भारतीय संविधान Indian Constitution in Hindi | संविधान क्या है? प्रत्येक देश का अपना एक समाजिक, न्यायिक, राजनैतिक ढांचा है, जिसके अन्तर्गत ही न्याय व्यवस्था, समाजिक व्यव्स्था एवंम् समाज मे रहने वाले प्रत्येक व्यक्ति के अधिकार को एक दिशा प्रदान करता है या कह सकते है रूप रेखा प्रदान करता है। जिसे ही हम संविधान कहते है।
HIGHLIGHTS
भारतीय संविधान Indian Constitution in Hindi का सीधा अर्थ हम समझ सकते है, जो हमारे समाज एवंम् समाज रहने वाले प्रत्येक नागरिकों के लिये उचित ढंग, न्याय, व्यवहार एवंम् समाजिक रूप-रेखा को चलाने के नियम एवंम् कानून का पालन कराता है, वह संविधान कहलाता है। संविधान ही प्रत्येक देश का मूल मंत्र होता है। जो प्रत्येक नागरिक को रहने, खाने, घूमने, बोलने जैसी आजादी प्रदान करता है।
संविधान की परिभाषा (Define Constitution in Hindi)
संविधान ही हमारे राजनैतिक, समाजिक एवंम् न्यायिक क्रिया-कलाप को सुव्यवस्थित बनाये रखने के लिये एक सही ढंग प्रदान करता है, अर्थात् संविधान ही बतलाता है कि समाज को कैसे चलाये, किसी आम नागरिक को किसी तकलीफ न हो और किसी व्यक्ति के अधिकारो को हनन न हो। समाज मे प्रत्येक सकारात्मक व्यावस्था एवंम् सुचारू रूप से क्रिया-कलाप को चलाने के लिये संविधान का गठन किया गया जिससे समाज मे रहने वाले प्रत्येक नागरिकों को किसी प्रकार की असुविधा न हो और न ही किसी के मौलिक अधिकारो का हनन हो। संविधान के आधार पर ही देश की शासन व्यवस्था को संचालित किया जाता है|
भारत का संविधान (The constitution of India)
भारत का संविधान, भारत का सर्वोच्च विधान है जो दिनांक द्वारा 26 नवम्बर 1949 को पारित हुआ तथा दिनांक 26 जनवरी 1950 से प्रभावी हुआ। यह दिन (26 नवम्बर) भारत के संविधान दिवस के रूप में घोषित किया गया है । जबकि 26 जनवरी का दिन भारत में गणतन्त्र दिवस के रूप में मनाया जाता है। भारत का संविधान के निर्माता डॉ भीमराव अम्बेडकर है। भारत का संविधान विश्व के सभी गणतान्त्रिक देश का सबसे लम्बा लिखित संविधान है।
भारत के संविधान में वर्तमान समय में भी केवल 395 अनुच्छेद, तथा 12 अनुसूचियाँ हैं और ये 25 भागों में विभाजित है। परन्तु इसके निर्माण के समय मूल संविधान में 395 अनुच्छेद जो 22 भागों में विभाजित थे इसमें केवल 8 अनुसूचियाँ थीं।
भारत के संविधान मे केन्द्रीय संसद की परिषद् में राष्ट्रपति तथा दो सदन है जिन्हें राज्यों की परिषद राज्यसभा तथा लोगों का सदन लोकसभा के नाम से जाना जाता है। संविधान में यह व्यवस्था की गई है कि राष्ट्रपति की सहायता करने तथा उसे परामर्श देने के लिए एक रूप होगा जिसका प्रमुख प्रधानमन्त्री होगा, राष्ट्रपति इस मन्त्रिपरिषद की सलाह के अनुसार अपने कार्यों का निष्पादन करेगा। इस प्रकार वास्तविक कार्यकारी शक्ति मन्त्रिपरिषद में निहित है। मन्त्रिपरिषद् सामूहिक रूप से लोगों के सदन (लोक सभा) के प्रति उत्तरदायी है। प्रत्येक राज्य में एक विधानसभा है। उत्तर प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र, कर्नाटक,आन्ध्रप्रदेश और तेलंगाना में एक ऊपरी सदन है जिसे विधानपरिषद् कहा जाता है। राज्यपाल राज्य का प्रमुख है। प्रत्येक राज्य का एक राज्यपाल होगा तथा राज्य की कार्यकारी शक्ति उसमें निहित होगी। मन्त्रिपरिषद, जिसका प्रमुख मुख्यमन्त्री है, राज्यपाल को उसके कार्यकारी कार्यों के निष्पादन में सलाह देती है। राज्य की मन्त्रिपरिषद से राज्य की विधान सभा के प्रति उत्तरदायी है।
भारतीय संविधान की मुख्य विशेषताएं (Characteristics of Indian Constitution)
भारतीय संविधान की अपनी एक अलग ही विशेषता है। अन्य देश अपने अलग अलग संविधान बनाये है, कुछ देशो मे तो कुछ लिखित संविधान तथा अलिखित संविधान बनाये है, जो समय समय पर बदलते रहते है, लेकिन भारतीय संविधान प्रारूप समिति तथा सर्वोच्च न्यायालय ने भारतीय संविधान को संघात्मक संविधान माना है, परन्तु विद्वानों में मतभेद है। अमेरीकी विद्वान इस को ‘छद्म-संघात्मक-संविधान’ कहते हैं, हालांकि पूर्वी संविधानवेत्ता कहते हैं कि अमेरिकी संविधान ही एकमात्र संघात्मक संविधान नहीं हो सकता। संविधान का संघात्मक होना उसमें निहित संघात्मक लक्षणों पर निर्भर करता है, किन्तु माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने इसे पूर्ण संघात्मक माना है।
भारतीय संविधान के प्रस्तावना के अनुसार भारत एक सम्प्रुभतासम्पन्न, समाजवादी, पंथनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक, गणराज्य है। जिसके कारण यह अन्य देशों से भिन्न है। संविधान की मुख्य विशेषताएं इस प्रकार है-
सम्प्रभुता
भारतीय संविधान मे सम्प्रभुता का भी अधिक महत्व है सम्प्रभुता शब्द का अर्थ है सर्वोच्च या स्वतन्त्र होना। भारत किसी भी विदेशी और आन्तरिक शक्ति के नियन्त्रण से पूर्णतः मुक्त सम्प्रभुतासम्पन्न राष्ट्र है। यह सीधे लोगों द्वारा चुने गए एक मुक्त सरकार द्वारा शासित है तथा यही सरकार कानून बनाकर लोगों पर शासन करती है।
सामाजिक और आर्थिक समानता
समाजिक और आर्थिक समानता शब्द संविधान के 1976 में हुए 42वें संशोधन अधिनियम द्वारा प्रस्तावना में जोड़ा गया। यह अपने सभी नागरिकों के लिए सामाजिक और आर्थिक समानता सुनिश्चित करता है। जाति, रंग, नस्ल, लिंग, धर्म या भाषा के आधार पर कोई भेदभाव किए बिना सभी को बराबर का दर्जा और अवसर देता है। सरकार केवल कुछ लोगों के हाथों में धन जमा होने से रोकेगी तथा सभी नागरिकों को एक अच्छा जीवन स्तर प्रदान करने का प्रयत्न करेगी।
समानता और पान्थिक सहिष्णुता
समानता और पान्थिक सहिष्णुता शब्द संविधान के 1976 में हुए 42वें संशोधन अधिनियम द्वारा प्रस्तावना में जोड़ा गया। यह सभी पन्थों की समानता और पान्थिक सहिष्णुता सुनिश्चित करता है। भारत का कोई आधिकारिक पन्थ नहीं है। यह ना तो किसी पन्थ को बढ़ावा देता है, ना ही किसी से भेदभाव करता है। यह सभी पन्थों का सम्मान करता है व एक समान व्यवहार करता है। हर व्यक्ति को अपने पसन्द के किसी भी पन्थ का उपासना, पालन और प्रचार का अधिकार है। सभी नागरिकों, चाहे उनकी पान्थिक मान्यता कुछ भी हो कानून की दृष्टि में बराबर होते हैं। सरकारी या सरकारी अनुदान प्राप्त स्कूलों में कोई पान्थिक अनुदेश लागू नहीं होता।
लोकतान्त्रिक
भारत एक स्वतन्त्र देश है, किसी भी स्थान से मत देने की स्वतन्त्रता, संसद में अनुसूचित सामाजिक समूहों और अनुसूचित जनजातियों को विशिष्ट सीटें आरक्षित की गई है। स्थानीय निकाय चुनाव में महिला उम्मीदवारों के लिए एक निश्चित अनुपात में सीटें आरक्षित की जाती है। सभी चुनावों में महिलाओं के लिए एक तिहाई सीटें आरक्षित करने का एक विधेयक लम्बित है। हालांकि इसकी क्रियान्वयन कैसे होगा, यह निश्चित नहीं हैं। भारत का निर्वाचन आयोग एक स्वतन्त्र संस्था है और यह स्वतन्त्र और निष्पक्ष निर्वाचन करने के लिए सदैव तत्पर है।
शक्ति विभाजन
यह भारतीय संविधान का सर्वाधिक महत्वपूर्ण लक्षण है, राज्य की शक्तियां केंद्रीय तथा राज्य सरकारों में विभाजित होती हैं। दोनों सत्ताएँ एक-दूसरे के अधीन नहीं होती है, वे संविधान से उत्पन्न तथा नियंत्रित होती हैं।
मौलिक कर्तव्य कौन कौन से हैं? (What are the fundamental duties?)
मूल कर्तव्य, मूल सविधान में नहीं थे, 42 वें संविधान संशोधन में मूल कर्तव्य जोड़े गये है। ये रूस से प्रेरित होकर जोड़े गये तथा संविधान के भाग 4(क) के अनुच्छेद 51- अ में रखे गये हैं। वर्तमान में ये 11 हैं। 11 वाँ मूल कर्तव्य 86 वें संविधान संशोधन में जोड़ा गया।
भारत के प्रत्येक नागरिक का यह कर्तव्य होगा कि वह-
(1) संविधान का पालन करे और उस के आदर्शों, संस्थाओं, राष्ट्रध्वज राष्ट्रगीत और राष्ट्रगान का आदर करे ;
(2) स्वतंत्रता के लिए हमारे राष्ट्रीय आंदोलन को प्रेरित करने वाले उच्च आदर्शों को हृदय में संजोए रखे और उन का पालन करे;
(3) भारत की प्रभुता, एकता और अखंडता की रक्षा करे और उसे अक्षुण्ण रखे;
(4) देश की रक्षा करे और आह्वान किए जाने पर राष्ट्र की सेवा करे;
(5) भारत के सभी लोगों में समरसता और समान भ्रातृत्व की भावना का निर्माण करे जो धर्म, भाषा और प्रदेश या वर्ग पर आधारित सभी भेदभाव से परे हो, ऐसी प्रथाओं का त्याग करे जो स्त्रियों के सम्मान के विरुद्ध है;
(6) हमारी सामासिक संस्कृति की गौरवशाली परंपरा का महत्त्व समझे और उस का परिरक्षण करे;
(7) प्राकृतिक पर्यावरण की, जिस के अंतर्गत वन, झील नदी और वन्य जीव हैं, रक्षा करे और उस का संवर्धन करे तथा प्राणि मात्र के प्रति दयाभाव रखे;
(8) वैज्ञानिक दृष्टिकोण, मानववाद और ज्ञानार्जन तथा सुधार की भावना का विकास करे;
(9) सार्वजनिक संपत्ति को सुरक्षित रखे और हिंसा से दूर रहे;
(10) व्यक्तिगत और सामूहिक गतिविधियों के सभी क्षेत्रों में उत्कर्ष की ओर बढ़ने का सतत प्रयास करे जिस से राष्ट्र निरंतर बढ़ते हुए प्रयत्न और उपलब्धि की नई ऊंचाइयों को छू ले;
(11) यदि माता-पिता या संरक्षक है, छह वर्ष से चौदह वर्ष तक की आयु वाले अपने, यथास्थिति, बालक या प्रतिपाल्य के लिए शिक्षा का अवसर प्रदान करे।
भारतीय संविधान के भाग
भारतीय संविधान 22 भागों में विभजित है तथा इसमे 395 अनुच्छेद एवं 12 अनुसूचियाँ हैं, जो निम्न प्रकार है-
भाग | विषय | अनुच्छेद |
भाग 1 | संघ और उसके क्षेत्र | (अनुच्छेद 1-4) |
भाग 2 | नागरिकता | (अनुच्छेद 5-11) |
भाग 3 | मूलभूत अधिकार | (अनुच्छेद 12 – 35) |
भाग 4 | राज्य के नीति निदेशक तत्त्व | (अनुच्छेद 36 – 51) |
भाग 4A | मूल कर्तव्य | (अनुच्छेद 51A) |
भाग 5 | संघ | (अनुच्छेद 52-151) |
भाग 6 | राज्य | (अनुच्छेद 152 -237) |
भाग 7 | संविधान (सातवाँ संशोधन) अधिनियम, 1956 द्वारा निरसित | (अनु़चछेद 238) |
भाग 8 | संघ राज्य क्षेत्र | (अनुच्छेद 239-242) |
भाग 9 | पंचायत | (अनुच्छेद 243- 243O) |
भाग 9A | नगरपालिकाएँ | (अनुच्छेद 243P – 243ZG) |
भाग 10 | अनुसूचित और जनजाति क्षेत्र | (अनुच्छेद 244 – 244A) |
भाग 11 | संघ और राज्यों के बीच सम्बन्ध | (अनुच्छेद 245 – 263) |
भाग 12 | वित्त, सम्पत्ति, संविदाएँ और वाद | (अनुच्छेद 264 -300A) |
भाग 13 | भारत के राज्य क्षेत्र के भीतर व्यापार, वाणिज्य और समागम | (अनुच्छेद 301 – 307) |
भाग 14 | संघ और राज्यों के अधीन सेवाएँ | (अनुच्छेद 308 -323) |
भाग 14A | अधिकरण | (अनुच्छेद 323A – 323B) |
भाग 15 | निर्वाचन | (अनुच्छेद 324 -329A) |
भाग 16 | कुछ वर्गों के लिए विशेष उपबन्ध सम्बन्ध | (अनुच्छेद 330- 342) |
भाग 17 | राजभाषा | (अनुच्छेद 343- 351) |
भाग 18 | आपात उपबन्ध | (अनुच्छेद 352 – 360) |
भाग 19 | प्रकीर्ण | (अनुच्छेद 361 -367) |
भाग 20 | संविधान के संशोधन | (अनुच्छेद 368) |
भाग 21 | अस्थाई संक्रमणकालीन और विशेष उपबन्ध | (अनुच्छेद 369 – 392) |
भाग 22 | संक्षिप्त नाम, प्रारम्भ, हिन्दी में प्राधिकृत पाठ और निरसन | (अनुच्छेद 393 – 395) |
इसे भी पढ़े-
- अनुच्छेद-21 (Article-21) | निजता का अधिकार |Right to Privacy
- भारत के संविधान का अनुच्छेद-22 | Article-22 | गिरफ्तारी के खिलाफ संरक्षण | Protection Against Arrest
- भारत के संविधान का अनुच्छेद-19 (भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता) |Article-19 (Freedom of Speech and Expression)
अनुसूचियाँ
भारत के मूल संविधान में मूलतः आठ अनुसूचियाँ थीं परन्तु वर्तमान में भारतीय संविधान में बारह अनुसूचियाँ हैं। संविधान में नौवीं अनुसूची प्रथम संविधान संशोधन 1951, 10वीं अनुसूची 52वें संविधान संशोधन 1985, 11वीं अनुसूची 73वें संविधान संशोधन 1992 एवं बाहरवीं अनुसूची 74वें संविधान संशोधन 1992 द्वारा सम्मिलित किया गया।
पहली अनुसूची – (अनुच्छेद 1 तथा 4) – राज्य तथा संघ राज्य क्षेत्र का वर्णन।
दूसरी अनुसूची – [अनुच्छेद 59(3), 65(3), 75(6),97, 125,148(3), 158(3),164(5),186 तथा 221] – मुख्य पदाधिकारियों के वेतन-भत्ते
- भाग-क : राष्ट्रपति और राज्यपाल के वेतन-भत्ते,
- भाग-ख : लोकसभा तथा विधानसभा के अध्यक्ष तथा उपाध्यक्ष, राज्यसभा तथा विधान परिषद् के सभापति तथा उपसभापति के वेतन-भत्ते,
- भाग-ग : उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों के वेतन-भत्ते,
- भाग-घ : भारत के नियंत्रक-महालेखा परीक्षक के वेतन-भत्ते।
तीसरी अनुसूची – [अनुच्छेद 75(4),99, 124(6),148(2), 164(3),188 और 219] – व्यवस्थापिका के सदस्य, मंत्री, राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, न्यायाधीशों आदि के लिए शपथ लिए जानेवाले प्रतिज्ञान के प्रारूप दिए हैं।
चौथी अनुसूची – [अनुच्छेद 4(1),80(2)] – राज्यसभा में स्थानों का आबंटन राज्यों तथा संघ राज्य क्षेत्रों से।
पाँचवी अनुसूची – [अनुच्छेद 244(1)] – अनुसूचित क्षेत्रों और अनुसूचित जन-जातियों के प्रशासन और नियंत्रण से संबंधित उपबंध।
छठी अनुसूची– [अनुच्छेद 244(2), 275(1)] – असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरम राज्यों के जनजाति क्षेत्रों के प्रशासन के विषय में उपबंध।
सातवीं अनुसूची – [अनुच्छेद 246] – विषयों के वितरण से संबंधित सूची-1 संघ सूची, सूची-2 राज्य सूची, सूची-3 समवर्ती सूची।
आठवीं अनुसूची – [अनुच्छेद 344(1), 351] – भाषाएँ – 22 भाषाओं का उल्लेख।
नवीं अनुसूची – [अनुच्छेद 31 ख ] – कुछ भूमि सुधार संबंधी अधिनियमों का विधिमान्य करण।पहला संविधान संशोधन (1951) द्वारा जोड़ी गई ।
दसवीं अनुसूची – [अनुच्छेद 102(2), 191(2)] – दल परिवर्तन संबंधी उपबंध तथा परिवर्तन के आधार पर 52वें संविधान संशोधन (1985) द्वारा जोड़ी गई ।
ग्यारहवीं अनुसूची – [अनुच्छेद 243 छ ] – पंचायती राज/ जिला पंचायत से सम्बन्धित यह अनुसूची संविधान में 73वें संवैधानिक संशोधन (1992) द्वारा जोड़ी गई।
बारहवीं अनुसूची – इसमे नगरपालिका का वर्णन किया गया हैं ; यह अनुसूची संविधान में 74वें संवैधानिक संशोधन (1993) द्वारा जोड़ी गई।
संशोधन
भारतीय संविधान का संशोधन भारत के संविधान में परिवर्तन करने की प्रक्रिया है। एक संशोधन के प्रस्ताव की शुरुआत संसद में होती है जहाँ इसे एक बिल के रूप में पेश किया जाता है। 1950 में संविधान की स्थापना के बाद से अब तक 105 बार संशोधन किया जा चुका है जबकि संविधान संशोधन के लिए अब तक 127 बिल लाए जा चुके हैं।
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भारतीय संविधान का निर्माणः
कैबिनेट मिशन योजना में भारतीय संविधान के निर्माण हेतु परोक्ष निर्वाचन के आधार पर एक संविधान सभा के निर्माण का प्रावधान था। इस योजना के अनुसार चुनाव हुए और संविधान सभा का प्रथम अधिवेशन 9 दिसंबर, 1946 को डॉ. सच्चिदानंद की अध्यक्षता में संपन्न हुआ। सभा ने जो संविधान बनाया उसे 26 नवंबर, 1940 को अंतिम रूप से स्वीकार कर लिया गया। इसके बाद यह संविधान 26 जनवरी, 1950 को भारत में लागू कर दिया गया।