act, 1897 (10 of 1897), or in the General Clauses Act of a State.
(2) A Court of Session or a Metropolitan Magistrate may, if it or he thinks fit in any case pending before it or him to which the provisions of sub-section (1) do not apply, refer for the decision of the High Court any question of law arising in the hearing of such case.
(3) Any Court making a reference to the High Court under sub-section (1) or sub section (2) may, pending the decision of the High Court thereon, either commit the accused to jail or release him on bail to appear when called upon.
हमारा प्रयास सीआरपीसी की धारा 395 की पूर्ण जानकारी, आप तक प्रदान करने का है, उम्मीद है कि उपरोक्त लेख से आपको संतुष्ट जानकारी प्राप्त हुई होगी, फिर भी अगर आपके मन में कोई सवाल हो, तो आप कॉमेंट बॉक्स में कॉमेंट करके पूछ सकते है।