नमस्कार दोस्तों, आज हम आपके लिए भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 112 के बारे में पूर्ण जानकारी देंगे। क्या कहती है भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 112, साथ ही क्या बतलाती है, यह भी इस लेख के माध्यम से आप तक पहुंचाने का प्रयास करेंगे।
धारा 112 का विवरण
भारतीय साक्ष्य अधिनियम (Indian Evidence Act) की धारा 112 के अन्तर्गत वे तथ्य जहां किसी व्यक्ति का जन्म उसकी माता और किसी पुरुष के बीच विधिमान्य विवाह को कायम रखते हुए या उसका विघटन होने के उपरान्त माता के अविवाहित रहते हुए दो सौ अस्सी दिन के भीतर हुआ था, इस बात का निश्चायक सबूत होगा कि वह उस पुरुष का धर्मज पुत्र है, जब तक कि यह दर्शित न किया जा सके कि विवाह के पक्षकारों की परस्पर पहुंच ऐसे किसी समय नहीं थी कि जब उसका गर्भाधान किया जा सकता था।
भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 112 के अनुसार
विवाहित स्थिति के दौरान में जन्म होना धर्मजत्व का निश्चायक सबूत है-
यह तथ्य कि किसी व्यक्ति का जन्म उसकी माता और किसी पुरुष के बीच विधिमान्य विवाह को कायम रखते हुए या उसका विघटन होने के उपरान्त माता के अविवाहित रहते हुए दो सौ अस्सी दिन के भीतर हुआ था, इस बात का निश्चायक सबूत होगा कि वह उस पुरुष का धर्मज पुत्र है, जब तक कि यह दर्शित न किया जा सके कि विवाह के पक्षकारों की परस्पर पहुंच ऐसे किसी समय नहीं थी कि जब उसका गर्भाधान किया जा सकता था।
Birth during marriage, conclusive proof of legitimacy-
The fact that a person was born during the continuance of a valid marriage between his mother and any man, or within two hundred and eighty days after its dissolution, the mother remaining unmarried, shall be conclusive proof that he is the legitmate son of that man, unless it can be shown that the parties to the marriage had no access to est other at any time when he could have been begotten.
जहाँ विवाह-विच्छेद की याचिका में पति संतान के अपनी होने से इन्कार करता है और पत्नी पर जारता का आरोप लगाता है, वहाँ न्यायालय डी० एन० ए० परीक्षण का आदेश दे सकती है।
हमारा प्रयास भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 112 की पूर्ण जानकारी, आप तक प्रदान करने का है, उम्मीद है कि उपरोक्त लेख से आपको संतुष्ट जानकारी प्राप्त हुई होगी, फिर भी अगर आपके मन में कोई सवाल हो, तो आप कॉमेंट बॉक्स में कॉमेंट करके पूछ सकते है।