भारतीय संविदा अधिनियम Indian Contract Act (ICA Section-38) in Hindi के विषय में पूर्ण जानकारी देंगे। भारतीय संविदा अधिनियम की धारा 38 के अनुसार किसी वचनदाता ने वचनग्रहीता से पालन की निम्न शर्ते पूरी करने वाली प्रस्थापना की हो और वह प्रस्थापना प्रतिगृहीत नहीं की गई हो तो वचनदाता अपालन के लिए उत्तरदायी नहीं है और न एतद्द्वारा वह संविदा के अधीन के अपने अधिकारों को खो देता है, जिसे IC Act Section-38 के अन्तर्गत परिभाषित किया गया है।
HIGHLIGHTS
भारतीय संविदा अधिनियम की धारा 38 (Indian Contract Act Section-38) का विवरण
भारतीय संविदा अधिनियम की धारा 38 IC Act Section-38 के अनुसार किसी वचनदाता ने वचनग्रहीता से पालन की निम्न शर्ते पूरी करने वाली प्रस्थापना की हो और वह प्रस्थापना प्रतिगृहीत नहीं की गई हो तो वचनदाता अपालन के लिए उत्तरदायी नहीं है और न एतद्द्वारा वह संविदा के अधीन के अपने अधिकारों को खो देता है।
भारतीय संविदा अधिनियम की धारा 38 (IC Act Section-38 in Hindi)
पालन की प्रस्थापना प्रतिगृहीत करने से इन्कार का प्रभाव-
जबकि किसी वचनदाता ने वचनग्रहीता से पालन की निम्न शर्ते पूरी करने वाली प्रस्थापना की हो और वह प्रस्थापना प्रतिगृहीत नहीं की गई हो तो वचनदाता अपालन के लिए उत्तरदायी नहीं है और न एतद्द्वारा वह संविदा के अधीन के अपने अधिकारों को खो देता है।
ऐसी हर प्रस्थापना को निम्नलिखित शर्ते पूरी करनी होगी —
(1) वह अशर्त ही होगी;
(2) उसे उचित समय और स्थान पर ऐसी परिस्थितियों के अधीन करना होगा कि उस व्यक्ति को, जिससे वह की जाए, यह अभिनिश्चित करने का युक्तियुक्त अवसर मिल जाए कि वह व्यक्ति, जिसके द्वारा वह की गई है, वह समस्त, जिसे करने को वह अपने वचन द्वारा आबद्ध है, वहीं और उसी समय करने के लिए योग्य और रजामन्द है;
(3) यदि वह प्रस्थापना वचनग्रहीता को कोई चीज परिदत्त करने के लिए हो तो वचनग्रहीता को यह देखने का युक्तियुक्त अवसर मिलना ही चाहिये कि प्रस्थापित चीज वही चीज है जिसे परिदत्त करने के लिए वचनदाता अपने वचन द्वारा आबद्ध है।
कई संयुक्त वचनग्रहिताओं में से की गई प्रस्थापना के विधिक परिणाम वे ही हैं जो उन सबसे की गई प्रस्थापना के।
दृष्टान्त
‘ख’ को उसके भाण्डागार में एक विशिष्ट क्वालिटी की रूई की 100 गांठें 1873 की मार्च की पहली तारीख को परिदत्त करने की संविदा ‘क’ करता है। इस उद्देश्य से कि पालन की ऐसी प्रस्थापना की जाए जिसका प्रभाव वह हो, जो इस धारा में कथित है, ‘क’ को वह रूई नियत दिन को ‘ख’ के भाण्डागार में ऐसी परिस्थितियों के अधीन लानी होगी कि ‘ख’ को अपना यह समाधान कर लेने का युक्तियुक्त अवसर मिल जाए कि प्रस्थापित चीज उस क्वालिटी की रूई है जिसकी संविदा की गई थी और यह कि 100 गांठे हैं।
Indian Contract Act Section-38 (IC Act Section-38 in English)
Effect of refusal to accept offer of performance-
Where a promisor has made an offer of performance to the promisee, and the offer has not been accepted, the promisor is not responsible for non-performance, nor does he thereby lose his right under the contract.
Every such offer must fulfil the following conditions :
(1) it must be unconditional;
(2) it must be made at a proper time and place, and under such circumstances that the person to whom it is made may have a reasonable opportunity of ascertaining that the person by whom it is made is able and willing there and then to do the whole of what he is bound by his promise to do;
(3) if the offer is an offer to deliver anything to the promisee, the promisee must have a reasonable opportunity of seeing that the thing offered is the thing which the promisor is bound by his promise to deliver.
An offer to one of several joint promisees has the same legal consequences as an offer to all of them.
Illustration
A contracts to deliver to B at his warehouse, on the 1st March, 1873, 100 bales of cotton of a particular quality. In order to make an offer of performance with the effect stated in this section. A must bring the cotton to B’s warehouse, on the appointed day, under such circumstances that B may have a reasonable opportunity of satisfying himself that the thing offered is cotton of the quality contracted for, and that there are 100 bales.
हमारा प्रयास भारतीय संविदा अधिनियम (Indian Contract Act Section) की धारा 38 की पूर्ण जानकारी, आप तक प्रदान करने का है, उम्मीद है कि उपरोक्त लेख से आपको संतुष्ट जानकारी प्राप्त हुई होगी, फिर भी अगर आपके मन में कोई सवाल हो, तो आप कॉमेंट बॉक्स में कॉमेंट करके पूछ सकते है।