नमस्कार दोस्तों, आज हम आपके लिए दहेज प्रतिषेध अधिनियम की धारा 7 के बारे में पूर्ण जानकारी देंगे। क्या कहती है दहेज प्रतिषेध की धारा- 7, साथ ही इस धारा के अंतर्गत क्या परिभाषित किया गया है, यह सभी जानकारी इस लेख के माध्यम से आप तक पहुंचाने का प्रयास करेंगे।
दहेज प्रतिषेध अधिनियम की धारा- 7 का विवरण
दहेज प्रतिषेध अधिनियम (Dowry Prohibition Act) की धारा -7 के विषय में पूर्ण जानकारी देंगे। इस धारा के अन्तर्गत वह मामले जिनमे दहेज लेेने या देने के लिये किसी पक्ष को मानसिक प्रताडित करता या दबाव बनाता है तो न्यायाल उनके अपराधो को संज्ञान मे लेते हुये न्यायिक कार्यवाही करती है।
दहेज प्रतिषेध अधिनियम की धारा- 7 के अनुसार
अपराधों का संज्ञान-
(1) दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2) में किसी बात के होते हुए भी, –
(क) महानगर मजिस्ट्रेट या प्रथम वर्ग न्यायिक मजिस्ट्रेट के न्यायालय से अवर कोई न्यायालय इस अधिनियम के अधीन किसी अपराध का विचारण नहीं करेगा;
(ख) कोई न्यायालय, इस अधिनियम के अधीन किसी अपराध का संज्ञान, –
(i) अपनी जानकारी पर या ऐसे अपराध को गठित करने वाले तथ्यों की पुलिस रिपोर्ट पर, या
(ii) अपराध से व्यथित व्यक्ति या ऐसे व्यक्ति के माता-पिता या अन्य नातेदार द्वारा अथवा किसी मान्यताप्राप्त कल्याण संस्था या संगठन द्वारा किए गए परिवाद पर, ही करेगा, अन्यथा नहीं;
(ग) महानगर मजिस्ट्रेट या प्रथम वर्ग न्यायिक मजिस्ट्रेट के लिए यह विधिपूर्ण होगा कि वह इस अधिनियम के अधीन किसी अपराध के लिए सिद्धदोष ठहराए गए किसी व्यक्ति के विरुद्ध, इस अधिनियम द्वारा प्राधिकृत कोई दण्डादेश पारित करे ।
स्पष्टीकरण – इस उपधारा के प्रयोजनों के लिए, मान्यताप्राप्त कल्याण संस्था या संगठन” से कोई ऐसी समाज कल्याण संस्था या संगठन अभिप्रेत है जिसे इस निमित्त केन्द्रीय या राज्य सरकार द्वारा मान्यता दी गई है ।
(2) दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2) के अध्याय 36 की कोई बात इस अधिनियम के अधीन दण्डनीय किसी अपराध को लागू नहीं होगी ।]
(3) तत्समय प्रवृत्त किसी विधि में किसी बात के होते हुए भी, अपराध से व्यथित व्यक्ति द्वारा किया गया कोई कथन ऐसे व्यक्ति को इस अधिनियम के अधीन अभियोजन का भागी नहीं बनाएगा।
Cognizance of offences—
(1) Notwithstanding anything contained in the Code of Criminal
Procedure, 1973 (2 of 1974),—
(a) no Court inferior to that of a Metropolitan Magistrate or a Judicial Magistrate of the first class shall try any offence under this Act;
(b) no court shall take cognizance of an offence under this Act except upon—
(i) its own knowledge or a police report of the facts which constitute such offence, or
(ii) a complaint by the person aggrieved by the offence or a parent or other relative of such person, or by any recognised welfare institution or organisation;
(c) it shall be lawful for a Metropolitan Magistrate or a Judicial Magistrate of the first class to pass any sentence authorised by this Act on any person convicted of an offence under this Act.
Explanation— For the purposes of this sub-section, “recognised welfare institution or organisation” means a social welfare institution or organisation recognised in this behalf by the Central or State Government.
(2) Nothing in Chapter XXXVI of the Code of Criminal Procedure, 1973 (2 of 1974), shall apply to any offence punishable under this Act.
(3) Notwithstanding anything contained in any law for the time being in force a statement made by the person aggrieved by the offence shall not subject such person to a prosecution under this Act.
हमारा प्रयास दहेज प्रतिषेध अधिनियम (Dowry Prohibition Act) की धारा 7 की पूर्ण जानकारी, आप तक प्रदान करने का है, उम्मीद है कि उपरोक्त लेख से आपको संतुष्ट जानकारी प्राप्त हुई होगी, फिर भी अगर आपके मन में कोई सवाल हो, तो आप कॉमेंट बॉक्स में कॉमेंट करके पूछ सकते है।