नमस्कार दोस्तों, आज हम आपके लिए दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 220 के बारे में पूर्ण जानकारी देंगे। क्या कहती है दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 220 कब लागू होती है, यह भी इस लेख के माध्यम से आप तक पहुंचाने का प्रयास करेंगे।
धारा 220 का विवरण
दण्ड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 220 के अन्तर्गत यदि परस्पर संबद्ध ऐसे कार्यों के, जिनसे एक ही संव्यवहार बनता है, एक क्रम में एक से अधिक अपराध एक ही व्यक्ति द्वारा किए गए हैं तो ऐसे प्रत्येक अपराध के लिए एक ही विचारण में उस पर आरोप लगाया जा सकता है और उसका विचारण किया जा सकता है। आपराधिक न्यासभंग या बेईमानी से सम्पत्ति के दुविर्नियोग के एक या अधिक अपराधों से आरोपित किसी व्यक्ति पर उस अपराध या अपराधों के किए जाने को सुकर बनाने या छिपाने के प्रयोजन से लेखाओं के मिथ्याकरण के एक या अधिक अपराधों का अभियोग है, तब उस पर ऐसे प्रत्येक अपराध के लिए एक ही विचारण में आरोप लगाया जा सकता है और विचारण किया जा सकता है।
सीआरपीसी की धारा 220 के अनुसार
एक से अधिक अपराधों के लिए विचारण-
(1) यदि परस्पर संबद्ध ऐसे कार्यों के, जिनसे एक ही संव्यवहार बनता है, एक क्रम में एक से अधिक अपराध एक ही व्यक्ति द्वारा किए गए हैं तो ऐसे प्रत्येक अपराध के लिए एक ही विचारण में उस पर आरोप लगाया जा सकता है और उसका विचारण किया जा सकता है।
(2) जब धारा 212 की उपधारा (2) में या धारा 219 की उपधारा (1) में उपबंधित रूप में, आपराधिक न्यासभंग या बेईमानी से सम्पत्ति के दुविर्नियोग के एक या अधिक अपराधों से आरोपित किसी व्यक्ति पर उस अपराध या अपराधों के किए जाने को सुकर बनाने या छिपाने के प्रयोजन से लेखाओं के मिथ्याकरण के एक या अधिक अपराधों का अभियोग है, तब उस पर ऐसे प्रत्येक अपराध के लिए एक ही विचारण में आरोप लगाया जा सकता है और विचारण किया जा सकता है।
(3) यदि अभिकथित कार्यों से तत्समय प्रवृत्त किसी विधि की, जिससे अपराध परिभाषित या दण्डनीय हों, दो या अधिक पृथक् परिभाषाओं में आने वाले अपराध बनते हैं तो जिस व्यक्ति पर उन्हें करने का अभियोग है उस पर ऐसे अपराधों में से प्रत्येक के लिए एक ही विचारण में आरोप लगाया जा सकता है और विचारण किया जा सकता है।
(4) यदि कई कार्य, जिनमें से एक से या एक से अधिक से स्वयं अपराध बनते हैं, मिलकर भिन्न अपराध बनते हैं तो ऐसे कार्यों से मिल कर बने अपराध के लिए और ऐसे कार्यों में से किसी एक या अधिक द्वारा बने किसी अपराध के लिए अभियुक्त व्यक्ति पर एक ही विचारण में आरोप लगाया जा सकता है और विचारण किया जा सकता है।
(5) इस धारा की कोई बात भारतीय दण्ड संहिता (1860 का 45) की धारा 71 पर प्रभाव न डालेगी।
उपधारा (1) के दृष्टांत
(क) क एक व्यक्ति ख को, जो विधिपूर्ण अभिरक्षा में है, छुड़ाता है और ऐसा करने में कांस्टेबल ग को.. जिसकी अभिरक्षा में ख है, घोर उपहति कारित करता है। क पर भारतीय दण्ड संहिता (1860 का 45) की धारा 225 और 333 के अधीन अपराधों के लिए आरोप लगाया जा सकेगा और वह दोषसिद्ध किया जा सकेगा।
(ख) ख दिन में गृहभेदन इस आशय से करता है कि जारकर्म करे और ऐसे प्रवेश किए गए गृह में रख की पत्नी से जारकर्म करता है। क पर भारतीय दण्ड संहिता (1860 का 45) की धारा 454 और 497 के अधीन अपराधों के लिए पृथक्तः आरोप लगाया जा सकेगा और वह दोषसिद्ध किया जा सकेगा।
Trial for more than one offence-
(1) If, in one series of acts so connected together as to form the same transaction, more offences than one are committed by the same person, he may be charged with, and tried at one trial for, every such offence.
(2) When a person charged with one or more offences of criminal breach of trust or dishonest misappropriation of property as provided in sub-section (2) of Section 212 or in sub-section (1) of Section 219, is accused of committing, for the purpose of facilitating or concealing the commission of that offence or those offences, one or more offences of falsification of accounts, he may be charged with, and tried at one trial for, every such offence.
(3) If the acts alleged constitute an offence falling within two or more separate definitions of any law in force for the time being by which offences are defined or punished, the person accused of them may be charged with, and tried at one trial for, each of such offences.
(4) If several acts, of which one or more than one would by itself or themselves constitute an offence, constitute when combined a different offence, the person accused of them may be charged with, and tried at one trial for the offence constituted by such acts when combined, and for any offence constituted by any one, or more, of such acts.
(5) Nothing contained in this section shall affect Section 71 of the Indian Penal Code (45 of 1860).
Illustrations to sub-sections (1)
(a) A rescues B, a person in lawful custody, and in so doing causes grievous hurt to C, a constable in whose custody B was. A may be charged with, and convicted of, offences under Sections 225 and 333 of the Indian Penal Code (45 of 1860).
(b) A commits house-breaking by day with intent to commit adultery, and commits, in the house so entered, adultery with B’s wife. A may be separately charged with, and convicted of. offences under Sections 454 and 497 of the Indian Penal Code (45 of 1860).
हमारा प्रयास सीआरपीसी की धारा 220 की पूर्ण जानकारी, आप तक प्रदान करने का है, उम्मीद है कि उपरोक्त लेख से आपको संतुष्ट जानकारी प्राप्त हुई होगी, फिर भी अगर आपके मन में कोई सवाल हो, तो आप कॉमेंट बॉक्स में कॉमेंट करके पूछ सकते है।