बाबरी और रामलला:

राम मन्दिर का इतिहास

सबसे पहले जानते हैं भगवान राम के बारे में-

भगवान श्रीराम का जन्म त्रेता युग मे हुआ था। भगवान श्रीराम मनुष्य के रूप में पूजे जाने वाले सबसे पुराने देवता के रूप मे जाना जाता है। भगवान श्रीराम को विष्णु जी जो दुनिया के पालन करता हैं उनका अवतार माना जाता है। भगवान श्रीराम विषम परिस्थितियों में भी स्थिति पर नियंत्रण रख सफलता प्राप्त की। भगवान श्रीराम ने हमेशा धर्म और मर्यादा का पालन किया। स्वयं के सुखों से समझौता कर भगवान श्रीराम न्याय और सत्य का साथ दिया। सहनशीलता व धैर्य भगवान श्रीराम का प्रमुख गुण है। अयोध्या का राजा होते हुए भी श्रीराम ने संन्यासी की तरह ही अपना जीवन व्यापन किया। यह उनकी सहनशीलता को दर्शाता है। भगवान राम काफी दयालु स्वभाव के रहें। भगवान श्रीराम दया कर सभी को अपनी छत्रछाया में लिया। भगवान श्रीराम ने सभी को आगे बढ़ कर नेतृत्व करने का अधिकार दिया। सुग्रीव को राज्य दिलाना उनके दयालु स्वभाव का ही प्रतिक है। हर जाति, हर वर्ग के व्यक्तियों के साथ भगवान राम ने मित्रता की। हर रिश्तें को श्री राम ने दिल से निभाया। केवट हो या सुग्रीव, निषादराज या विभीषण सभी मित्रों के लिए उन्होंने स्वयं कई बार संकट झेले। भगवान राम एक कुशल प्रबंधक थे। वो सभी को साथ लेकर चलने वाले थे। भगवान राम के बेहतर नेतृत्व क्षमता की वजह से ही सीता माता को वापस लाने के लिये लंका जाने के लिए समुद्र पर पत्थरों का सेतु बन पाया। भगवान श्रीराम ने अपने सभी भाइयों के प्रति सगे भाई से बढ़कर त्याग और समर्पण का भाव रखा और स्नेह दिया। इसी कारण से भगवान श्रीराम के वनवास जाते समय लक्ष्मण जी भी उनके साथ वन गए। यही नहीं भरत ने श्रीराम की अनुपस्थिति में राजपाट मिलने के बावजूद भगवान राम के मूल्यों को ध्यान में रखकर सिंहासन पर रामजी की चरण पादुका रख जनता की सेवा की। भगवान श्रीराम के प्रिय भाई भरत ने भी भाई-प्रेम का अच्छा प्रमाण दिया। भगवान श्रीराम की अर्धांगिनी मां सीता का पंचवटी के पास लंकाधिपति रावण ने अपहरण करके 2 वर्ष तक अपनी कैद में रखा था। भगवान श्रीराम ने रावण को उसके पापो के कारण इस संसार से मुक्त करने एवंम् अपने प्रत्येक कर्तव्यो का निर्वाहन करने के पूर्व मुक्त हो जाते है। इससे संसार को भगवान श्रीराम के जीवन व्यापन, सहनशीलता, मर्यादा पुरोषोत्तम स्वाभाव का ज्ञानरूपी प्रकाश देती है।

भगवान श्रीराम का मन्दिर भव्य निर्माण-

भगवान श्रीराम का भव्य मन्दिर उज्जैन के महाराजा विक्रमादित्य ने राम जन्म भूमि अयोध्या मे निर्णाण कराया था, कहा जाता है उस समय भारतवर्ष मे 4 ही सर्वश्रेष्ठ मन्दिर थे, पहला मन्दिर भगवान श्रीराम का अयोध्या मे दूसरा कनक भवन, तीसरा कश्मीर का सूर्य मन्दिर और चौथा सोमनाथ मन्दिर, ये सभी मन्दिर भारतवर्ष के सबसे सर्वश्रेष्ठ मन्दिर माने जाते थे ।
Ram Mandir

बाबर कैसे अयोध्या आया-

लगभग् 1500 ई0 मे फतेहपुर सीकरी के पास चित्तौड के राजा संग्राम सिंह से पराजित होकर मुगल सम्राट बाबर आयोध्या भाग आया, उन दिनो श्रीराम जन्मभूमि मन्दिर पर बाबा श्यामानन्द नाम के सिद्ध महात्मा निवास करते थे, इनकी सिद्धियो की महानता उस समय समस्त उत्तर भारत मे फैली हुयी थी। जिससे प्रभावित होकर कजल अब्बास नाम का एक फकीर आया और बाबा श्यामानन्द का साधक शिष्य बनकर रामजन्म भूमि पर रहने और योग की क्रिया सीखने लगा। कजल अब्बास जाति का मुसलमान था इसीलिये बाबा श्यामानन्द जी उसे मुसलमानी ढंग से योग शिक्षा देने लगे, जिसके परिणाम स्वरूप वह भी सिद्ध फकीर बन गया। कुछ दिन पश्चात् जलालाशाह नाम का एक फकीर वहां आया और वह भी श्यामानन्द का साधक शिष्य बन गया। वह भी रामजन्म भूमि पर रहने लगा और योग क्रिया सीखने लगा। जलालाशाह कट्टर मुसलमान था, उसे जब रामजन्म भूमि की महत्वा ज्ञात हुयी तो उसने जाना आयोध्या एक सिद्ध पीठ है तो उसके दिमाग मे इस स्थान को खुर्द मक्का और सहस्त्रो को निवास सिद्द करने की सनक सवार हुयी। उसने धीरे-धीरे क्रिया कलाप को अपने मुसलमानी ढंग मे परिवर्तित करने लगा। फतेहपुर सीकरी के संग्राम सिंह से पराजित होकर प्राण बचाकर बाबर शान्ति प्राप्ति करने की इच्छा से आयोध्या आया। कजल अब्बास एवंम् जलालाशाह फकीरो से बाबर ने आशीर्वाद प्राप्त किया और पुनः चित्तौड के राजा संग्राम सिंह पर आक्रमण किया और विजय प्राप्त किया। बाबर फिर लौटकर अयोध्या आया। कजल अब्बास एवंम् जलालाशाह फकीर, बाबर से मिलकर मन्दिर को गिराकर मस्जिद बनवाने का वचन लिया। बाबर ने धीरे-धीरे मन्दिरो को गिराकर मस्जिद का निमार्ण करने लगे। बाबा श्यामानन्द जी अपने साधक शिष्यो की करतूतो पर पछतावा करते हुये प्रतिमा को सरयू मे प्रवाह करते हुये अपने दिव्य शिष्यो को लेकर उत्तराखण्ड चले गये और पुजारियो ने मन्दिर के व्दार पर खडे हुये जिससे कोई विधर्मी मन्दिर मे प्रवेश न कर सके। फकीरो के आज्ञा के अनुसार बाबर की सेना ने उन पुजारियो के सिर कटवा दिये और लाशे बाहर फेकवा दिया गया।

हिन्दुओ की प्रतिक्रिया-

श्रीराम मन्दिर विध्वंश करने की खबर बिजली की तरह भारतवर्ष मे फैल गयी। फैजाबाद जिले के एक राजा महताब सिंह तीर्थ यात्रा जा ही रहे थे किन्तु जब यह समाचार मिला तो राजा महताब सिंह ने रातो-रात अपने सलाहकार भेजकर आस-पास के समस्त क्षत्रियो को यह सूचना दी और अगले सुबह सूर्य की पहली किरण पडते ही रामजन्म भूमि को चारो ओर से घेर लिया । इसके पश्चात् मुगलो एवंम् हिन्दू क्षत्रियो के मध्य भीषण युद्ध हुआ। मुगलो के पास काफी बडी सेना और तोपे भी थी, जिससे उन्होने मन्दिरो की दीवारो और क्षत्रियो को काफी नुकसान पहुचाया। जिससे हिन्दू सेना तहस नहस हो गयी। राम मन्दिर विध्वस होने के पश्चात् मुगल सम्राट बाबर ने समस्त भारत मे एक फरमान निकालकर हिन्दुओं के अयोध्या न जाने का जबरदस्त प्रतिबन्ध लगा दिया। जब मस्जिद बनने लगी तो जितनी दीवार तैयार होती थी, अपने आप ही गिर जाती थी, फिर मुगल शासको ने हैरान होकर बाबर को दिल्ली से बुलाया तो बाबर ने कहा अगर दीवारे नही बन रही तो काम छोडकर वापस चले जाओ, तो कजल अब्बास ने उत्तर दिया कि इस पाक सरजमीन पर मस्जिद बन गयी तो हिन्दुस्तान मे इस्लामी जडे जम जायेगी, काम बन्द नही किया जा सकता आप एक बार खुद आइये। बाबर अयोध्या आया और विशिष्ट महासन्तो को बुलाकर कहा कि आप लोग राय दे कि मस्जिद किस तरह बने । तब सन्तो ने बताया इसे मन्दिर न कहकर सीता पाक स्थान का नाम दे तो बन जायेगा और कोई भी परिवर्तन नही किया जा सकता है। उसके बाद मस्जिद का निर्माण मन्दिर के नाम पर किया गया और समस्त मूर्ति को अपने स्थान पर लगायी गयी, इसके बाद मुगल सम्राट बाबर ने फरमान जारी किया कि जुम्मे को नमाज वाले दिन को छोडकर समस्त हिन्दू मन्दिर आ सकते है, जुम्मे वाले दिन हिन्दुओ का आना वर्जित था।

मन्दिर, मस्जिद विवाद का प्रकरण-

06 दिसंबर 1992 को अयोध्या में बाबरी मस्जिद के विवादित ढांचे को गिराया गया था। हिंदू मान्यता के अनुसार इसी जगह भगवान राम का जन्म हुआ था और हिंदू संगठनों का आरोप रहा कि राम मंदिर को तुड़वाकर मस्जिद बनाई गई थी।
साल 1859- अंग्रेजी हुकूमत ने हिन्दू-मुस्लिम मध्यस्थता करते हुए विवादित स्थल का बंटवारा कर दिया और तारों की एक बाड़ खड़ी करना दी ताकि अलग-अलग जगहों पर हिंदू-मस्लिम अपनी-अपनी प्रार्थना कर सकें और कोई विवाद न हो।
साल 1885- विवाद ने इतना गंभीर रूप ले लिया कि पहली बार मन्दिर, मस्जिद का मामला अदालत पहुंचा हिंदू साधु महंत रघुबर दास ने फैजाबाद कोर्ट में बाबरी मस्जिद परिसर में राम मंदिर बनवाने के लिए इजाजत मांगी, हालांकि अदालत ने ये अपील ठुकरा दी। इसके बाद से मामला गहराता गया और सिलसिलेवार तारीखों का जिक्र मिलता है।
साल 1949- हिंदुओं ने रामजन्म भूमि पर भगवान श्रीराम की मूर्ति स्थापित कर दी, तब से हिंदू ही पूजा करने लगे और मुस्लिमों ने मस्जिद में नमाज पढ़नी बंद कर दी।
साल 1959- निर्मोही अखाड़ा ने विवादित स्थल के हस्तांतरण के लिए मुकदमा किया, कि रामजन्मभूमि हिन्दुओ की है ।
साल 1961- उत्तर प्रदेश सुन्नी वक्फ बोर्ड ने बाबरी मस्जिद पर मालिकाना हक के लिए मुकदमा कर दिया, कि यह भूमि हमारे पूर्वजो की है।
साल 1984- विश्व हिंदू परिषद का गठन हुआ और रामजन्म भूमि पर राम मन्दिर का ताला खोलने और इस जगह पर मंदिर बनवाने के लिए अभियान शुरू किया।
साल 1986- एक अहम फैसले के तहत स्थानीय कोर्ट ने विवादित स्थल पर हिंदुओं को पूजा की इजाजत दे दी और ताले दोबारा खोले गए, इससे नाराज मुस्लिमों ने फैसले के विरोध में बाबरी मस्जिद कमेटी बनाई गयी।
साल 1989- भारतीय जनता पार्टी ने इस मामले में विश्व हिंदू परिषद को औपचारिक समर्थन दिया।
साल 1990- 25 सितंबर 1990 मे बीजेपी अध्यक्ष लाल कृष्ण आडवाणी ने गुजरात के सोमनाथ से उत्तर प्रदेश के अयोध्या तक रथ यात्रा निकाली ताकि हिंदुओं को इस महत्वपूर्ण मु्द्दे से अवगत कराया जा सके, हजारों कार सेवक अयोध्या में इकट्ठा हुआ, इस यात्रा के बाद साम्प्रदायिक दंगे हुए ।
साल 1992- 6 दिसंबर 1992 ये विवाद में ऐतिहासिक दिन के तौर पर याद रखा जाता है, इस रोज हजारों की संख्या में कार सेवकों ने अयोध्या पहुंचकर बाबरी मस्जिद ढहा दिया और अस्थायी राम मंदिर बना दिया गया, चारों ओर सांप्रदायिक दंगे होने लगे, जिसमें लगभग 2500 लोगों के मारे जाने का रिकॉर्ड है।
साल 1997- सितंबर 1997 बाबरी मस्जिद ढहाए जाने की सुनवाई कर रही विशेष अदालत ने इस बारे में 49 लोगों को दोषी करार दिया, जिसमें बीजेपी के कुछ प्रमुख नेताओं का नाम भी शामिल रहा।
साल 2002- अप्रैल 2002 हाईकोर्ट के तीन जजों की पीठ ने अयोध्या के विवादित स्थल पर मालिकाना हक को लेकर सुनवाई आरम्भ हुयी।
साल 2003- मार्च-अगस्त 2003- हाई कोर्ट के निर्देश पर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने अयोध्या में खुदाई की। पुरातत्वविदों ने कहा कि मस्जिद के नीचे मंदिर के अवशेष के प्रमाण मिले हैं।
साल 2003- 30 सितंबर 2010- इलाहाबाद हाई कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए विवादित जमीन को तीन हिस्सों में बांटा, इसमें एक हिस्सा राम मंदिर, दूसरा सुन्नी वक्फ बोर्ड और तीसरा निर्मोही अखाड़े को दिया गया।
साल 2003- 9 मई 2011 सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी।
साल 2017- 21 मार्च 2017 सुप्रीम कोर्ट ने आपसी सहमति से विवाद सुलझाने की सलाह दी।
साल 2017- 19 अप्रैल 2017 सुप्रीम कोर्ट ने बाबरी मस्जिद गिराए जाने के मामले में बीजेपी और आरएसएस के कई नेताओं के खिलाफ आपराधिक केस चलाने का आदेश दिया।
साल 2018- 8 फरवरी 2018 सुप्रीम कोर्ट ने सिविल अपील पर सुनवाई शुरू कर दी।
साल 2018- 25 नवंबर 2018 अयोध्या में विश्व हिंदू परिषद की अगुवाई में धर्म सभा हुई. धर्म सभा में एक हिंदू संत रामभद्राचार्य ने कहा कि बहुत जल्द ही भव्य राम मंदिर का निर्माण करना होगा और बीजेपी पर आरोप लगाया कि पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव की वजह से तारीख का ऐलान नहीं किया जा रहा है. इसके साथ ही विश्व हिंदू परिषद का कहना था कि अब करो या मरो का वक्त है, देश का बहुसंख्यक समाज अब इस मामले का हल होते हुए देखना चाहता है।
साल 2018- 1 जनवरी 2019 पीएम नरेंद्र मोदी ने 2019 के अपने पहले इंटरव्यू में कहा कि अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण के लिए अध्यादेश पर फैसला कानूनी प्रक्रिया पूरी होने के बाद ही लिया जा सकता है। राम मंदिर पर अध्यादेश लाने के बारे पीएम ने कहा कि यह मामला सुप्रीम कोर्ट में है, और संभवत: अपने अंतिम चरण में है उन्होंने कहा कि कानूनी प्रक्रिया पूरी होने दीजिए इसके बाद जो भी सरकार की जिम्मेदारी होगी उसे पूरा किया जाएगा।

निर्णय-

रामजन्मभूमि का निर्णय सुप्रीम कोर्ट मे दिनांक 09 नवम्बर 2019 को जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस शरद अरविंद बोबड़े, जस्टिस धनंजय यशवंत चंद्रचूड़, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस अब्दुल नज़ीर के मध्य सुनाया गया था। जिसके फलस्वरूप रामजन्मभूमि पर आज राम मन्दिर का निर्माण कार्य चल रहा है। दिनांक 05-08-2020 को प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी मन्दिर का शिलान्यास करेगे। यह विवाद हमारे हिन्दुओ के संघर्ष का प्रतीक माना जायेगा।

जय श्रीराम

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